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चनपटिया क्लस्टर : आपदा में अवसर तलाशने की बेहतरीन मिसाल

मुजफ्फरपुर में 40 मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के चनपटिया क्लस्टर में प्रवासी मजदूर कामयाब उद्यमी बनकर उभरे. उन्होंने बिजनेस के साथ रोजगार मुहैया कराने का ऐसा मॉडल खड़ा किया जिसे अब पूरे बिहार में अपनाया जा रहा

मोहम्मद अय्यूब अंसारी. वे उन कुशल कारीगरों में से थे जो कोविड के दौरान अपने घर लौट आए
चनपटिया क्लस्टर में काम कर रहे मोहम्मद अय्यूब अंसारी
अपडेटेड 3 फ़रवरी , 2024

कंप्यूटर से जुड़ी हुई एक बड़ी-सी कढ़ाई मशीन के सामने से गुजरते हुए अर्चना कुशवाहा की नजरें मॉनिटर पर टिकी हैं. मशीन से कपड़े पर उभरते डिजाइन का मुआयना करने के साथ ही वे ऑटोमोबाइल सर्विस स्टेशन को कॉल करती हैं. उन्होंने एक दिन पहले ही अपनी कार ठीक होने के लिए भेजी थी.

वे थोड़ी कड़क आवाज में पूछती हैं, "पिछले साल ही 17 लाख रुपए में खरीदी गई कार में इस तरह दिक्कत कैसे हो सकती है? वीकेंड से पहले यह ठीक हो जानी चाहिए." 32 वर्षीया अर्चना बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में डिजाइनर साड़ियां और लहंगे तैयार करने वाली एक मैन्युफैक्चरिंग इकाई की मालकिन हैं.

अर्चना और उनके 38 वर्षीय पति नंदकिशोर कुशवाहा के लिए दिन काफी व्यस्तता भरा रहा. अर्चना 3,000 वर्ग फुट क्षेत्र में चलने वाले अपने इस वर्कशॉप में प्रोडक्शन की निगरानी की पूरी जिम्मेदारी संभाले हैं, वहीं नंद किशोर फोन पर खुदरा विक्रेताओं से ऑर्डर ले रहे हैं.

वे बताते हैं, "शादियों का सीजन शुरू होने वाला है, इसलिए मांग काफी बढ़ गई है." उनकी कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष में 2.38 करोड़ रुपए की कमाई की थी. इस साल तो इस दंपती को और ज्यादा रिटर्न की उम्मीद है. इनकी जोड़ी न सिर्फ एक सफल व्यवसायी की सुखद तस्वीर पेश करती है बल्कि अर्चना और नंद किशोर के जीवन में आए एक बेहतरीन बदलाव की कहानी भी बयान करती है.

मार्च 2020 तक दोनों मिलकर सूरत में महीने में महज 70,000 रुपए कमा पाते थे. नंद किशोर औद्योगिक सिलाई मशीनों के संचालन की देख-रेख से जुड़े थे, जबकि अर्चना एक सिलाई कारीगर यानी दर्जी का काम किया करती थीं. कोविड-19 महामारी शुरू होने के कुछ ही समय बाद वह काम भी उनके हाथ से निकल गया और वे बेरोजगार हो गए. चुनौतियों से जूझता यह दंपती कुछ महीनों तक बिना किसी आमदनी के गुजारा करता रहा. फिर पश्चिम चंपारण जिले में अपने गांव लौटने का फैसला किया.

मई 2020 में श्रमिक विशेष ट्रेन पकड़कर ये लोग बिहार सरकार के बनाए क्वारंटीन सेंटर पहुंचे. इस दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के साथ-साथ निजी तौर पर दौरे करके मजदूरों से जुड़े रहे. पश्चिम चंपारण सुविधा केंद्र में ऐसी ही एक कॉन्फ्रेंस के दौरान नीतीश ने तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कुंदन कुमार को प्रवासियों को संभावित रोजगार देने के उद्देश्य से उनके हुनर को ध्यान में रखकर एक रोडमैप तैयार करने का निर्देश दिया. नतीजा यह रहा कि मजदूरों को कशीदाकारी, चमड़े का सामान बनाने, जींस, बर्तन, काष्ठ शिल्प, मार्केटिंग, तकनीकी और ऐसे ही अन्य हुनर के बारे में जानकारी मिल पाई.

डीएम ने श्रमिकों के साथ एक के बाद एक कई बैठकें कीं और खुद का व्यवसाय स्थापित करने की उनकी इच्छा के बारे में जाना. हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि पैसे का इंतजाम कैसे होगा. प्रशासन ऐसी सहायता देने में सक्षम नहीं था और बैंक बिना पुख्ता गारंटी कर्ज देने में हिचकिचा रहे थे. आखिरकार, कुंदन कुमार ने उपाय सोचा, बैंक अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें कीं और आखिरकार 59 श्रमिकों को कुल 11 करोड़ रुपए का कर्ज मिलना मुमकिन हो पाया.

इस धनराशि से वे पावरलूम, कंप्यूटर-चालित कढ़ाई मशीनें और दूसरी तरह की मशीनें खरीदने में सक्षम हो सके. जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर चनपटिया में राज्य खाद्य निगम के गोदामों को खाली कर दिया गया और इस जगह पर एक बिजनेस क्लस्टर स्थापित करने की अनुमति मिली. आज ये उद्यमी उच्च गुणवत्ता वाले जैकेट, साड़ी, शर्ट, बर्तन और अन्य सामान तैयार करते हैं, फिर उन्हें स्थानीय, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल तक के बाजारों में बेचते हैं. चनपटिया क्लस्टर करीब एक लाख वर्ग फुट में फैला है, और इसमें 1.25 रुपए प्रति वर्ग फुट जैसे किफायती किराए पर जगह उपलब्ध है.

अप्रैल 2021 से अब तक इन उद्यमियों ने करीब 22 करोड़ रुपए की कुल बिक्री की है और यहां 1,000 से ज्यादा श्रमिकों को रोजगार मिल रहा है. अर्चना और उनके पति ने 25 लाख रुपए के कर्ज के साथ साड़ी और लहंगे बनाने का कारखाना लगाया. उन्होंने पिछला कर्ज चुका दिया है और अब विस्तार के लिए अतिरिक्त धन चाहते हैं. लुधियाना की एक जींस फैक्ट्री में सुपरवाइजर रहे 39 वर्षीय सुदामा पटल ने मार्च-दिसंबर 2023 के दौरान अपने उद्यम डीकेडी चंपारण क्रिएशन्स के जरिए 50 लाख रुपए का धंधा किया. श्रमिक रहे 45 वर्षीय आनंद कुमार भी अब उद्यमी बन चुके हैं. स्टील बर्तन उद्योग की उनकी बिक्री 'सात अंकों’ में पहुंच चुकी है.

सफलता की ये कहानियां चनपटिया मॉडल को परिभाषित करती हैं, और बिहार सरकार को पूरे राज्य में इसे लागू करने के लिए प्रेरित करती हैं. इस विस्तार के सही मायने इसी बात से समझे जा सकते हैं कि मुजफ्फरपुर में 40 मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों का क्लस्टर हर माह छह लाख से ज्यादा स्कूल बैग बनाने की क्षमता रखता है.

कुंदन अब भले यहां के डीएम नहीं हैं लेकिन चनपटिया की सफलता दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है. यही वजह है कि पश्चिम चंपारण जिले में इसी तरह के उद्यमों के लिए 141 प्रस्ताव आए हैं. उप-विकास आयुक्त अनिल कुमार प्रशासन की तरफ से सफलता की यह इबारत दोहराने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं.

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