एक दशक पहले जब बेंगलूरू के व्हाइटफील्ड मोहल्ले में उनका समुदाय जाम हो चुके नाले से जूझ रहा था, आईटी के सुरक्षा विशेषज्ञ तरुण कुमार ने नालियों के गंदे पानी के शोधन उपचार के लिए ऐसे तरीके खोजने शुरू किए जिनमें रखरखाव शून्य हो और रीसाइकल किया हुआ अच्छी गुणवत्ता का पानी मिल सके.
वे कहते हैं कि मुख्य चिंता सीवर वाले जल को पास की वर्थुर झील में जाने से रोकना थी, जो पहले से बेहद प्रदूषित थी. प्रेरणा खुद कुदरत से ही मिली. ठीक-ठीक कहें तो गाय के पेट से, जो ताकतवर ऐनेरॉबिक बैक्टीरिया के जरिए पाचक पदार्थों को तोड़ता है. जुगाली करने वाले जानवरों के पेट में चार कक्ष होते हैं.
इसी की नकल पर तरुण कुमार और उनकी टीम ने चार चरणों वाला सेप्टिक टैंक डिजाइन किया. 2017 में ईकोएसटीपी शुरू करने वाले 54 वर्षीय तरुण कुमार बताते हैं, "यहां जो हो रहा है, वह ऐनेरोबिक डाइजेशन (अवायवीय पाचन) है, जो मुख्य शब्द है." गाय की आंत में पाए जाने वाले ऐनेरोबिक या अवायवीय बैक्टीरिया को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती. इसके पारपंरिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में ऐनेरोबिक बैक्टीरिया को हवा की जरूरत होती है, जो मोटर से चलने वाली ब्लोअर या धौंकनी से दी जाती है. वे कहते हैं कि पारंपरिक एसटीपी की मोटर को चलाने के लिए बिजली के साथ लगातार ऐनेरोबिक बैक्टीरिया डालने की और पूर्णकालिक ऑपरेटर की जरूरत होती है, जिससे ज्यादा लागत आती है.
अमेरिका स्थित बायोमिमिक्री इंस्टीट्यूट के अनुदान और रिसर्च इनपुट की मदद से ईकोएसटीपी ने शून्य-बिजली, शून्य-रसायन सेप्टिक टैंक डिजाइन किया, जिससे रिसाइकल होने के बाद ऐसा पानी निकलता है जो शौचालयों को फ्लश करने और बगीचों में डालने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानदंडों को पूरा करता है. तरुण कुमार कहते हैं, "हालांकि यह सरल-सी चीज है, पर इसमें बहुत सारा विज्ञान लगा है." उन के स्टार्ट-अप के भारत भर में फिलहाल 235 ग्राहक हैं, जिनमें ऐसे आवासीय अपार्टमेंट और औद्योगिक संयंत्र भी हैं जिनके शौचालयों और रसोई घरों का गंदा पानी भूमिगत सेप्टिक टैंकों में भेजा जाता है. इन टैंकों के तले में गाय के गोबर की एक परत होती है जिसमें मल पदार्थ को तोड़ने के लिए चुना गया ऐनेरोबिक बैक्टीरिया का रूप होता है. जब गंदा पानी चरण दो और तीन से गुजरता है (देखें ऊपर का ग्राफिक), बैक्टीरिया अपना काम करते हैं और अपशिष्ट जल बजरी की परतों और रेत से छनता रहता है. अंतिम चरण में बजरी से बनी कुदरती छन्नी होती है, जहां पौधे रीसाइकल किए हुए पानी को ऑक्सीजन देते हैं. इससे प्राप्त पानी का इस्तेमाल बागवानी या फ्लश के लिए किया जा सकता है.
गाय के पेट में मिला समाधान
बायोमिमिक्री (किसी नैचुरल प्रक्रिया की नकल) करते हुए, ईकोएसटीपी प्रदूषकों को तोडऩे के लिए गाय के पेट में पाए जाने वाले कई कक्षों और सूक्ष्मजीवों के सिद्धांत का उपयोग करता है और पानी को स्थानांतरित करने के लिए गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करता है
चरण 1
> प्राथमिक सेडिमेंटेशन (प्रदूषक कणों के तलछटी में बैठ जाने की प्रक्रिया) कक्ष
> जल प्रदूषण को तोड़ने के लिएमध्यम तापमान में बढ़ने वाले ऐनेरॉबिक रिएक्टर
चरण 2
> अपफ्लो बैफल्ड रिएक्टर कक्ष (प्रदूषित जल को ऊपर की ओर धकेलते हुए फिल्टर करने की तकनीक)
> चरण 1 से निकला प्रदूषित जल सक्रिय बैक्टीरिया कक्षों से होकर गुजरता है
चरण 3
> ऊंची सतह क्षेत्र वाले अटैच्ड ग्रोथ जैविक फिल्टर
> चरण 2 का प्रदूषित जल बैक्टीरिया लॉन/फिल्म के फिल्टर से होकर गुजरता है
चरण 4
> चरण 3 का प्रदूषित जल पौधों और शैवाल कालोनियों की एक आर्द्रभूमि से होकर गुजरता है
> जल में तैर रहे ठोस पदार्थों, रोगजनकों और तत्वों (नाइट्रोजन और फॉस्फोरस) को हटाना
तरुण कुमार कहते हैं, "हर 100 लीटर अपशिष्ट जल के बदले 85 लीटर स्वच्छ जल निकलता है." हर दो साल में टैंक को साफ करना होता है, लेकिन इसे चलाने की लागत न के बराबर है. फिलहाल ईकोएसटीपी ऐनेरोबिक बैक्टीरिया के रसायनों को तोड़ सकने वाले रूप के अध्ययन के लिए आईआईटी जम्मू के साथ काम कर रहा है. तरुण कुमार कहते हैं, "मेरी टीम और मैं तीन पैमानों पर अपने को मापते हैं. कितने खराब पानी को हम अच्छे पानी में बदल सकते हैं? सामान्य एसटीपी के मुकाबले हमने कितना पानी बचाया? और कितना कोयला हमने बचाया, क्योंकि भारत की 70 फीसद बिजली कोयले से आती है? हमें गर्व है कि हमने बिजली या रसायनों के बिना अब तक 2 अरब लीटर पानी वापस हासिल किया है."
- अजय सुकुमारन