
मोहिंदर अमरनाथ इतिहास बनाने के करीब होने के बावजूद बिना किसी जल्दबाजी के धीमी गति से गेंद फेंकने के लिए आगे बढ़ते हैं. माइकल होल्डिंग की नजरें चौकन्ने हिरण की मानिंद क्रीज पर जमी हैं. अंपायर डिकी बर्ड ने हमेशा की तरह एकदम चुस्ती से अपनी अंगुली उठाकर 12 बजे का इशारा किया. आप इसे खेल का आम क्षण कह सकते हैं. लेकिन यह जीत इस मायने में अविश्वसनीय थी कि इसे हासिल करने वाली टीम को बेहद कमजोर आंका गया था.
कभी दुनिया में सोने की चिड़िया की पहचान बनाकर इतराने वाला भारत एक नई विश्व व्यवस्था को जन्म दे रहा था. यह क्षण केवल जीत तक सीमित नहीं था बल्कि इसने स्पष्ट तौर पर एक युग का अंतर निर्धारित कर दिया. 'पहले' मनोपटल पर एक लंबी रात जैसा साया तारी रहता था. भारत 37 वर्ष पहले राजनैतिक पराधीनता की बेड़ियां तोड़ चुका था; लेकिन 25 जून, 1983 को लॉर्ड्स में कपिल देव नाम के एक सांवले, वरिष्ठ खिलाड़ी ने भारत को एकदिवसीय विश्व कप में जीत दिलाकर उपनिवेश शासन के अधीन रह चुके लोगों के मन से गुलामी की भावना खत्म कर दी.
25 जून कई मायने में बेहद खास तारीख है. 1932 में इसी दिन भारत ने टेस्ट टीम में जगह बनाई थी. अब गुमनाम हो चुके दिग्गज मोहम्मद निसार ने उसी लॉर्ड्स में हमारी पहली अंतरराष्ट्रीय पारी में पांच विकेट चटकाए. हालांकि, भारत 158 रन से हार गया. कुछ अपवादों को छोड़कर, दशकों तक यही सिलसिला जारी रहा. इसके विपरीत, '80 के दशक की शुरुआत में क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम अपने उरूज पर रही. इसका सबूत 1975 और 1979 के वनडे विश्व कप में उसकी जीत भी है. भारत ने दोनों ही विश्वकप में केवल एक मैच जीता था! किसी ने भी भारत को जीत की कल्पना भी नहीं की थी.
उस समय तक भी नहीं, जब फाइनल में जगह बनाकर टीम खुद ही हैरान थी. लेकिन यही वह पल था जब क्रिकेट भारत के मनोपटल पर छाना शुरू हुआ. इस शुरुआत का प्रणेता कपिल देव को ही माना जाता है लेकिन शाब्दिक और प्रतीकात्मक तौर पर यह कमजोर लोगों की जीत थी. गुमनाम खिलाड़ी बलविंदर संधू ने गॉर्डन ग्रीनिज को मैदान से बाहर भेजकर फाइनल की दिशा ही मोड़ दी, रोजर बिन्नी 20 वर्षीय जैजमैन की तरह स्विंग करते नजर आए तो यशपाल और मदन लाल के साहस ने विश्व क्रिकेट में एक नई इबारत लिख दी.
भारत में यह खेल अभिजात वर्ग का शगल माना जाता था जिसका नशा अब आम लोगों के सिर चढ़ रहा था. गांव से लेकर महानगर तक, हर किसी को मिलकर सफलता का जश्न मनाने का कारण मिल गया. कई अकादेमी अस्तित्व में आईं. भारतीय क्षितित पर नए-नई सितारे चमकने लगे. समय के साथ भारत दर्शकों की संख्या और राजस्व के मामले में एक वैश्विक शक्ति के तौर पर उभरा. जब हमने 2011 में फिर से जीत हासिल की तो हम अनुभवहीन खिलाड़ी नहीं थे, बल्कि क्रिकेट के क्षेत्र में बादशाहत हासिल कर चुके थे.
क्या आप जानते हैं?
25 जून वह दिन है जब भारत ने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया, यह 1932 में लॉर्ड्स में सी.के. नायडू की कप्तानी में हुआ. वही तारीख, वही जगह, 51 साल बाद नियति ने भारत को एक युगांतकारी सफलता दिलाई.
इंडिया टुडे के पन्नों से

अंक (अंग्रेजी): 15 जुलाई, 1983
कवर स्टोरी: लॉर्ड्स में चमत्कार
● भारतीय टीम जीत को करीब देख शेरों के झुंड की तरह शिकार के लिए आगे बढ़ी. कपिल खुद झटके सहने में सक्षम स्प्रिंग जैसे थे, अपनी मुट्ठियां भींच रहे थे और खेल रहे थे, अपनी एड़ियों पर ऊपर-नीचे उछल रहे थे. उनकी ऊर्जा पूरे मैदान में महसूस की जा रही थी. गोम्स को स्लिप में गावस्कर ने लपका और चोटिल लॉयड को कपिल ने आउट कर दिया. 76 रन पर छह विकेट के साथ इतिहास रचे जाने के कगार पर था
● तनाव तब स्पष्ट तौर पर और बढ़ गया जब जेफ डुजॉन और मार्शल के बीच सातवें विकेट के लिए साझेदारी ने स्कोर को 119 रन तक पहुंचा दिया, जिसके बाद दूसरी स्पेल के लिए वापस आए मोहिंदर अमरनाथ ने डुजॉन को बोल्ड करके अहम पारी को संभाला. इसके बाद उन्होंने मार्शल का विकेट लिया. कपिल ने रॉबर्ट्स को आउट किया और अमरनाथ ने होल्डिंग को आउट करके ताबूत में आखिरी कील ठोक दी
—श्रीधरन पिल्लई के साथ दिलीप बॉब

दूर-दूर तक असर
> हॉकी केवल नाममात्र के लिए राष्ट्रीय खेल था. क्रिकेट चेतना में बसा था
> प्रायोजकों, टीवी अधिकारों के माध्यम से पैसा बहता रहा और खिलाड़ियों का मूल्य कई गुना बढ़ गया. बुनियादी ढांचा बढ़ा और विभिन्न अकादमी फलने-फूलने लगीं
> आने वाले समय में सचिन तेंडुलकर जैसे सितारों ने सुनिश्चित किया कि भारत एक क्रिकेट शक्ति बना रहे
> हमारे प्रशंसक, स्थानीय और प्रवासी दोनों ही एक बेजोड़ ताकत बन गए
> भारत जल्द ही क्रिकेट का आर्थिक केंद्र बन गया और आइपीएल युग की शुरुआत हुई
- सुनील मेनन
साथ में अमिताभ श्रीवास्तव