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अर्जित सोनी कैसे लाखों लोगों को ट्रैफिक जाम से बचा रहे!

शहरी बाशिंदों को भीषण जाम से मुक्ति दिलाने के लिए अर्जित सोनी की माइबाइक कंपनी ने साइकिलिंग को शहरी परिवहन का हिस्सा बनाने का लक्ष्य तय किया

अर्जित सोनी अहमदाबाद में साइकिलों के अपने बेड़े के बीच.
अपडेटेड 19 सितंबर , 2025

बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में सस्ती साइकिलों ने हजारों भारतीयों की जिंदगी बदल दी थी, लोगों को पहली बार आजादी से आने-जाने की सुविधा मिली.

गांवों और कस्बों में इसकी लोकप्रियता कभी घटी नहीं लेकिन शहरों में धीरे-धीरे लोग बस और ट्रेन जैसे सामूहिक यातायात पर निर्भर हो गए और अपनी पहली कार खरीदने का सपना देखने लगे.

फिर भी साइकिल के पास अपना एक तुरुप का पत्ता बचा हुआ था, जैसा अर्जित सोनी ने महसूस किया.अर्जित हमेशा कार लेना चाहते थे और उन्होंने दक्षिण मुंबई में चार्टर्ड एकाउंटेंट की प्रैक्टिस के दौरान कार खरीद भी ली. मगर भारतीय सड़कों की हकीकत ने मजा किरकिरा कर दिया. क्यों? पसंदीदा मॉल की पार्किंग में घुसने में 30 मिनट और बाहर निकलने में 45 मिनट लग जाते थे. अर्जित बताते हैं, ''स्टूडेंट रहते हुए मैं लोकल ट्रेन से जाता था और लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए दो साइकिलें खरीदी थीं.

कॉलेज में मेरे दिमाग में आया था कि एक ऐसी सुविधा शुरू की जाए जहां लोग साइकिल किराए पर ले सकें लेकिन उस वक्त आइडिया दबा दिया गया. अब मुझे पूरा यकीन हो गया था.'' यही वजह थी कि ट्रैफिक जाम से परेशान होकर उन्होंने 2014 में माइबाइक (MYBYK) की शुरुआत की, जो भारत की पहली पब्लिक साइकिल शेयरिंग और रेंटल सर्विस थी. इसकी शुरुआत अहमदाबाद से हुई और अब यह मोबाइल ऐप आधारित सेवा आठ शहरों-मुंबई, नागपुर, कोच्चि, जामनगर, उदयपुर, इंदौर और वलसाड—तथा दस से ज्यादा कैंपस में चल रही है. इसके पास 9,000 से ज्यादा साइकिलों का बेड़ा और 50,000 से ज्यादा मासिक ग्राहक हैं और हर महीने करीब 75 लाख रुपए का रेंटल रेवेन्यू आता है.

माइबाइक मेट्रो और बस नेटवर्क जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से इंटीग्रेटेड है—जैसे अहमदाबाद बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम और कोच्चि मेट्रो—ताकि आखिरी छोर की दिक्कत दूर की जा सके. अर्जित बताते हैं, ''हमारी मूल सोच यही थी कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ज्यादा आसान और सुविधाजनक बनाया जाए,'' यह वेंचर शुरू में सीमित था. अर्जित के पापा के दोस्त ने शुरु में 1.25 करोड़ रुपए लगाए थे. सात साल तक इसी तरह चला, फिर 2021 में इसे एवन साइकिल्स और अन्य निवेशकों से 10 लाख डॉलर (करीब 8.65 करोड़ रुपए) का निवेश मिला.

अर्जित मानते हैं कि माइबाइक को उस तरह की फंडिंग नहीं मिल पाई जैसी एक ग्रीन वेंचर को मिलनी चाहिए थी. इसका व्यापक प्रभाव होने पर भी मुनाफा कम रहा क्योंकि बिजनेस मॉडल पब्लिक इन्फ्रास्टक्चर पर निर्भर करता है और साइकिल इस्तेमाल की संस्कृति अभी भी उतनी मजबूत नहीं है जितनी जरूरत है. ऐसे में फोकस बदलना जरूरी हो गया और एक साफ रास्ता सामने आया. अर्जित कहते हैं, ''धीरे-धीरे हमने महसूस किया कि अपने विजन को पूरा करने के लिए पॉलिसी और इन्फ्रास्टक्चर का मजबूत सपोर्ट चाहिए, खासतौर पर साइकिल के अनुकूल सड़कें, छाया और सुरक्षा. चूंकि ये चीजें धीरे-धीरे बन रही हैं, इसलिए हमने रणनीतिक तौर पर ऐसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है जहां तुरंत असर डाला जाए और बड़े पैमाने पर काम किया जा सके.'' अब कंपनी का मुख्य फोकस माइबाइक कैंपस (कैंपस के भीतर सफर आसान बनाने के लिए) और माइबाइक कार्गो (भारत के 13 लाख लास्ट माइल डिलिवरी राइडर्स जैसे स्विगी, जोमैटो आदि) पर है. अर्जित के मुताबिक, यह सेगमेंट 12 से 18 फीसद की सालाना ग्रोथ रेट से तेजी से बढ़ रहा है.

अर्जित ने डिलिवरी राइडर्स के लिए खासतौर पर एक इलेक्ट्रिक बाइक तैयार करवाई और शुरुआती 200 ई-बाइक्स सफल रहीं. मार्च 2026 तक 1,500-2,000 नई ई-बाइक्स लॉन्च होंगी और अर्जित को उम्मीद है कि 2026 में उनका मंथली रिकरिंग रेवेन्यू (एमआरआर) दोगुना हो जाएगा. वे कहते हैं, ''माइबाइक कार्गो के बढ़ने के साथ हम मुनाफे की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं.''

सस्टेनेबल अर्बन मोबिलिटी के पैरोकार अर्जित 2014 की एक 10 मिनट की मुलाकात याद करते हैं, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उस समय अर्जित को अहमदाबाद नगर निगम से पहला बड़ा ब्रेक मिला. उनके शब्दों में, ''मुझसे कहा गया था कि अपना आइडिया दो मिनट में बताओ. मैंने 90 सेकंड में खत्म किया. मोदीजी उससे तुरंत सहमत हो गए और उन्होंने माइबाइक को 'बाइसिकल फीडर सर्विस' नाम दिया, ताकि यह बीआरटीएस से जुड़कर काम कर सके.'' वह बहुत समय पहले की बात है. आज अर्जित इंतजार कर रहे हैं कि शहरों का इन्फ्रास्टक्चर उस आइडिया के बराबर हो जाए, जो कई मॉनसून पहले एक सुबह उनके दिमाग में आया था.

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