‘पान सिंह तोमर’ फिल्म का क्लाइमेक्स सीन याद है क्या आपको? 1977 में चंबल के बीहड़ों में ‘रानी का पुरवा’ गांव की उस जबरदस्त मुठभेड़ में डकैत पान सिंह तोमर और उसका पूरा गैंग साफ हो जाता है. बस एक आदमी बचता है-उसका भतीजा बलवंता. फिल्म के आखिरी डायलॉग में बलवंता कहता है, ‘‘चाचा, हम पुलिस के हाथ नहीं आएंगे.’’ यहां फिल्म खत्म हो जाती है, लेकिन चंबल के बीहड़ों के हमेशा के लिए बदलने की कहानी शायद इसके कहीं बाद जाकर शुरू होती है. और इस नई कहानी का प्लॉट हमें दिखा 2013 की जनवरी में जाड़े के उस सर्द दिन जब सरसों के लहलहाते खेत कोहरे की चादर में ढके थे.
इंदौर इन्वेस्टर्स मीट में इलाके के लिए 33,000 करोड़ रु. के निवेश का प्रस्ताव आए बहुत दिन नहीं हुए थे. और चंबल नदी में डाकुओं की नाव के चप्पुओं की छप-छप की जगह चंबल सफारी में बच्चों की पिकनिक की चहल-पहल थी. इसी दिन बलवंत सिंह तोमर (60 साल के बलवंता अब इसी नाम से जाने जाते हैं) ग्वालियर के बाहरी इलाके में अपने सैंड स्टोन क्रशर पर बैठे आग सेंक रहे थे. अपनी पसंदीदा खाकी ड्रेस और खांटी चंबल वाली ठसक के बावजूद, वे अब पूर्व दस्यु नहीं, नए जमाने के उद्यमी हैं.
वक्त का पहिया घूमा कैसे? बलवंत सिंह ने 36 साल पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा, ‘‘अगर जीने का कोई इज्जतदार जरिया बना रहे तो कोई बीहड़ में कूदना नहीं चाहता. वक्त के साथ पुलिस और पब्लिक दोनों का नजरिया बदला है. चाचा जब बीहड़ में कूदे थे, तब पुलिस का रवैया यह था कि जब तक 8-10 लाशें न गिर जाएं, थानेदार रपट लिखने को तैयार नहीं होता था. आज बच्चे पढ़ रहे हैं, जमाना बदल रहा है.’’
दरअसल, उस मुठभेड़ के पांच साल बाद 1982 में बलवंत ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्मसमर्पण किया और जेल चले गए. जब जेल से बाहर आए तो जिंदगी का नया ताना-बाना बुना, जो उस दौर में सरेंडर करने के बाद बहुत से डकैत बुनना चाहते थे. उन्होंने स्टोन क्रशर मशीनें लगवाईं. बच्चों को पढ़ाया. उनके तीन बेटे जहां बिजनेसमैन हैं, वहीं एक बेटा फौज में है.
बलवंत ही क्या, अपने जमाने के कुख्यात डकैत, 82 वर्षीय मोहर सिंह ने 1972 में सरेंडर किया और आज उनकी लंबी-चौड़ी खेती-बाड़ी है. यही नहीं रौबदार गलमुच्छ रखने वाले मोहर सिंह 1995 में भिंड जिले की मेहगांव नगरपालिका के अध्यक्ष भी रहे. लेकिन उस दौर में हुए सरेंडर का मतलब यह नहीं था कि डकैत हमेशा के लिए खत्म हो गए, इसे बदलाव की शुरुआत भर कहा जा सकता है. चंबल में डकैतों का पूरी तरह सफाया हुआ 2006-2010 के बीच. इस दौरान सरेंडर कम और एनकाउंटर ज्यादा हुए.
आपकी नीति क्या थी, इस सवाल पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंडिया टुडे को बताया, ‘‘काम करना है, तो करना है. डकैतों को साफ करना भी ऐसा ही काम था और हमने यह कर दिखाया.’’ ‘कर दिखाया’ वाले जुमले की तह में जाते हुए 2009 तक चंबल रेंज के पुलिस महानिरीक्षक रहे वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी संजय झ ने कहा, ‘‘प्रशासन के साफ निर्देश के साथ ही हमें उत्तर प्रदेश और राजस्थान के चंबल वाले इलाके की पुलिस का पूरा सहयोग मिला. यह संयुक्त घेराबंदी का असर था, जो इतना कठिन काम पूरा हो सका.’’ डकैतों के बीहड़ में कूदने की वजह के सवाल पर झा कहते हैं, ‘‘यहां के पानी में ही कुछ असर है. छोटी-छोटी बातों को लोग आन की बात बना लेते हैं. पान सिंह तोमर ही क्या मैंने कई फौजियों को बीहड़ में उतरते देखा.’’ डाकुओं के खात्मे का ही असर कहा जाएगा कि ग्वालियर-चंबल संभाग के दस्यु प्रभावित जिले भिंड, मुरैना, श्योपुर और दतिया में अब न सिर्फ पूर्व दस्यु उद्यम लगा रहे हैं, बल्कि नामी-गिरामी कंपनियां भी यहां अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं. इसके अलावा यह शिक्षा का प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरा है.
उद्योग का नया दौर
चंबल के बीहड़ों का अनगढ़ सौंदर्य अगर इसे डकैतों की महफूज पनाहगाह बनाता है तो मध्य भारत में इसकी भौगोलिक स्थिति इसे औद्योगिक कॉरिडोर के लिए मुफीद बनाती है. दिल्ली से कोई 315 किमी दक्षिण में बसे चंबल रीजन में अब मध्य प्रदेश सरकार मुरैना-ग्वालियर-शिवपुरी-गुना जिलों में औद्योगिक कॉरिडोर विकसित करने का मन बना रही है. योजना भले ही अभी बहुत ही प्रारंभिक चरण में है, लेकिन जिस तरह से इंदौर में पिछले साल 28-30 अक्तूबर के बीच हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स सम्मेलन से पहले मुख्यमंत्री ने इलाके का हवाई सर्वेक्षण किया उससे इस योजना की अहमियत समझ आती है. ग्वालियर के आधारभूत ढांचा विकास निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने कॉरिडोर के लिए नए इलाकों के चयन का काम शुरू कर दिया है. हम इस परियोजना को जल्दी से जल्दी शुरू करना चाहते हैं.’’
राज्य के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, ‘‘कई उद्योगपति दिल्ली और नोएडा में बढ़ते अपराध से चिंतित हैं और हम ऐसे उद्योगपतियों से संपर्क कर रहे हैं.’’ राज्य सरकार की योजना है कि औद्योगिक कॉरिडोर विकसित करने के दौरान जमीन अधिग्रहण बड़ी समस्या न बने, इसलिए यहां बनने वाली इकाइयों में स्थानीय लोगों के लिए 50 फीसदी नौकरियां आरक्षित कर दी जाएं. इस इलाके को दिल्ली के काउंटर मैग्नेट औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने की योजना एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की भी है.
ग्वालियर को काउंटर मैग्नेट औद्योगिक क्षेत्र घोषित भी किया जा चुका है. हालांकि इस काम की गति बहुत तेज नहीं है. इस बारे में चौहान ने कहा, ‘‘हमने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है, हालांकि केंद्र ने बहुत तेजी नहीं दिखाई है.’’ लेकिन राज्य और केंद्र की योजनाएं बता रही हैं, कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र औद्योगीकरण के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है.
इलाके में पहले से ही बलुआ पत्थर की कटाई का उद्योग बेहतर ढंग से स्थापित है. आगरा-मुंबई राजमार्ग के मुरैना-ग्वालियर वाले खंड पर इस समय करीब 100 सैंड स्टोन क्रशर काम कर रहे हैं. बलवंत सिंह ने बताया, ‘‘यहां आसपास की खदानों से निकाले गए बलुआ पत्थर को टाइल्स में बदला जाता है, जहां से इसे दिल्ली औैर जयपुर के एक्सपोर्टर्स के पास भेज दिया जाता है.’’ सालाना 300 करोड़ रु. का यह बलुआ पत्थर अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, आयरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों तक पहुंचता है. इसके अलावा जेके टायर्स और ग्वालियर दुग्ध संघ ने मुरैना के बानमौर औद्योगिक क्षेत्र में प्लांट लगाए हैं.
भिंड जिले के मालनपुर-घिरोगनी में ड्यूलक्स पेंट 400 करोड़ रु. की लागत से प्लांट स्थापित करने जा रहा है. यहां चाय की दुकान चलाने वाले 18 वर्षीय ओम प्रकाश यादव अभी 100 रु. रोज तक की दिहाड़ी बना लेते हैं. उन्हें उम्मीद है कि प्लांट शुरू होने के बाद ग्राहकों की बहार आएगी. मोदी समूह और अमेरिका का गार्डियन इंडस्ट्रीज समूह भी मालनपुर में प्रस्तावित ग्लास फैक्टरी में 1,000 करोड़ रु. का निवेश कर सकते हैं. उद्योग विभाग के मुताबिक, इस फैक्टरी में 2,000 लोगों को रोजगार मिलेगा. ग्वालियर से 18 किमी और भिंड से 50 किमी दूर मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र में पहले से ही कैडबरी, कर्लऑन, सूर्या रोशनी, गॉदरेज, रैनबेक्सी, क्रॉम्पटन ग्रीव्ज और एसआरएफ लिमिटेड के उपक्रम चल रहे हैं.
सरसों क्रांति
उद्योग अगर आने वाला कल है तो चंबल नदी के दोनों तरफ लहलहाते सरसों के खेत ग्वालियर-चंबल संभाग की मौजूदा खुशहाली की उमंग है. यह संभाग राज्य के सालाना 7 लाख टन सरसों उत्पादन में 5 लाख टन की हिस्सेदारी रखता है. मध्य प्रदेश कृषि विभाग के प्रमुख सचिव एम.एम. उपाध्याय ने बताया, ‘‘इस इलाके ने पिछले वित्त वर्ष में 10 फीसदी की कृषि विकास दर दर्ज कराई है.’’ सरसों की खेती से भिंड, मुरैना और श्योपुर जिले का भी कायाकल्प हुआ है. पिछले 10 साल में मुरैना जिले में 25 तेल मिलें स्थापित हो चुकी हैं. मुख्यमंत्री याद दिलाना नहीं भूलते कि प्रदेश में सिंचाई के रकबे का विस्तार इसकी एक बड़ी वजह है. वे स्वीकार करते हैं कि चंबल क्षेत्र को मालवा की जरखेज जमीन से टक्कर लेने लायक बनाने के लिए अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी.
खाद्य तेल तैयार करने वाले श्री पराग ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के निदेशक संजय माहेश्वरी कहते हैं, ‘‘इन मिलों में 6,000 से ज्यादा लोगों को काम मिलता है.’’ उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी बिहार और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों और भूटान को भी सरसों के तेल की सप्लाई करती है.
बीहड़ में ढूहों के ऊपर भी खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. ग्वालियर का राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से दो करोड़ रु. के एक प्रोजेक्ट पर शोध कर रहा है जिसमें डीहों पर खेती करने के तरीकों की खोज की जाएगी. परियोजना के सूत्रधार रहे पूर्व कुलपति वी.एस. तोमर ने बताया, ‘‘50 एकड़ जमीन पर चल रहे पायलट प्रोजेक्ट का 30 फीसदी काम पूरा हो चुका है.’’
ग्वालियर की हुंकार
ग्वालियर शहर चंबल के लिए शहरीकरण का इंजन है. अगर शिक्षा को उद्योग मान सकें तो यह शहर इस उद्योग का बहुत बड़ा गढ़ बन गया है. यहां पांच विश्वविद्यालय-जीवाजी विश्वविद्यालय, लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय, राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय और 2010 में एक निजी आइटीएम विश्वविद्यालय शुरू हुआ है. ग्वालियर में 25 इंजीनियरिंग कॉलेजों सहित 250 प्रोफेशनल और शिक्षा संस्थान हैं. चंबल अभी विकास की दिशा में शुरुआती दौर में है. अभी ढेरों सरकारी वादे हैं जिनका जमीन पर आना या न आना भविष्य के गर्भ में है. लेकिन तस्वीर बदलने के लक्षण दिख रहे हैं.
2011 में सोनी टीवी एक्स फैक्टर शो के विजेता गीत श्रीवास्तव कहते हैं, पहले जहां लोग शाम को घर से बाहर निकलने में डरते थे, वहीं आज मैं बीहड़ में गिटार लेकर निकलने में नहीं डरता. ‘‘यह बदली हुई फिजा का असर है. छह साल पहले किसी लड़के के लिए यह सोचना नामुमकिन था कि वह गायिकी को अपना करियर बना सकता है. लेकिन शो का ऑडिशन ग्वालियर तक आया और आज मैं कुछ हूं.’’ चंबल के पास भी आज नई पहचान है.