''वीवीआइपी बलात्कारी अब एक और मुखौटा लगाकर रह रहा है. अब वह केरल के उत्तरी भाग में है और अलग-अलग जगहों पर रह रहा है. यह वीवीआइपी बलात्कारी बिट्टी मोहंती है. अब वह केरल में सुरक्षित है और कन्नूर जिले के पझयंगड़ी एसबीटी में असिस्टेंट मैनेजर है...”
यह टूटी-फूटी भाषा और मोटे अक्षरों में लिखे गए एक गुमनाम खत का मजमून है. भाषा, व्याकरण और वर्तनी के लिहाज से यह बेहद सामान्य है, लेकिन इसमें बातें आक्रामक अंदाज में लिखी गई हैं. यही खत कन्नूर से 25 किलोमीटर उत्तर में स्थित एक छोटे-से शहर मडायी में काम करने वाले बैंककर्मी राघव रंजन की गिरफ्तारी की वजह बना. इस गिरफ्तारी के साथ ही भगोड़े की तरह जीवन बिता रहे राघव की सनसनीखेज कहानी सामने आई. जालसाजी और धोखाधड़ी की इस कहानी का मुख्य किरदार बलात्कार को अंजाम देने वाला और पुलिस की कैद से भागा डीजीपी का बेटा बिट्टी मोहंती था.
2006 में राजस्थान के अलवर जिले में 26 वर्षीया जर्मन टूरिस्ट का बलात्कार करने के जुर्म में बिट्टी को सात साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. उसी साल दिसंबर में उसे पैरोल मिला और वह फरार हो गया. फरार होने के बाद वह लंबे समय तक लापता रहा और इस दौरान उसने अपना नया जीवन पहले टीचर, फिर एमबीए छात्र और अंत में बैंककर्मी के रूप में बिताना शुरू कर दिया. इस दौरान उसने आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी और केरल के पास कन्नूर में रहते हुए फर्जी कागजातों और झूठ की मदद से अपने पिछले जीवन के बारे में मनगढ़ंत कहानी तैयार कर ली.
स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर (एसबीटी) में काम करने वाले उसके 20 करीबी सहयोगियों को उसकी शराफत पर भरोसा था और वे उसे सही आदमी मानते थे. सबसे घुल-मिलकर नहीं रहने के बावजूद वह अनुशासित रहता था और सबसे शिष्ट व्यवहार करता था. लेकिन उसका रुख बहुत ज्यादा दोस्ताना नहीं था. कन्नूर के जिस चिन्मय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उसने राघव रंजन के नाम से एमबीए किया, वहां के अध्यापक उसे आध्यात्मिक विषयों में खास रुचि रखने वाला आदर्श और अनुशासित छात्र मानते थे. पुट्टपर्थी में उसके मेंटॉर भी उसे तेज बुद्धि और नौकरी की तलाश में शिद्दत से लगे युवा की तरह देखते थे.
सबूत जुटाने की चुनौती
कन्नूर में उसे हिरासत में लेने के लिए पहुंची राजस्थान पुलिस की टीम कांस्टेबल हेमेंद्र शर्मा के साथ आई थी. हेमेंद्र शर्मा उन पुलिसकर्मियों में से थे जिन्होंने 2006 में बिट्टी को गिरफ्तार किया था. कन्नूर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) राहुल एन. नायर की ओर से आठ घंटे लंबी चली पूछताछ के बाद राघव की कहानी में अस्थिरता नजर आने लगी और यह लगने लगा कि राघव वास्तव में बिट्टी मोहंती है. इसके बावजूद भी यह साफ तौर पर तब तक नहीं कहा जा सकता था, जब तक फिंगर प्रिंटिंग, डीएनए परीक्षण या लाई डिटेक्टर जैसी किसी भी वैज्ञानिक तकनीक से कोई पुष्टि नहीं हो जाए. इसके बाद राघव को राजस्थान ले जाया गया, जहां से वह दिसंबर 2006 में अपनी बीमार मां को कटक जाकर देखने के लिए मिले 15 दिन के पैरोल के दौरान गायब हो गया था.
पूछताछ करने वाले पुलिसकर्मियों ने बताया कि राघव शुरुआत में इस बात से मुकर गया कि वह बिट्टी है. उसने ओडिसा में ली गई अपनी शिक्षा, आंध्र प्रदेश में बिताए गए अपने जीवन और अपने माता-पिता की शादी टूटने की कहानी विस्तार से बतानी शुरू कर दी. लेकिन जैसे ही पुलिस ने उसे अलवर बलात्कार कांड के आरोपी की तस्वीरें और वीडियो क्लिप दिखाए, वह टूटना शुरू हो गया.
राजस्थान पुलिस मानती है कि उसकी पहचान को तय करने का सबसे अच्छा तरीका उसके डीएनए का उसके माता-पिता के डीएनए से मिलान करना है. अगर ओडिसा के पूर्व डीजीपी और बिट्टी के पिता बी.बी. मोहंती और उसकी माता शुभ्रा ने खून के नमूने देने से इनकार कर दिया, तो ये एक बहुत लंबी कानूनी प्रक्रिया हो सकती है. बिट्टी को भी यह अधिकार है कि वह अपने खून का नमूना देने से मना कर दे.
ऐसे में दूसरा विकल्प वैज्ञानिक तरीकों से उसके चेहरे-मोहरे का पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद उसकी तस्वीर से मिलान करने का होगा. इस बात की संभावना कम है कि पुलिस रिकॉर्ड में उसके फिंगरप्रिंट मौजूद हों क्योंकि पहली बार हिरासत में लिए जाने के वक्त उसकी पहचान को लेकर कोई विवाद नहीं था.
उसकी पहचान को तय करने का तीसरा और अंतिम तरीका इस बात पर आकर टिक जाता है कि केरल पुलिस कितनी बारीकी से उसके फर्जी दस्तावेजों को निशाने पर ले पाती है. एसपी नायर ने इंडिया टुडे को बताया, ''हमने इस मामले को लगभग सुलझा लिया है. निश्चित ही यह नकली भेष बनाने और धोखाधड़ी करने का मामला है.”
अब तीस साल के हो चुके बिट्टी ने अगर पहले तय की गई अपनी सजा काट ली होती तो वह कुछ महीने बाद रिहा हो जाने की स्थिति में होता. यहां से उसे ज्यादा कठोर और लंबी सजा मिलने की संभावना बढ़ गई है.
नई जगह, नई जिंदगी
बिट्टी के राघव रंजन में बदलने की शुरुआत 2007 में अनंतपुर जिले के तीर्थ शहर पुट्टपर्थी में पहुंचने के साथ हुई. रिटायर्ड आइएएस अफसर के.आर. परमहंस ने उसकी मुलाकात स्थानीय स्कूल के पूर्व हेडमास्टर एस.वी. रामा राव से कराई.
राव ने केरल पुलिस को बताया कि बिट्टी और उसके पिता ने अपना परिचय राघव राजन और राजीव राजन कहकर दिया. राघव ने राव को बताया कि कि वह ओडिसा के कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी संस्थान से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट है और उसके पिता एक स्थानीय जमींदार हैं. राव ने राघव के लिए एक नौकरी ढूंढी और बाद में उसे पास के एक कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर नियुक्त करवाने में मदद की. वे बताते हैं कि बिट्टी के एमबीए करने के लिए कन्नूर जाने के बाद भी वे एक-दूसरे के संपर्क में रहे. 'राघव’ के पास एक मतदाता पहचान पत्र है. इसका नंबर एजीडब्ल्यू 0298331 है. इसमें उसे पुट्टपर्थी में चित्रावती रोड, ब्लॉक-6 में यानामुलापल्ले मोहल्ले के मकान नं- 6/80 का निवासी और राजीव रंजन का पुत्र बताया गया है. उसके पास हिंदूपुर के सड़क परिवहन विभाग से मिला हुआ ड्राइविंग लाइसेंस भी है. अपने पुट्टपर्थी अपार्टमेंट के लिए 'राघव’ अभी तक किराया भी चुका रहा है. यहां वह फरवरी महीने में एक हफ्ते के लिए ठहरा भी था. उसका स्थानीय केनरा बैंक शाखा में खाता भी है.
बोलचाल की भाषा में 'चिनटेक’ कहे जाने वाले चिन्मय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में राघव नाम से उसका मैट परीक्षा में 90 प्रतिशत स्कोर भी है. वह तलप्प स्थित कॉलेज हॉस्टल में भी रहा है. अपना कोर्स पूरा करने के बाद उसे ऑल इंडिया बैंकिंग रिक्रूटमेंट बोर्ड ने प्रोबेशनरी अधिकारी के पद के लिए चयनित 250 नामों में से एक पाकर जुलाई, 2012 में स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर की मडायी शाखा भेज दिया. स्टेट बैंक त्रावणकोर के मुख्य जनसंपर्क प्रबंधक रंजीत थॉमस कहते हैं, ''नियुक्ति के वक्त हम सिर्फ यह चेक करते हैं कि उम्मीदवार के दस्तावेज असली हैं या नहीं. हमारे पास दस्तावेजों की प्रामाणिकता को जांचने की कोई तकनीक नहीं है. उम्मीदवार के दिए गए स्थायी पते की पुलिस पड़ताल कर सत्यापित करती है. यह सत्यापन रिपोर्ट उम्मीदवार की नियुक्ति के काफी समय बाद आती है. राघव रंजन की रिपोर्ट का आना भी अभी बाकी है.”
राघव सबसे पहले अपने ऑफिस से पंद्रह किमी दूर कन्नूर की सीमा पर स्थित पुतियातेरू में किराये के मकान में रहा. फरवरी महीने की शुरुआत में वह स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर की मडायी शाखा में ही असिस्टेंट मैनेजर और बिहार निवासी अभिषेक कुमार के साथ किराये पर रहने लगा. किराये का यह मकान समीरा मंजिल में था, जो फातिमा बिल्डिंग के पहले फ्लोर पर बने बैंक की शाखा के ठीक पीछे थी. उसके अधिकांश मुस्लिम पड़ोसी बताते हैं कि दोनों ही गैर-मलयाली अधिकारी अपने आप से मतलब रखते थे. अभिषेक तो बिट्टी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही तीन दिन की छुट्टी पर चले गए. बैंक अधिकारियों ने उन्हें छुट्टी देने को महज एक संयोग माना है क्योंकि अभिषेक ने छुट्टी के लिए एक महीने पहले ही आवेदन दे दिया था. एक स्थानीय किराने की दुकान का मालिक याद करते हुए कहता है कि राघव ओडिसा का आहार चिवड़ा नियमित रूप से खरीदता था. पास का ही एक दुकानदार बताता है, ''सभी उसे आंध्र प्रदेश का ब्राह्मण समझते थे जो अपनी उम्र के हिसाब से बेहद नीरस कपड़े पहनता था. वह बड़ी कमीज और चश्मा पहने हुए दिखाई पड़ता था.”
यह इत्तेफाक है कि दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद टीवी चैनलों पर बिट्टी के पुराने फोटो भी बार-बार फ्लैश हुए थे, जिसके बाद गुमनाम खत आया. हालांकि गुमनाम खत को लिखने वाले का नाम अभी तक सामने नहीं आया है. लेकिन कन्नूर में इन दिनों कई कहानियां चर्चित है. जिनमें यह कहा जा रहा है कि राघव के एक औरत के साथ ताल्लुकात थे और उसको राघव ने अपने बीते जीवन के बारे में कभी गुप्त जानकारी दे दी थी. महिला के परिवार ने उनके रिश्ते को रजामंदी नहीं दी और संबंध को खत्म करने के लिए तिरुअनंतपुरम के बैंक मुख्यालय और मडायी शाखा में खत भेज दिए.
—साथ में रोहित परिहार और अमरनाथ के. मेनन