अमेरिका में जिन लोगों को एच1बी वीजा मिल गया है और जो पाना चाहते हैं, वे बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि 20 जनवरी को डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद उनकी स्थिति क्या होगी, वहीं भारत के करीब 7,25,000 अवैध आप्रवासियों के लिए खतरा कहीं ज्यादा गंभीर है. ट्रंप ने गांठ बांध ली है कि राष्ट्रपति बनने के पहले ही दिन वे तमाम अवैध आप्रवासियों को बड़े पैमाने पर इस तरह बाहर निकालेंगे जैसा अमेरिका ने पहले कभी नहीं देखा.
अमेरिका में करीब 1.10 करोड़ अवैध आप्रवासी हैं. इनमें से तकरीबन 50 फीसद मैक्सिको के हैं और उसके बाद अल सल्वाडोर और भारत के करीब सात-सात फीसद. 2017 से 2020 तक पहले कार्यकाल में ट्रंप ने सालाना औसतन 2,00,000 अवैध आप्रवासियों को बाहर निकालना तय किया था. अगर कोविड महामारी के साल को छोड़ दें तो बाइडन प्रशासन ने भी अपने आखिरी दो साल में औसतन 2,00,000 अवैध आप्रवासियों को बाहर का रास्ता दिखाया.
दूसरे कार्यकाल में ट्रंप के नीति निर्माताओं का इरादा इसे बढ़ाकर पहले साल 10 लाख और बाद में इससे भी ज्यादा करने का है. इनमें भारतीयों की तादाद काफी ज्यादा होने की संभावना है. अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्तूबर 2023 और सितंबर 2024 के बीच 90,415 भारतीय जायज दस्तावेजों के बिना अमेरिका में घुसने की कोशिश करते पकड़े गए. वे ज्यादातर गुजरात, पंजाब, हरियाणा और कुछ उत्तर प्रदेश के थे. अलबत्ता यह देखना होगा कि नया प्रशासन उन्हें कितनी तेजी से निर्वासित कर पाता है क्योंकि उन्हें वापस भेजने से पहले लंबी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है.
इनमें ज्यादातर गैर-नागरिकों को डिटेंशन सेंटर या हिरासत केंद्रों में भेज दिया जाता है और उन्हें इमिग्रेशन जजों के सामने कानूनी कार्रवाई का सामना करना होता है. औपचारिक सुनवाई प्रक्रिया की जरूरत होती है, जिसमें अवैध प्रवेश के आरोपियों को कानूनी सलाह लेने का हक होता है, जिसमें महीनों लग सकते हैं. जज के फैसला सुनाने के बाद ही अमेरिकी इमिग्रेशन और कस्टम एंफोर्समेंट (आइसीई) अधिकारी उन्हें निकालने का काम शुरू कर सकते हैं.
उन्हें तभी निकाला जा सकता है जब पहले संबंधित देश को सूचित कर दिया गया हो और उसने उन्हें अपने नागरिक के रूप में स्वीकार कर लिया हो. पिछले साल बाइडन प्रशासन ने 1,500 भारतीयों को चार्टर उड़ानों से वापस भेजा था. अमेरिकी सरकार इन उड़ानों का खर्च उठाती है या इन आप्रवासियों को प्रायोजित करने वालों से पैसा वसूलती है. जिन भारतीयों के सिर पर तत्काल निर्वासन की तलवार लटकी है, वे अपने तमाम कानूनी विकल्प आजमा चुके 17,940 अवैध आप्रवासी हैं.
अलबत्ता मुंबई के दिग्गज इमिग्रेशन वकील और सलाहकार सुधीर शाह का कहना है कि बड़े पैमाने पर तत्काल निर्वासन का खतरा बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया हो सकता है. उन्हें नहीं लगता कि बिना दस्तावेज वाले लोगों को जल्द अमेरिका से विमान में भरकर निकाला जाएगा.
आप्रवासन के इच्छुक लोगों को पांच दशक से ज्यादा वक्त से सलाह दे रहे शाह कहते हैं, "अवैध आप्रवासी अमेरिका में इसलिए फलते-फूलते हैं क्योंकि अमेरिकी उन्हें चाहते हैं. ठीक उसी तरह जैसे भारतीय आधे मेहनताने पर कई-कई घंटे काम करने के लिए अपने राज्य से दूसरे राज्य के लोगों को बुलाते हैं और कम मेहनताने पर काम करवाते हैं. यही नहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी के शासन वाले राज्य इसका विरोध करेंगे और अवैध आप्रवासियों को आश्रय देंगे."
वे आगे कहते हैं, "ज्यादातर भारतीय आप्रवासी प्रायोजक और मेजबान की मदद से वहीं बने रहते हैं जहां वे काम भी करते हैं. इन मेजबानों के जरिए उन्हें अच्छे वकील भी मिल जाते हैं, जो उन्हें शरण पाने की पेचीदा प्रक्रिया से गुजरने का रास्ता दिखाते हैं."
अवैध आप्रवासन के इस उद्योग के फलने-फूलने की बड़ी वजह यह है कि शरण चाहने वाले काम का अधिकार—एक तरह का कानूनी दस्तावेज या परमिट—हासिल कर पाते हैं. इसका मतलब है कि वे शरण की अर्जी दाखिल होने के 150 दिन बाद कानूनी तौर पर काम करना शुरू कर सकते हैं. बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया जा सकता है और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं और कुछ मामलों में चिकित्सा बीमा मिल जाता है.
अहमदाबाद में रहने वाले अमेरिकी वीजा कंसल्टेंट ललित आडवाणी कहते हैं, "प्रवासी परिवारों के मन में साफ होता है कि वे कम से कम पहले तीन से पांच साल अपने प्रायोजक के साथ काम करेंगे और फिर आगे निकल जाएंगे. इस दौरान वे प्रायोजक को अपना बकाया कर्ज चुकाते हैं, कामकाज सीखते हैं, जबान सीखते हैं और संस्कृति में अपने को ढालते हैं. इस बीच उनकी शरण की अर्जी आगे बढ़ती रहती है."
शरण की अर्जी का नतीजा आने में औसतन चार साल और ज्यादा से ज्यादा सात साल का वक्त लगता है. नया ट्रंप प्रशासन हालांकि मामलों के ज्यादा तेजी से निबटारे पर जोर दे सकता है. अगर भारतीय अवैध आप्रवासियों के झुंड के झुंड अमेरिका से वापस भेजे जाते हैं, तो यह मोदी सरकार के लिए जबरदस्त राजनैतिक सिरदर्द बन सकता है.