
घर से काम करना आखिर इतना आकर्षक क्यों है? क्या इसकी वजह घर का बना खाना आसानी से उपलब्ध होना है या आपको सिर्फ एक क्यूबिकल में बैठकर व्हाइट कॉलर कर्मचारी की तरह काम में जुटे नहीं रहना पड़ता? वजह चाहे जो भी हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अधिकांश पेशेवर अपने घर को दफ्तर बनाना चाहते हैं. प्राथमिकता तो स्पष्ट है ही, देश का मिज़ाज सर्वे में करीब 70 फीसद उत्तरदाताओं ने इससे सहमति जताई कि दफ्तर से दूर रहकर काम करने पर वे ज्यादा उत्पादक साबित होंगे. खासकर 18-24 आयु वर्ग के युवाओं के बीच यह राय रखने वालों का आंकड़ा 75 फीसद है.
सबसे अजीब बात यह है कि कर्मचारियों को सभी सुविधाएं मुहैया कराने के लिहाज से डिजाइन किए गए कार्यस्थल वाली कंपनियां भी इसी तरह का प्रतिरोध झेल रही हैं. अब गूगल इंडिया को ही लीजिए, जो भारत में सबसे ज्यादा एम्प्लाइ फ्रेंड्ली कंपनियों में एक है. कर्मचारियों को यहां पर मुफ्त भोजन मिलता है, और फिटनेस सेंटर, स्पा मसाज और झपकी लेने के लिए अलग कमरे की सुविधा है...अगर लिफ्ट से उतरने का मन न हो तो वे पूरी मस्ती के साथ स्लाइड करते हुए नीचे आ सकते हैं. फिर भी, दफ्तर आकर काम करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाने के निर्णय से जून 2023 में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कर्मचारियों की नाराजगी फूट पड़ी. शायद, इस पूरे मसले का दफ्तर के माहौल से उतना ज्यादा लेना-देना नहीं है, जितना ऑफिस पहुंचने में होने वाली दिक्कतों से है.
ऑफिस कम्यूट प्लेटफॉर्म मूवइनसिंक की तरफ से प्रकाशित रिपोर्ट '2023 ऑन व्हील्स: हाउ इंडिया मूव्ड इन सिंक' में बताया गया है कि औसतन प्रत्येक भारतीय को काम पर जाने के लिए 20 किलोमीटर की यात्रा करने में 59 मिनट लगते हैं. भारतीय कर्मचारी अपने समय का 8 फीसद (तकरीबन दो घंटे) दफ्तर आने-जाने में बिताते हैं.
बेंगलूरू की एक ग्लोबल आइटी कंपनी में काम करने वाली 39 वर्षीया साक्षी मेहरोत्रा कहती हैं, "दुनिया के ज्यादातर बड़े शहरों में यातायात से जुड़ी समस्याएं होती हैं लेकिन फिर भी ड्राइवर यातायात नियमों का पालन करते हैं और अपनी लाइन में खड़े रहते हैं. भारत में आपका तनाव दोगुना बढ़ जाता है क्योंकि कोई भी नियम-कायदे का पालन नहीं करता. आपको हमेशा यह चिंता सताती रहती है कि कोई आपकी कार को टक्कर मार देगा या आप किसी और की कार को टक्कर मार देंगी."
2015 में फोर्ड मोटर कंपनी की तरफ से भारत समेत पांच एशियाई देशों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि वाहनों की भीड़ (63 फीसद) और पार्किंग (56 फीसद) उन कारणों की सूची में सबसे ऊपर हैं जो भारतीय वाहन चालकों की चिंता की सबसे बड़ी वजह होती है. और लंबी यात्राएं मानसिक स्वास्थ्य पर बुरी तरह से नकारात्मक असर डालती हैं.
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. विशाल रस्तोगी कहते हैं, "लंबे समय तक गाड़ी चलाने से मस्कुलोस्केलेटल यानी पूरे शरीर की हड्डियों, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द हो सकता है. यही नहीं, जिन महीनों में प्रदूषण ज्यादा होता है तब तो हानिकारक पार्टिकुलेट मैटर के संपर्क में आना स्वास्थ्य के लिए जोखिम और बढ़ा देता है."
इससे यह बात अच्छी तरह समझ आती है कि लोगों को वर्क फ्रॉम होम क्यों बेहतर लगता है, और यह भी पता चलता है कि देश का मिज़ाज सर्वे में करीब 70 फीसद उत्तरदाताओं ने यह क्यों कहा कि अगर उन्हें सप्ताह में केवल चार दिन 40 घंटे कार्य करना हो तो वे खुशी-खुशी हर दिन कुछ घंटे ज्यादा काम करना पसंद करेंगे. आखिरकार, इसका मतलब यह होगा कि उन्हें दो घंटे गाड़ियों की चिल्ल-पों नहीं झेलनी पड़ेगी और सरिया ढोते रिक्शों, लंबी दूरी वाले ट्रकों, खराब सिग्नलों और गाड़ियों के बीच अचानक आ जाने वाली गायों की वजह से वाहन चलाते वक्त होने वाले बेजा तनाव से थोड़ी राहत मिलेगी.
खुद की तलाश
ज्यादातर उत्तरदाताओं (62.7 फीसद) को हफ्ते में 40-70 घंटे काम करने को लेकर कोई गुरेज नहीं है. लेकिन किसी भी अन्य आयु वर्ग के लोगों की तुलना में 18-24 वर्ष के उत्तरदाताओं ने हफ्ते में 40 घंटे से कम काम की ज्यादा जरूरत (24 फीसद) जताई. जाहिर है कि युवा पेशेवरों को काम के साथ-साथ खुद को तलाशने-तराशने में अधिक रुचि है. यह अपने शौक पूरे करने, घूमने-फिरने, या लोगों के साथ घुलने-मिलने के अधिक अवसर उपलब्ध होने का नतीजा हो सकता है. और फिर, साउंड बाथिंग क्लास से लेकर स्पीड डेटिंग नाइट्स तक और माउंटेन हाइक से लेकर सिनेमा स्क्रीन तक हर तरह के अनुभव लेना अब बेहद सुलभ और किफायती दोनों ही है.
पुणे स्थित ट्रोव एक्सपीरियंस के सह-संस्थापक रौनक मुनोट बताते हैं, "दुनिया किसी चीज को हासिल करने के बजाए उपयोग के अनुभव की ओर बढ़ रही है. बातचीत अब इस पर केंद्रित होती है कि आपने क्या किया है, आपने कौन-सी किताब पढ़ी है, आपने कौन-सा नया शो देखा है, आपने कौन-सी नई जगह देखी है? अब किसी की सामाजिक स्थिति इन्हीं सब बातों से निर्धारित होती है."
कामकाज और निजी जीवन में संतुलन केवल मनोरंजन और दफ्तर के बाहर के अनुभवों तक सीमित नहीं है. यह कर्मचारियों को उनकी सेहत पर ध्यान देने के लिए समय देता है.
हां, चाहिए पितृत्व अवकाश
देश का मिज़ाज सर्वे में करीब 80 फीसद उत्तरदाताओं की यही राय थी कि पितृत्व अवकाश अनिवार्य होना चाहिए. वहीं, 85.6 फीसद का मानना है कि महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म अवकाश मिलना चाहिए, यही नहीं 85.3 फीसद पुरुषों ने भी इस विचार से सहमति जताई. बेंगलूरू के अल्टियस हॉस्पिटल्स की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रिया पाटील कहती हैं, "महिलाओं की सेहत की फिक्र करने की सबसे बेहतर शुरुआत यही हो सकती है कि उन पर दबाव को घटाया जाए. फिर अगर किसी को मासिक धर्म के समय बहुत दर्द होता है या वह रजोनिवृत्ति के कठिन दौर से गुजर रही है तो उसे आराम करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए."
घर से काम, फुर्सत का ज्यादा वक्त और अपनी सेहत को खासी प्राथमिकता देने के बावजूद ज्यादातर उत्तरदाताओं (74 फीसद) का मानना है कि उनकी मौजूदा नौकरी उन्हें कामकाज और निजी जिंदगी के बीच संतुलन का मौका देती है. जाहिर है, स्थिति इतनी खराब नहीं है कि लोगों के पास खुद के लिए समय न बचे. लेकिन निश्चित तौर पर कुछ सुधार की जरूरत भी है.
24% 18-24 साल के उत्तरदाता, जो सभी आयु वर्गों के बीच सबसे ज्यादा है, जरूरी उत्पादकता को बनाए रखने के लिए दफ्तर में 40 घंटे से कम काम करना चाहते हैं. वे सुखद निजी जीवन बिताना चाहते हैं

प्र: क्या आपकी मौजूदा नौकरी में काम और जीवन के बीच संतुलन बना पाने की संभावना है?
तीन-चौथाई उत्तरदाताओं को यह अहम लक्ष्य हासिल कर लेने की उम्मीद है
प्र: काम में उत्पादकता और सुखद निजी जीवन के बीच संतुलन के लिए आदर्श स्थिति में कितने घंटे काम करना चाहिए?
ज्यादातर उत्तरदाताओं ने काम के मानक घंटों का समर्थन किया; ज्यादातर युवक ही कम घंटे चाहते हैं
प्र: क्या आप हफ्ते में चार दिन काम का समर्थन करेंगे भले ही आपको 40 घंटे पूरे करने के लिए हर रोज अतिरिक्त काम करना पड़े?
ज्यादातर लोग आने-जाने में लंबा वक्त लगने और फुरसत की जरूरत की ओर इशारा करते हैं
प्र: क्या आपको लगता है कि कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम का विकल्प दिया जाना चाहिए?
करीब 70 फीसद ने यह कहते हुए इस विचार का समर्थन किया कि इससे लोगों की प्रोडक्टिविटी बढ़ती है
प्र: क्या आप मानते हैं कि महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश मिलना चाहिए?
बच्चों के पालन-पोषण के तरीकों में बदलाव के साथ ही इस सुझाव को जबरदस्त समर्थन मिल रहा है
प्र: क्या आप मानते हैं कि देश में प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में पितृत्व अवकाश मिलना चाहिए?
इस मुद्दे पर स्त्री-पुरुषों के बीच आम सहमति है
85% पुरुष उत्तरदाता महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश के विचार का समर्थन करते हैं