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सिग्नल स्कूल : संघर्ष से सफलता की ओर ले जाने वाली बस

अहमदाबाद में सड़क पर रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए 12 चमकीले पीले रंग की बसें स्कूलों के रूप में काम कर रही हैं

सिग्नल स्कूल अहमदाबाद
सिग्नल स्कूल अहमदाबाद
अपडेटेड 4 फ़रवरी , 2024

आठ साल की अनीता सोलंकी की शिक्षा की शुरुआत पिछले साल की गर्मियों में हुई जब एक चमकीले पीले रंग की बस अहमदाबाद में उसके गरीब इलाके में घुसी. एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर की बेटी अनीता अपना गुजारा करने के लिए संघर्ष कर रही थी, आज वह शहर के एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल में पढ़ती है.

अनीता की तरह ही तकरीबन 415 गरीब या बेघर बच्चों को ऐसी ही 12 बसों से ब्रिज कोर्स पूरा करने के बाद नियमित स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है. ये सभी बच्चे ऐसे थे जो या तो कभी स्कूल नहीं गए या फिर उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इन स्कूल बसों को 'सिग्नल स्कूल' भी कहा जाता है.

मार्च 2022 में अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) की ओर से गुजरात राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (जीएसएलएसए) के सहयोग से शुरू की गई ये बसें सड़क पर रहने वाले छह से 14 साल की उम्र के बच्चों को सुबह तकरीबन 7-8 बजे ले जाती हैं और दोपहर में वापस छोड़ जाती हैं. नवीनीकृत और एक क्लासरूम के रूप में बदल दी गई प्रत्येक बस में एक ब्लैकबोर्ड, शैक्षणिक खिलौने, फर्नीचर, पीने का पानी, एक छोटा पंखा, एक एलसीडी टेलीविजन, सीसीटीवी कैमरे और यहां तक की वाइफाइ कनेक्शन होता है.

लेकिन यह गैजेट या सुविधाएं नहीं, बल्कि वह गर्मजोशी है जिसके साथ शिक्षक हर सुबह उनका स्वागत करते हैं जो बच्चों को हर दिन इन बसों में लौटने को प्रेरित करता है. प्रत्येक बस में नगर निगम की ओर से नियुक्त दो शिक्षक तैनात किए जाते हैं. ये शिक्षक बच्चे की उम्र और क्षमता के हिसाब से उन्हें 10 महीने तक बुनियादी शिक्षा प्रदान करते हैं. फिर बच्चों को नजदीकी सरकारी या अनुदान प्राप्त स्कूल में दाखिला दिलाया जाता है.

अनीता अब तक ब्रिज कोर्स पूरा कर चुके तीन बैचों में से दूसरे बैच का हिस्सा थी. महज छह महीने के भीतर वह अपने बैच की "सबसे प्रतिभाशाली बच्ची" के रूप में उभरी और उसे क्रैंबिज आइजीसीएसई स्कूल में दाखिला मिल गया. म्युनिसिपल स्कूल बोर्ड, अहमदाबाद के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. लगधीर देसाई कहते हैं, "स्कूल ने यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ली है कि वह पढ़ाई जारी रखे." 

लेकिन अनीता के पिता को उसे स्कूल भेजने के लिए मनाना इतना आसान नहीं था. देसाई कहते हैं, "हमें माता-पिता को नियमित रूप से परामर्श देना होता है. दूसरी ओर, बच्चे बहुत उत्साहित और निष्ठावान हैं." शिक्षक बच्चों की अन्य चीजों का भी ध्यान रखते हैं - मसलन, उनको नियमित रूप से बाल कटवाने के लिए भी ले जाते हैं और उन्हें किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य शैक्षणिक सामग्री भी देते हैं जिससे वे आगे स्कूल में दाखिले के लिए तैयार हो सकें. नियमित स्कूल में दाखिला कराने के बाद भी अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए बच्चे की प्रगति पर नजर रखते हैं कि वे पढ़ाई न छोड़ें. 

देसाई का कहना है कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने 2022 में इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाई थी और वे इसकी निगरानी करते हैं और नियमित अपडेट भी मांगते हैं. लेकिन असल में यह प्रोजेक्ट गुजरात हाइकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार के दिमाग की उपज है जो अब सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश हैं. जीएसएलएसए हर बच्चे की प्रगति पर बारीकी से नजर रखता है. इस परियोजना के लिए शुरू में 3 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया गया था, लेकिन इसके जानकार लोगों का कहना है कि इससे भी बड़ा आवंटन होने वाला है. इसके अलावा, सरकार इसे गुजरात के अन्य शहरों में भी दोहराने की योजना बना रही है ताकि अधिक से अधिक बच्चों की जिंदगियों में सवेरा हो सके.

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