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मैथिल देविका : जो सुन नहीं सकते उन तक गीत-संगीत पहुंचाने वाली क्लासिकल डांसर

क्लासिकल डांसर मैथिल देविका ने सांकेतिक भाषा को मुद्राओं के साथ मिलाकर अपने दिव्यांग दर्शकों के लिए एक अनोखा नृत्य तैयार किया

मैथिल देविका, शास्त्रीय नृत्यांगना
मैथिल देविका, शास्त्रीय नृत्यांगना
अपडेटेड 12 फ़रवरी , 2024

भारतीय शास्त्रीय नृत्य पिछले महीने तिरुवनंतपुरम में एक अभूतपूर्व पल का साक्षी बना. जैसे ही मोहिनीअट्टम की कुशल नृत्यांगना मैथिल देविका ने संगीत और नृत्य के विरासत केंद्र अम्मावीदु में प्रदर्शन शुरू किया, सुनने और बोलने में अक्षम प्रशंसकों का एक उत्साहित समूह अपने सामने खुल रही भाव-भंगिमाओं में डूब गया.

लेकिन उन्होंने उस प्रदर्शन का रसास्वादन कैसे किया? दरअसल, देविका ने अपने दूरदर्शी प्रोजेक्ट डांस फिलैंथ्रोपी ऐंड सोशल इन्क्लूजन के तहत 'क्रॉसओवर' नामक प्रदर्शन के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा को शास्त्रीय नृत्य की हस्तमुद्राओं के साथ मिला दिया. अपेक्षा के अनुरूप इसे तुरंत तारीफ मिली तथा ऐसे और प्रदर्शनों की योजना बनाई गई है.

इसके अतिरिक्त 'क्रॉसओवर' पर आधारित एक लघु फिल्म जल्द ही केरल की विभिन्न जगहों पर प्रदर्शित की जाएगी. देविका का कहना है कि उन्होंने इस पहल की खातिर धन जुटाने के लिए, मन नहीं होने के बावजूद मलयालम फिल्म कथा इनुवारे (अब तक की कहानी) में एक किरदार निभाया.

अपने तीन दशक के शानदार करियर में देविका एक नृत्यांगना, शोधकर्ता और क्यूरेटर के रूप में उभरी हैं, जिन्होंने दुनियाभर के कला प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया. लेकिन, उनका मौजूदा प्रयास खासा महत्व रखता है. देविका कहती हैं, "कोविड महामारी के दौरान, बिना किसी मंच और प्रदर्शन के मैंने एक ऐसे नृत्य रूप की कल्पना की जो मुझे उम्मीद थी कि यह कम भाग्यशाली लोगों को पसंद आएगा." यह कामयाबी मुद्रा की सीमाओं से परे जाकर भाषा के जरिये संचार करने के विचार के साथ हासिल हुई. वे कहती हैं, "मैंने उनके दिलों से जुड़ने के लिए सांकेतिक भाषा सीखी."

पलक्कड़ में कला से गहराई से जुड़े एक परिवार में जन्मीं देविका को चार साल की उम्र में ही शास्त्रीय नृत्य से परिचित करा दिया गया था. देविका 20 साल की उम्र से एकल प्रदर्शन कर रही हैं. उत्साहित देविका बताती हैं, "नृत्य का मतलब ही क्या रह जाएगा अगर वह सीमित है और कला केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक पहुंच रखती है. एक कलाकार के रूप में मैं वंचितों के लिए प्रदर्शन तैयार करना अपनी जिम्मेदारी महसूस करती हूं."

अपने प्रदर्शन के जरिये देविका ने दिखा दिया कि नृत्य भाषा और ध्वनि की सीमाओं से परे है. तिरुवनंतपुरम में उन्होंने गौर किया कि कुछ लोग उनकी मुद्राओं की नकल कर रहे थे. देविका संतोष से अपनी आंखें बंद करते हुए कहती हैं, "यह एक सुखद अनुभव था. मैंने दुनियाभर में विभिन्न देशों और भाषाओं के लोगों के सामने प्रदर्शन किया है, लेकिन दर्शकों को अपनी मुद्राओं में शामिल होते देखना अभूतपूर्व है. यह संकेत है कि प्रदर्शन ने उनके दिलों को छू लिया. मुझे लगता है कि मेरा मिशन पूरा हो गया है."

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