अकबरुद्दीन ओवैसी नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए जाने जाते हैं. पुराने हैदराबाद की सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक ताकत ऑल इंडिया मजलिस-इ-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) का यह 42 वर्षीय शख्स भीड़ को उत्तेजित करने के फन में माहिर है. वे अपने आग उगलते भाषणों के जरिये भावनाओं को भड़काते हैं और पार्टी के मुस्लिम वोट को और पुख्ता करते रहे हैं.
आंध्र प्रदेश विधानसभा में एआइएमआइएम के 7 विधायक, 2 विधानपार्षद, और हैदराबाद ग्रेटर म्युनिसिपल कॉर्पारेशन (जीएचएमसी) में 43 प्रतिनिधि हैं. जिनमें 33 वर्षीय मेयर मोहम्मद माजिद हुसैन भी शामिल हैं. इतना ही नहीं ओवैसी परिवार शिक्षा संस्थाओं का एक बड़ा नेटवर्क संभालता है और शहर की प्राइम रियल एस्टेट पर भी उनका नियंत्रण है.
आंध्र प्रदेश में 2014 में विधानसभा चुनाव होने हैं और एआइएमआइएम वाइएसआर कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के लिए बेताब है, ऐसे में अकबरुद्दीन एक बार फिर मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं. आदिलाबाद जिले के निर्मल में 22 दिसंबर को दिया गया उनका भड़काऊ भाषण एक बड़ी राजनैतिक योजना को आगे धकेलने की ही कोशिश थी. इंटरनेट ने इसे बखूबी लपक लिया. उनका कहना थाः “अगर पुलिस को 15 मिनट के लिए दूर रखा जाए तो 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं के लिए काफी हैं.”
उन्होंने आगे कहा “(मुख्यमंत्री) किरण कुमार रेड्डी मुसलमानों का दुश्मन है.” यह भाषण गोली की रफ्तार से फैला और 8 जनवरी को लंदन से लौटते ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उन पर जो धाराएं लगाई हैं वे समुदायों में शत्रुता फैलाने, शांति भंग करने, राज्य के खिलाफ लड़ाई छेडऩे, आपराधिक साजिश रचने, देशद्रोह, लोगों को बहकाने और सार्वजनिक तौर पर गलत व्यवहार करने तथा आधिकारिक आदेशों की अवहेलना करने से जुड़ी हैं.
अकबरुद्दीन को आदिलाबाद की जिला जेल में रखा गया है. इन सबके बावजूद आंध्र प्रदेश की राजधानी में एआइएमआइएम के दबदबे पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता. पार्टी के इतिहास में कभी भी इतने बड़ी तादाद में चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हुए. ओवैसी 2014 के चुनाव में इस स्थिति का लाभ उठाते हुए हैदराबाद से बाहर भी देशभर में मुसलमानों की एक बुलंद आवाज के रूप में उभारना चाहते हैं. एआइएमआइएम की क्षमता लोकसभा में एक से ज्यादा सीट जीतने की नहीं रही है, फिर भी उन्हें उम्मीद है कि वाइएसआर कांग्रेस के समर्थन से विधानसभा में इनकी तादाद बढ़ेगी.
राज्य के बाहर देखें तो महाराष्ट्र के नांदेड़ में 2012 में हुए म्युनिसिपल चुनाव में इसने कुछ सीटें जीतकर अपनी छाप जरूर छोड़ी थी. नांदेड़ पहले पुराने हैदराबाद का ही हिस्सा था. पारंपरिक तौर पर तो ये कांग्रेस से जुड़े रहे लेकिन उन्हें आगामी चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी की हालत खस्ता नजर आने लगी तो वे केंद्र में यूपीए और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी से अलग हो गए, लेकिन संबंधों में दरार का कारण सरकार के उनके शैक्षणिक संस्थाओं के लिए भूमि आवंटित न करना बताया गया.
बड़े भाई और पार्टी अध्यक्ष 44 वर्षीय असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद से सांसद हैं. अकबरुद्दीन विधानसभा में एआइएमआइएम के नेता हैं. असदुद्दीन ने अपने भाई के नफरत भरे भाषणों पर कोई पश्चाताप या विरोध नहीं जताया. इंडिया टुडे से बातचीत के लिए किए गए फोन भी उन्होंने रिसीव नहीं किए और 5 जनवरी को एक एसएमएस में कहा, “मैं मीडिया से बातचीत नहीं कर रहा हूं क्योंकि उन्होंने एकतरफा पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की है.”
एआइएमआइएम को असदुद्दीन के दादा अब्दुल वाहिद ओवैसी ने 1958 में पुनर्जीवित किया था. उन्होंने पार्टी के नाम एमआइएम के आगे ऑल इंडिया जोड़ दिया जिससे इसकी छवि को बदला जा सके. 1948 में भारत विरोधी होने के आरोप में इस पार्टी पर पाबंदी लगा दी गई थी. अब्दुल वाहिद की मौत के बाद 1975 में उनके पिता सलाहुद्दीन ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ली. वे पार्टी अध्यक्ष बने रहे और 2008 में अपनी मृत्यु तक पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए काम करते रहे.
1960 में हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पारेशन में काउंसलर चुने गए. सलाहुद्दीन 1962 में विधानसभा पहुंचे उन्होंने कांग्रेस की मंत्री रही मासूमा बेगम को हैदराबाद में पराजित किया. अपने 50 साल के राजनैतिक करियर में 44 साल वे चुनाव जीतते रहे. सलाहुद्दीन कांग्रेस के साथ एक अनकहे समझौते पर चलते रहे और पार्टी के आधार को बढ़ाने के लिए उकसाने के काम को बखूबी अंजाम देते रहे.
उन्होंने अलग-थलग पड़े गरीब मुसलमानों के मसले को हाथ में लिया, और हैदराबाद के निजाम के राजनीति से दूर रहने के कारण पैदा हुई खाली जगह हथिया ली. उन्होंने मतदाता सूची में फर्जी नाम, मतदान में धांधली और ताकत के बेजा इस्तेमाल से कभी खुद को दूर नहीं रखा. इसी दौरान उन्होंने मुसलमानों के कल्याण के लिए सरकार से खूब फंड लिया और दार-उस-सलाम एजुकेशनल ट्रस्ट के तहत अपने शैक्षाणिक संस्थान खोल दिए.
असदुद्दीन और अकबरुद्दीन ने अपनी धन-दौलत को बढ़ाने के लिए प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में भरोसा जताया. इन भाइयों ने रियल एस्टेट और शिक्षा के क्षेत्र में निवेश से अपनी संपत्ति में जबरदस्त इजाफा किया. उन्होंने 1990 और 2000 के दशकों में हैदराबाद में आई तेजी का भरपूर लाभ उठाया. हैदराबाद में ही उनका असल ठिकाना है. उनके कारोबार में एक बड़ा हिस्सा शादी खाना (वेडिंग हॉल) का भी है. ओवैसी परिवार पर अकबर निजामुद्दीन हुसैनी के साथ करीबी के आरोप भी लगते रहे हैं.
हुसैनी के पास हैदराबाद में दरगाह शाह खामोश और वक्फ (मुस्लिम चैरिटेबल ट्रस्ट) के तहत आने वाली जमीन की देख-रेख की जिम्मेदारी है. हुसैनी ओवैसी के नियंत्रण वाले दार-उस-सलाम बैंक के चेयरमैन भी हैं. आरोप हैं कि ओवैसी परिवार ने वक्फ की जमीन को डेवलपर्स को गैर-कानूनी तरीकों से देकर फायदा कमाया है. इनमें हैदराबाद और आस-पास के इलाके कारवां, हबीब नगर और खानाजिगुडा के प्लॉट शामिल हैं.
इंडिया टुडे ने मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को ओवैसी बंधुओं की ओर से 2012 में भेजे गए चार पत्र देखे हैं जिनमें कोशिश की गई है कि वे सरकार से मुफ्त या सस्ती दर पर 18 एकड़ जमीन हासिल कर लें. बतौर सलार-ए-मिल्लत एजुकेशन ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष अकबरुद्दीन ने 26 जुलाई को प्रस्तावित इंटेग्रेटेड वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इंडस्ट्रियस ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और ओल्डेज होम और अनाथालय के लिए 5 एकड़ जमीन मांगी थी.
असदुद्दीन ने तीन अगस्त को दार-उस-सलाम एजुकेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष के तौर पर फिर जमीन के लिए आवेदन पत्र भेजा. कहीं पीछे न रह जाएं इस लिहाज से 18 अगस्त को सबसे छोटे भाई और उर्दू दैनिक एतेमाद के एडिटर-इन-चीफ 35 वर्षीय बुरहानुद्दीन ने अखबार के लिए शहर में किसी अच्छी जगह पर 2 या 3 एकड़ जमीन की मांग की थी.
चौथी चिट्टी 7 सितंबर, 2012 की है, जिसे अकबरुद्दीन ने लिखा. उन्होंने इसमें मांग की थी कि हैदराबाद की एसी गाड्र्स की जिस सरकारी जमीन पर महावीर अस्पताल और आंध्र प्रदेश राइडिंग क्लब का कब्जा है, वह जमीन ओवैसी के डेक्कन कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज को एक अत्याधुनिक टीचिंग अस्पताल खोलने के लिए दी जाए. पुराने शहर में ओवैसी अस्पताल और प्रिंसेस एज़रा अस्पताल के बाद यह तीसरा अस्पताल होता. ओवैसी बंधुओं की जिद पर चौकस मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने पहली तीन चिट्टियों पर लिखा “प्लीज जांचें और सर्कुलेट करें”. आखिरी पत्र पर लिखा “कृपया छानबीन करें और मुझे बताएं”. ये पत्र राज्य की अफसरशाही के हवाले कर दिए गए.
ओवैसी बंधुओं का दबदबा और उन्हें हासिल समर्थन ने उन्हें आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड (एपीएसडब्लूबी) की जमीन के साथ खिलवाड़ करने का मौका दिया. उर्दू दैनिक सियासत के मैनेजिंग एडिटर जहीरुद्दीन अली खान आरोप लगाते हैं, “बरसों से स्पेशल ऑफिसर और वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्तियां वही लोग कर रहे थे. इन लोगों ने वक्फ बोर्ड की जमीन ओवैसी को दे दी यानी उसे सरकारी जमीन का दर्जा दिया और लाभ ओवैसी बंधुओं को मिला. जो उनकी मांगों के आगे नहीं झुकते, वे कुछ महीनों में चलता कर दिए जाते.”
वे आइएएस अधिकारी मोहम्मद अली रफात का उदाहरण देते हैं जो अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में प्रधान सचिव थे, उन्हें कार्यभार संभालने के सातवें महीने में ही हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने यह बात सामने रखी कि वक्फ बोर्ड के सदस्य एआइएमआइएम के दलालों की तरह काम कर रहे थे. ओवैसी और कांग्रेस के कुछ नेताओं मसलन पूर्व वक्फ बोर्ड मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर में दोस्ताना है. उन्होंने सारे सौदे कराए, काफी समय बाद जब वे मंत्री नहीं थे तब 2009 में उन्होंने बताया कि कांग्रेस सरकार का वक्फ बोर्ड की 100 एकड़ जमीन को 2004-2009 के बीच 427 करोड़ रु. में बेचना उचित था क्योंकि तेलगु देशम पार्टी ने भी 729 एकड़ जमीन 1999 से 2004 में 16.40 करोड़ रु. में बेची थी.
सीपीआइ (एम) से राज्यसभा के सदस्य पेनुमल्ली मधु कहते हैं, “हैदराबाद में ओवैसी परिवार की तूती बोलती है, चाहे वह फलकनुमा पैलेस के 4 किमी पश्चिम में वाटेपल्ली की मस्जिद मुगल फकीर हो या हिमायत सागर झील का किनारा जहां अकबरुद्दीन का फार्महाउस है.”
हर साल असदुद्दीन और अकबरुद्दीन एनआरआइ छात्रों को अपने शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी एशिया के दौरे करते हैं. उन पर आरोप है कि मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के नाम पर वे काफी पैसा कैपिटेशन फीस के तौर पर लेते हैं. वे इस तरह इकट्ठा हुए पैसे को विदेशों में ही जमा करा देते हैं. आंध्र प्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य और वकील सैयद तारक कादरी पूछते हैं, “क्या एमआइएम एनआरआइ कोटे के तहत छात्रों के प्रवेश, मैनेजमेंट और कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के लिए इकट्ठा होने वाले पैसे की सरकारी जांच के लिए तैयार होगा?” ओवैसी परिवार की रणनीति हैदराबाद के मुसलमानों खासतौर पर गरीबों को कब्जे में रखने की है.
मधु कहते हैं, “पुराने शहर के कई इलाकों में इनके इस साम्राज्य के कारण लोगों में भय और गुस्सा है.” सीमाओं में कैद गुस्सा अब बेकाबू हो रहा है. फ्री स्टाइल कुश्ती के पहलवान मोहम्म्द बिन उमर याफई उर्फ मोहम्मद पहलवान ने 30 अप्रैल, 2011 को अकबरुद्दीन पर हमला किया था. उनके बीच शहर में बालापुर की सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर विवाद था.
एमआइएम विरोधी अन्य ताकतों मसलन बीजेपी, सीपीआइ और सीपीआइ (एम) स्थिति मजबूत कर रही हैं. बहरहाल एआइएमआइएम के नेताओं को भरोसा है कि अकबरुद्दीन को मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिलता रहेगा क्योंकि उन्होंने ही 2007 में लेखक तस्लीमा नसरीन के खिलाफ जहरीले शब्दों का हमला बोला था. यों भी ओवैसी परिवार पर कानून कम ही लागू होता है. क्या इस बार यह गलत सिद्ध हो सकेगा?