हिंद-प्रशांत वह इलाका है जहां दुनिया पर वर्चस्व का अगला बड़ा खेल खेला जा रहा है. यहां चीन अपनी आर्थिक, सैन्य, कूटनीतिक और टेक्नोलॉजी की ताकत के बूते क्षेत्र के ऊपर एकाधिपत्य थोपने की कोशिश कर रहा है. अब ज्यादातर देशों ने ध्रुवीय संतुलनकारी शक्ति के रूप में यहां भारत को मान्यता दी है.
यह भारत के लिए खतरे भी पेश करते हैं और मौके भी. इस स्थापना के बारे में सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि भारत को चीन और अमेरिका की प्रतिद्वंद्विता और दुनिया को लेकर उनके अलग-अलग नजरियों से पैदा खतरों से सावधान रहना चाहिए. भारत को देखना चाहिए कि यह टकराव में न बदले. और दुनिया भारत से यही भूमिका निभाने की उम्मीद कर रही है. अन्य खतरे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विताओं, आतंकवाद, सीमा पार से तस्करी और साइबर खतरों से उभर रहे हैं.
जनरल पांडे की राय में, दुनिया की अधिकांश आर्थिक गतिविधियां हिंद-प्रशांत पर केंद्रित हैं, इसलिए अपनी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था और जनसांख्यिकी के साथ भारत इसे 'अवसर का रंगमंच’ मान सकता है. भारत इंडो-पैसिफिक आर्मी चीफ्स कॉन्फ्रेंस (सितंबर 2023 में दिल्ली में आयोजित) सरीखे रणनीतिक जुड़ावों के जरिए बहुपक्षीय निकायों (जैसे इंडो-पैसिफिक ओशंस इनिशिएटिव) के जरिए, मानवीय सहायता के जरिए और ज्यादा समुद्री क्षेत्र जागरूकता तथा नौसेना की अतिसक्रिय भूमिका के जरिए 'अपनी स्थिति का फायदा उठा’ सकता है.
जनरल पांडे ने कहा कि चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति 'स्थिर लेकिन संवेदनशील’ है, सेना कड़ी नजर रखे हुए है और भारत की टुकड़ियों तथा सैन्य साजो-सामान की तैनाती 'बेहद मजबूत’ है. क्षमताएं बढ़ाने के लिए भारत एलएसी तक सड़क सरीखे बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, बेहतर निगरानी और सटीक लक्ष्य साधने और बेहतर संचार (5जी) सरीखी टेक्नोलॉजी अपना रहा है.
जमीन से परे युद्ध के खतरे पर जोर देते हुए जनरल पांडेय ने कहा कि भारत तेजी से विशिष्ट टेक्नोलॉजी (एआई, क्वांटम, इंटरनेट ऑफ थिंग्ज, मशीन लर्निग, साइबर सर्विलांस) का फ्यूजन अपना रहा है, उनके विकास के लिए स्वदेशी स्टार्ट-अप्स से हाथ मिला रहा है, और सैन्य रूप से उनका फायदा उठाने के तरीके विकसित कर रहा है.
चीन की विशाल नौसैन्य शक्ति की तरफ इशारा करते हुए पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि इसका मुकाबला करने के लिए भारत को राष्ट्रीय समुद्री शक्ति बनने की दिशा में वाणिज्यिक जहाजरानी के निर्माण के साथ-साथ ब्लू वॉटर बलों और खासकर डेस्ट्रॉयर, फ्रिगेट, तीसरे भारी विमानवाहक और एटमी पनडुब्बियों में निवेश करना होगा. मालदीव की हालिया घटनाओं के मद्देनजर एडमिरल लांबा ने भरोसा दिलाया कि भारत के पास मॉरिशस, श्रीलंका, सेशेल्स वगैरह में रडार शृंखला है, उसने 20 देशों के साथ श्वेत जहाजरानी समझौतों पर दस्तखत किए हैं और अमेरिका तथा अन्य देशों के साथ खुफिया साझेदारी समझौते किए हैं. एडमिरल लांबा ने कहा, "हिंद-प्रशांत में जो हो रहा है, उसे लेकर हर सेक्टर में जागरूकता की दरकार है."
भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया ने कहा कि भारत को हवाई और अंतरिक्ष क्षेत्रों में और खासकर इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रीकॉन्संस (आईएसआर) और टैक्टिकल नैविगेशन (एनएवी) में किस तरह अपनी क्षमताओं के आमूलचूल कायापलट की जरूरत है. जनरल पांडेय की तरह उन्होंने भी भारत की देश में ही विकसित एआई, एमएल और क्वांटम टेक्नोलॉजी क्षमताओं के बारे में बात की. उन्होंने कहा, "हिंद-प्रशांत में सुरक्षा के लिए भारत को इन नई प्रौद्योगिकियों में नेतृत्व करने की जरूरत है."
चीन के साथ रिश्तों को कैसे संभाला जाए, इस पर पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने कहा कि चूंकि विश्वास की कमी है, इसलिए हिंद-प्रशांत अहमियत अख्तियार कर लेता है. ठीक यहीं भारत और उसके क्वाड पार्टनर ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका बहुपक्षवाद - ज्यादा सहयोगात्मक ढांचे और ज्यादा सहकारी सुरक्षा - की नई डायनेमिक्स बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ के 49 देश इस क्षेत्र का हिस्सा हैं और भारत को उनके साथ जुड़ना चाहिए. उन्होंने कहा, "हिंद-प्रशांत में हमने जो रिश्ते बनाए हैं, उनकी रूपरेखा कई तरीकों से आज चीन के साथ हमारे अंतर्विरोधों और टकरावों से तय हो रही है." उन्होंने कहा कि चीन से निबटते वक्त कूटनीति और डर बनाए रखने वाली युक्तियां ही असरदार ताकत हैं.
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत तरणजीत सिंह संधू और कारनेगी इंडिया के डायरेक्टर रुद्र चौधरी की टिप्पणियों मे भी क्वाड प्रमुखता से उभरा. संधू ने बताया कि भारत-अमेरिका रिश्ते न केवल सुरक्षा मामलों में मजबूत हैं बल्कि हेल्थकेयर, टेक स्टार्ट-अप और इंडस्ट्री-सरकार के संबंधों में भी मजबूत हैं, जिन्हें यूएस-इंडिया इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आइसीईटी) के माध्यम से बढ़ावा मिल रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि क्वाड के जरिए समूचे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इसकी अहमियत है. चौधरी ने विस्तार से बताया कि क्वाड में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, आपूर्ति शृंखला को लचीला बनाए रखने वाले और अन्य वर्किग ग्रुप हैं. यह सब लोकतंत्र/अच्छे राजकाज को मजबूत करता है, जो चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए बेहद जरूरी है.
मोटवाणी जडेजा फाउंडेशन की संस्थापक निवेशक और परोपकारी आशा जडेजा ने कहा कि उनके सरीखे वेंचर कैपिटलिस्ट रक्षा प्रौद्योगिकी में निवेश कर रहे हैं और इसका सबसे अहम घटक एआई है क्योंकि यह पावर का सबसे बड़ा स्रोत होने जा रहा है. हालांकि उन्होंने एआई को बहुत ज्यादा रेगुलेट करने की भारतीय अफसरशाही की कथित योजनाओं पर निराशा जाहिर की. अलबत्ता चौधरी ने उनका प्रतिवाद करते हुए कहा कि भारत सरकार ने एआई पर दूरअंदेशी रुख अपनाया है और उसे अत्यधिक नियमित करने को कोशिश नहीं कर रही.
हिंद-प्रशांत में चीन के खतरे का मुकाबला कैसे किया जाए, इस बारे में आखिरी और निर्णायक बात सेना प्रमुख ने कही. जनरल पांडेय ने कहा, "हमें मजबूत होने की जरूरत है - इससे डरकर हमारे विरोधी बाज आएंगे और देश के विकास पथ में रोड़े नहीं अटकाएंगे."