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अवैध खनन: माफिया ने नदी का गला दबाया

मध्य प्रदेश से अविरल बहकर आती केन नदी पर उत्तर प्रदेश के बांदा में खनन माफिया का अवैध कब्जा. बदला नदी का स्वरूप.

अपडेटेड 21 जनवरी , 2013

‘‘केन नदी के किनारे किसी प्रकार का अवैध खनन और बांध बनाकर नदी की धारा रोकने की जानकारी मिलने पर जांच कराई जाएगी.’’
-जी.एस. नवीन कुमार, जिलाधिकारी, बांदा.

‘‘केन के किनारे अवैध खनन के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है. इस बारे में जिलाधिकारी से बात करिए.’’ -ज्ञानेश्वर तिवारी, पुलिस अधीक्षक, बांदा.

‘‘केन नदी के किनारे बालू या मौरंग के अवैध खनन और नदी की धारा बंद करने की जानकारी मुझे नहीं है.’’
-गिरीश चंद्र शर्मा, उप-जिलाधिकारी सदर तहसील, बांदा.

उन अधिकारियों के बयान हैं ये, जिन पर बांदा जिले में अवैध खनन रोकने की जिम्मेदारी है. इंडिया टुडे द्वारा सवाल किए जाने पर इन अधिकारियों ने बांदा जिले में बहने वाली केन नदी के बारे में यह जानकारी दी. विडंबना यह है कि ये अधिकारी जिस नदी के किनारे अवैध खनन और उसकी धारा को रोके जाने की बात को सिरे से खारिज करते हैं, बांदा जिले में सदर तहसील के अंतर्गत इन्हीं अधिकारियों के सरकारी दफ्तरों से महज दो किलोमीटर की दूरी पर खनन माफिया ने केन नदी को बंधक बना रखा है.

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से निकलने वाली केन नदी की अविरल धारा 400 किमी की दूरी तय कर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में पहुंचती हैं, यहां के खनन माफिया ने सरकार की नाक के नीचे ही इस पर कब्जा जमा लिया. सदर तहसील के अंतर्गत हरदौली घाट पर बालू की हजारों बोरियां डालकर नदी की धारा को करीब-करीब बंद कर दिया गया. नदी के बीचोबीच अवैध रास्ता बनाया गया ताकि माफिया के बालू और मौरंग (मोटी रेत) से लदे ट्रक अफसरों की नजरों से बचते हुए शहर से बाहर जा सकें.

बुंदेलखंड इलाके में अफसरों और खनन माफिया की दुरभिसंधि पर उठने वाले सवाल बांदा में और गहरे हो गए हैं. हरदौली घाट, जहां नदी की धारा को रोका गया है, वहां से 100 मीटर दक्षिण में केन पर सेतु निगम एक पुल का निर्माण कर रहा है और अधिकारी हर दूसरे दिन इसका निरीक्षण करने आ रहे हैं. लेकिन उन्हें भी पिछले तीन माह से चालू यह अवैध बांध नहीं दिखा. अफसर आंखें मूंदे हुए हैं और स्थानीय इंटेलीजेंस यूनिट के भी कान बंद हैं. नतीजतन खनन माफिया इतना बेखौफ हो गया है कि बीच शहर में ही केन का सीना छलनी करने लगा है.illegal mining

हरदौली घाट से 3 किलोमीटर की दूरी पर नदी के किनारे राजघाट इलाके में तो खनन माफिया ने न केवल बांध बनाकर नदी की धारा को रोक दिया है, बल्कि यहां पर भारी भरकम बालू लिफ्टर मशीनों से नदी का सीना चीरकर बालू और मौरंग का अवैध खनन किया जा रहा है. इसके अलावा शहर के कोतवाली नगर क्षेत्र के कनवारा, पथरिया, कोतवाली देहात के छहराव, गिरवां, अतर्रा तहसील में भदौसा थाना क्षेत्र का ग्राम उदयपुर, फतेहगंज का परसिंहपुर और कुलसारी वे मुख्य क्षेत्र हैं जहां बालू और मौरंग का अवैध खनन जोरों पर है.

यहां से रोज 3,000 से ज्यादा ट्रक बालू और मौरंग लादकर उसे बांदा के नजदीकी जिलों कानपुर, फतेहपुर और रायबरेली पहुंचाया जा रहा है. हरदौली घाट के किनारे रहने वाले ब्रजमोहन यादव बताते हैं कि अक्तूबर के पहले हफ्ते से केन के किनारे अचानक अस्थायी बांध बनाकर इसकी धारा को रोक दिया गया. फिर तीन दिन के भीतर इस बांध से होता हुआ एक और रास्ता बनाया गया ताकि बालू और मौरंग से लदे ट्रक बेरोकटोक शहर से बाहर निकल सकें. हालांकि इस अवैध बांध पर केवल माफिया के ट्रकों को ही गुजरने की अनुमति है. आम आदमी इसके नजदीक नहीं आ सके, इसके लिए बाकायदा मार्ग के दोनों ओर कंटीली झाडिय़ां लगाई गई हैं. भूल से ही इस रास्ते पर निकलने पर खनन माफिया के गुर्गे मारपीट पर उतारू हो जाते हैं.

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक, बुंदेलखंड के 13 जिलों में हर वर्ष करीब 400 करोड़ रु. का अवैध खनन हो रहा है. इन इलाकों में सर्वाधिक खनन बालू, मौरंग, पत्थर और मिट्टी का होता है. बांदा में मौरंग की रजिस्टर्ड 26 खदानें हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी, 2012 को और बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1 अक्तूबर, 2012 को अपने आदेश में ऐसी सभी खनन गतिविधियों पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे, जिनके पास पर्यावरण विभाग का सहमति प्रमाणपत्र नहीं है.

इसी आदेश का प्रभाव जानने के लिए बांदा के आरटीआइ एक्टिविस्ट आशीष सागर दीक्षित ने सूचना के अधिकार कानून के तहत प्रशासन से खनन करने के पात्र लोगों और खनन के मानकों के बारे में सूचना मांगी. जिला खनिज कार्यालय से आशीष को 29 नवंबर को जो सूचना दी गई, उसके मुताबिक पूरे जिले में केवल एक ही व्यक्ति के पास खनन के लिए पर्यावरण विभाग का अनापत्ति प्रमाणपत्र है और उसका खनन का पट्टा बांदा जिले की अतर्रा तहसील में आता है.

आशीष कहते हैं, ‘‘प्रशासन से मिली जानकारी से साफ है कि सदर तहसील में केन के किनारे जहां भी बालू और मौरंग का खनन हो रहा है, वह अवैध है. इतना ही नहीं, केन बांदा में पानी का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत है. बांध बनाकर इसकी धारा को रोकना संज्ञेय अपराध है.’’ जिले में खनन के लिए भले ही एक व्यक्ति पात्र हो, लेकिन दो दर्जन से अधिक लोग अवैध रूप से खनन में लगे हुए हैं जिन्हें किसी भी नियम- कानून की परवाह नहीं है. इस वजह से प्रशासन को इस वित्तीय वर्ष में अब तक 10 करोड़ रु. से ज्यादा की राजस्व क्षति उठानी पड़ी है.

केन पर राजघाट के किनारे मशीनों द्वारा हो रहे अवैध खनन के चलते नदी की प्राकृतिक धारा कई भागों में बंट गई है. जो नदी बांदा जिले में प्रवेश करने पर 60 से 70 फुट तक चौड़ी है, वह अवैध खनन के चलते शहर के बीच आते-आते कई भागों में बंट जाती है और किसी भी भाग की चौड़ाई 10-15 फुट से ज्यादा नहीं है. पर्यावरणविद् डॉ. भारतेंदु प्रकाश कहते हैं, ‘‘केन नदी के किनारे बालू और मौरंग के अवैध खनन से दो तरह का नुकसान हो रहा है. पहला नदी के किनारे बालू का प्राकृतिक तटबंध नष्ट हो चुका है और दूसरा तलहटी से अधिक बालू और मौरंग निकालने के कारण नदी का पानी भूमि में तेजी से रिस रहा है. इसके चलते केन के विलुप्त होने की आशंका बढ़ गई है.’’ नदी भले ही अभी विलुप्त न हुई हो, लेकिन बांध बनाकर इसकी धारा रोकने और अवैध खनन का असर दिखने लगा है.

अवैध बांध से करीब 10 किमी की दूरी पर बगीचाडेरा गांव के किनारे आते-आते केन ने महज एक नाले का रूप धारण कर लिया है. यहां इसकी धारा बेहद पतली रह गई है और चौंकाने वाली बात तो यह है कि जिस नदी को गहराई और बहाव के चलते नाव से पार करने में दिक्कतें आती थीं, उसे लोग अब पैदल पार कर रहे हैं. निषादों की बस्ती वाले बगीचाडेरा गांव में लोगों की खेती चौपट हो गई है. इसी गांव के रामबाबू कहते हैं, ‘‘केन के किनारे अलसी, अरहर, चना, गेहूं और मौसमी सब्जियों की खेती होती थी. लेकिन पिछले तीन माह से नदी में पानी के काफी कम होने से सिंचाई का संकट पैदा हो गया है और इस बार नदी के किनारे कोई भी फसल नहीं बोई गई है.’’

बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव और बांदा निवासी नसीमुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं, ‘‘मैं केन नदी के किनारे बसे गांव शेरपुर स्योढ़ा में पैदा हुआ हूं. जीवन में पहली बार मैं इस नदी को इतने बदहाल रूप में देख रहा हूं. अवैध खनन ने नदी का रूप को ही बदल दिया है. इसके लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.’’

बिगड़ैल सरकारी कार्यप्रणाली का एक नमूना यह भी है कि जिला खनिज कार्यालय ने आशीष सागर को खनन के संबंध में किसी प्रकार का कोई मानक निर्धारित न होने की जानकारी दी है, जबकि प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश उप खनिज  नियमावली 2012, (संशोधित)  जारी कर खनन के तौर-तरीके निर्धारित कर रखे हैं. पांच पृष्ठों वाली इस नियमावली के मुताबिक पर्यावरण संरक्षण के लिए नदी की प्राकृतिक धारा से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और खनन में मशीनों का प्रयोग किए जाने से यदि नदी की प्राकृतिक धारा एवं किनारों को कोई क्षति पहुंचती है तो पट्टाधारक पर कड़ी कार्रवाई करने का भी प्रावधान है. लेकिन प्रशासन ने अभी तक केन पर अवैध खनन करने वाले एक भी व्यक्ति को चिन्हित नहीं किया है.

बांदा के सदर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेसी विधायक विवेक सिंह कहते हैं, ‘‘क्या यह संभव है कि पिछले तीन माह से जिले की मुख्य नदी की धारा रोक ली जाए, बालू और मौरंग का अवैध खनन हो और सरकारी एजेंसी को इसकी भनक तक न लगे.’’ वे कहते हैं, ‘‘बीएसपी सरकार में एक शराब कारोबारी ने प्रत्यक्ष रूप से बुंदेलखंड इलाके में खनन पर कब्जा कर रखा था और वर्तमान सरकार में भी यही हो रहा है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संज्ञान में सारी बातें हैं. यह मिलीभगत ही वह वजह है कि अफसरों को अवैध खनन नहीं दिखाई पड़ रहा है.’’

यह खनन माफिया, अफसर और नेताओं की मिलीभगत का ही कमाल था कि एक ओर जहां अवैध खनन ने बुंदेलखंड इलाके की जमीन को छलनी कर दिया, वहीं यहां के नेता लगातार अमीर  होते गए. बांदा में एक पार्टी के जिला अध्यक्ष जो दो वर्ष पहले मोटरसाइकिल से चलते थे, अब महंगी एसयूवी से चलते हैं. नेताओं और माफिया के गठजोड़ का ही कमाल है कि अफसर चाहकर भी अवैध खनन रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा पा रहे हैं.

अगर किसी ईमानदार अफसर ने इन माफिया पर शिकंजा कसने की कोशिश की तो या तो उसका तबादला कर दिया गया या फिर उस पर हमला कर उसे डराने की कोशिश की गई. इसी वर्ष जनवरी में बांदा जिला पंचायत के अधिकारी अमरेंद्र कुमार ने खनन माफिया पर हाथ डाला तो उनकी हत्या कर दी गई. वरिष्ठ बीजेपी नेता और महोबा जिले की चरखारी विधानसभा से विधायक उमा भारती कहती हैं, ‘‘सभी पार्टियों के नेता अवैध खनन को संरक्षण दे रहे हैं. केन नदी के स्वरूप को बिगाडऩे के विरोध में जल्द ही देशव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा.’’

बहरहाल पिछली बीएसपी सरकार में अवैध खनन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली सपा सरकार में जिस तरह से खनन माफिया ने केन नदी की धारा रोककर अवैध खनन करने का दुस्साहस दिखाया है, उससे वर्तमान सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, जो खनन विभाग के मंत्री भी हैं, भी अगर सरेआम हो रहे इस अवैध खनन पर नकेल न कस सकें, तो उन पर भी उंगलियां उठना लाजिमी है.

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