हर साल सर्दियों में एक जाना-पहचाना किस्सा दोहराया जाता है जब वायु प्रदूषण की चादर आसमान पर छा जाती है. प्रदूषण फैलाने वालों पर शिकंजा कसते हुए सरकार सड़कों पर नुकसानदेह गैस उत्सर्जित करते वाहनों की बढ़ती तादाद का सार्वजनिक तौर पर रोना रोती हैं.
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं, "यह खतरनाक समस्या है. देश में कार्बन डाइऑक्साइड का 40 फीसद उत्सर्जन ट्रांसपोर्ट सेक्टर से होता है. यह रोज बढ़ रहा है, यह फिक्र की बात है." इतनी ही फिक्र की बात शायद सरकार का वह बड़ा कदम—जिसमें एक करोड़ से ज्यादा पुराने और प्रदूषणकारी वाहनों को एक झटके में भारत की सड़कों से हटाने की और शायद इस सालाना समस्या के खिलाफ देश की लड़ाई को मजबूत बनाने की भी क्षमता है—कामयाबी की तरफ बढ़ने के लिए लड़खड़ाता दिख रहा है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पुराने वाहन नए के मुकाबले 10-12 गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं.
हाल में सरकार ने अपना बहुचर्चित स्वैच्छिक वाहन बेड़ा आधुनिकीकरण कार्यक्रम या 'वाहन स्क्रैपिंग नीति' शुरू होने की तारीख व्यावसायिक वाहनों के लिए जून से बढ़ाकर अक्तूबर 2024 कर दी. वजह? नीति लागू होने के तीन साल बाद भी राज्य इसके लिए तैयार नहीं हैं.
नीति का मकसद
स्क्रैपिंग पॉलिसी या पुराने वाहनों को कबाड़ में डालने की नीति लागू होने के बाद डीजल और पेट्रोल से चलने वाले निजी वाहनों के मालिकों को अपनी 15 साल पुरानी कारों और मोटरबाइक वगैरह की पूरी तरह ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन (एटीएस) यानी स्वचालित परीक्षण केंद्रों से सख्त जांच करवाकर और पांच साल चलने लायक होने का प्रमाणपत्र हासिल करना होगा. जांच में यह आंका जाएगा कि वाहन कितने प्रदूषणकारी तत्व उत्सर्जित कर रहा है. आप अपने 15 साल पुराने वाहन को दोबारा रजिस्टर करवाना चाहें तो अभी नियम यह है कि राज्य परिवहन के अफसरों की तरफ से भौतिक निरीक्षण करेंगे. दूसरी तरफ व्यावसायिक वाहनों को पहले आठ साल हर दूसरे साल और उसके बाद हर साल केवल एटीएस में फिटनेस टेस्ट से गुजरना पड़ता है. अगर वे परीक्षण में खरे नहीं उतरें तो उन्हें ऐंड-ऑफ-लाइफ (ईएलवी) या कबाड़ वाहन करार दिया जाता है और मालिक उन्हें कबाड़ बनाने का विकल्प चुन सकता है, पर ऐसा वह अधिकृत स्क्रैपिंग एजेंसी में ही कर सकता है इसीलिए इसे 'स्वैच्छिक' कहा जाता है.
इसके पीछे नजरिया यह है कि पुराने वाहनों की जगह नए और "फिट" वाहन आएंगे, जो सुरक्षित होंगे, ईंधन की खपत किफायत से करेंगे और देश का कुल प्रदूषण भी घटाएंगे. मगर एक दिक्कत है—इस नीति को शुरू या तेज करने में राज्य अपनी सुविधा से वक्त ले रहे हैं. उनकी ढीली-ढाली प्रगति के चलते केंद्र को मासिक समीक्षा बैठकें करनी पड़ीं. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग सचिव अनुराग जैन कहते हैं, "हर राज्य की अपनी व्यवस्था है. इन चर्चाओं में कुछ सुधार दिखने लगे हैं. अब हम नियम बना रहे हैं कि जहां एटीएस हैं, वहां जांच केवल एटीएस से ही होगी. पहले यह स्वैच्छिक था. इससे निजी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा."
नीति लॉन्च करते वक्त 2021 में सरकार ने सोचा था कि जल्द ही देश भर में 75 एटीएस खुल जाएंगे और पहले चरण में हर राज्य में कम से कम कुछ एटीएस होंगे. अंतत: तकरीबन हर जिले में कम से कम एक एटीएस होगा. निजी खिलाड़ी भी आगे आकर स्क्रैपिंग सेंटर लगाएंगे. मगर तीन साल बाद 37 से भी कम एटीएस हैं, जिनकी मौजूदगी महज आठ राज्यों में है और पूरे देश भर में फैले मात्र 44 अधिकृत स्क्रैपिंग सेंटर हैं. आदर्श तो यही होता कि निश्चित नेटवर्थ वाला शख्स व्यावसायिक उद्यम की तरह एटीएस खोलने के लिए सरकार के पास जा पाता; यही स्क्रैपिंग सुविधाओं पर भी लागू होता. मगर एटीएस खोलने के लिए ज्यादा लोग नहीं आ रहे हैं. दिक्कत यह है कि अगर आप अपनी गाड़ी की—व्यावसायिक हो या निजी— "सड़क पर चलने की योग्यता" का परीक्षण नहीं कर सकते तो आप उसे स्क्रैप नहीं कर सकते.
नीति का मकसद
वाहन बेड़े के स्वैच्छिक आधुनिकीकरण, कार्यक्रम का मकसद है...
> बगैर वैध फिटनेस और रजिस्ट्रेशन वाले 1 करोड़ वाहनों को नष्ट करने से वाहन प्रदूषण के कारण हो रहे उत्सर्जन में 15-20 प्रतिशत की कमी आएगी
> सड़क सुरक्षा, यात्री और वाहन की सुरक्षा में बढ़ोतरी होगी
> ईंधन की खपत घटेगी और वाहन मालिक के लिए मेंटेनेंस की लागत में कमी आएगी
> मौजूदा अनौपचारिक वाहन स्क्रैपेज उद्योग को औपचारिक दर्जा मिलेगा
> ऑटो सेक्टर की बिक्री बढ़ने के साथ रोजगार में बढ़ोतरी होगी
> ऑटोमोटिव, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के लिए सस्ते कच्चे माल की उपलब्धता को प्रोत्साहन मिलेगा
वाहनों से प्रदूषण
गाड़ियां जिन्हें स्क्रैप करने का लक्ष्य रखा गया है
4.5 लाख पुराने ट्रक
1 पुराना ट्रक 14 नए ट्रक/बस/ट्रेलर के बराबर प्रदूषण फैलाता है
7.5 लाख
पुरानी टैक्सी/कारें 1 पुरानी टैक्सी/कार 11 नई टैक्सी/कारों जितना प्रदूषण फैलाती है
स्रोत: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
राज्यों की मंथर गति
कार्यक्रम को धीमे अपनाने वाले राज्य आगे का रास्ता समझने की कोशिश कर रहे हैं. हरियाणा के परिवहन सचिव नवदीप सिंह विर्क कहते हैं, "हमें वक्त इसलिए लग रहा है क्योंकि हमने अभी एटीएस के मॉडल पर काम नहीं किया है. उसके बाद यह आसान होगा. ऐसा एक मॉडल नहीं है जो सभी राज्यों में कामयाब हो. हर राज्य अलग मॉडल का इस्तेमाल कर रहा है."
हरियाणा ने वाहन निर्माताओं से बात शुरू की है. पहले उसकी योजना जिलों में टेस्टिंग स्टेशन लगाने की थी जो कारगर नहीं रही. विर्क कहते हैं, "हमें 22 में से हर जिले में कम से कम एक की जरूरत है जबकि गुरुग्राम और फरीदाबाद सरीखे बड़े जिलों के लिए एक से ज्यादा चाहिए." दूसरी तरफ, तमिलनाडु टेस्टिंग स्टेशन लगाने की व्यवहार्यता का आकलन कर रहा है. तमिलनाडु के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी के. फणींद्र रेड्डी कहते हैं, "हम अभी एटीएस की टेक्नो-इकोनॉमिक (तकनीकी-आर्थिक) व्यवहारिकता का अध्ययन कर रहे हैं."
बात यह नहीं है कि विपक्ष-शासित राज्य इस केंद्रीय योजना में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. इस पर तेजी से काम करने वाले राज्य हैं उत्तराखंड, दिल्ली, बिहार, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ (दोनों पूर्व कांग्रेस-शासित), गुजरात और उत्तर प्रदेश. सरकार के केंद्रीयकृत वाहन पोर्टल के मुताबिक, इनके बीच कुल 34 एटीएस हैं. उनमें भी 23 अकेले गुजरात में हैं और फैलाव भी जरा समान नहीं है. उत्तर प्रदेश में केवल दो हैं, इनमें से एक राज्य सरकार ने लखनऊ में शुरू किया.
उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह कहते हैं, "हमारे पास एटीएस के लिए 308 से ज्यादा आवेदन हैं जिनकी हम जांच कर रहे हैं. हम पहले आओ, पहले पाओ के आधार स्वीकृति देंगे. इस तरह पहले चरण में 60 जिलों में कम से कम एक एटीएस होगा." उत्तर प्रदेश की योजना अपने 75 जिलों में ऐसे 150 केंद्र खोलने की है.
राह के रोड़े
ज्यादातर राज्यों की ठंडी प्रतिक्रिया से जमीनी स्तर पर उनके रुख की झलक मिलती है. केपीएमजी इंडिया में पार्टनर, डील एडवाइजरी, एमऐंडए कंसल्टिंग रोहन राव वाहन मालिकों में गाड़ी स्क्रैप करवाने के प्रति कम इच्छा की वजह ईएलवी के नियमों, स्क्रैप करवाने की प्रक्रिया, कीमत तय करने के तरीके और कबाड़ केंद्रों की जगह व सुलभता के मामले में स्पष्टता नहीं होने को बताते हैं. वे कहते हैं, "मालिकों को भी वाहन की साज-सज्जा पर अतिरिक्त खर्च करने के बजाय स्क्रैप करवाने की लागत-बनाम-फायदे के बारे में साफ पता नहीं है."
मालिक भी जब तक बिल्कुल जरूरी न हो जाए, अपने पुराने वाहन को छोड़ना नहीं चाहते. राजस्थान में अलवर के 50 वर्षीय मुन्ना खान सवाल करते हैं, "मैं अपनी पुरानी कार का इस्तेमाल कभी हफ्ते में एक या शायद दो बार बाजार जाने के लिए करता हूं. मैं इसे स्क्रैप क्यों करवाऊं?" व्यापारी और पूर्व ट्रक ड्राइवर खान ने पिछले साल अपने रिश्तेदार से 14 साल पुरानी हैचबैक खरीदी थी. वे कहते हैं, "यह एक लाख किलोमीटर से भी कम चली है. दुरुस्त हालत में है और इसी काम के लिए मैंने इसे खरीदा था. अब क्या अगले साल मुझे नई कार खरीदनी पड़ेगी?"
ऐसे जज्बात को छोड़ भी दें तो ऑटोमोटिव उद्योग का कहना है कि इस नीति के रफ्तार न पकड़ने की वजह खुद नीति है. किसी भी "हितों के टकराव" से बचने के लिए नीति कहती है कि एटीएस चलाने वालों का वाहन निर्माता से कोई संबंध नहीं होना चाहिए. इसका औचित्य यह है कि ज्यादा से ज्यादा पुरानी कारों के फिटनेस परीक्षण में नाकाम होने का फायदा इन्हीं कंपनियों और उनके डीलर को होगा. जांच में नाकाम हर कार सैद्धांतिक तौर पर नई कार की बिक्री की संभावना के दरवाजे खोल देती है. ऑटो उद्योग का मानना है कि सरकार को उनके मौजूदा सर्विस नेटवर्क का फायदा उठाना चाहिए और उन्हें एटीएस स्थापित करने के लिए अधिकृत कर देना चाहिए. वे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और जापान सरीखे देशों का हवाला देते हैं जहां डीलर को फिटनेस टेस्ट करने की इजाजत दी गई है.
मारुति सुजुकी में कॉर्पोरेट मामलों के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राहुल भट्ट कहते हैं, "एटीएस लगाने के कुछ मानदंड बहुत कठिन हैं और पूरे नहीं किए जा सकते. उनके भारत में नहीं लग पाने की यही वजह है. जो लोग रोज कारों की सर्विस करते हैं और जिनके पास अखिल भारतीय नेटवर्क भी है, वे सर्विस सेंटर ही हैं."
इस सबका एक और पहलू भी है. कई हितधारकों का मानना है कि यह नीति अपनी बनावट से ही साधारण आदमी पर अपना वाहन स्क्रैप करवाने के लिए ज्यादा जोर नहीं डालती. ऐसा इसलिए है क्योंकि लाखों भारतीयों के लिए उनकी बाइक या कार आजीविका का साधन या बरसों की बचत से हासिल बेशकीमती संपत्ति हो सकती है. उन्हें इसे स्क्रैप करने के लिए मजबूर करना राजनैतिक झटके का सबब बन सकता है.
प्रोत्साहन लाभों का प्रलोभन
निजी क्षेत्र के आगे आने का महज इंतजार करने के बजाय केंद्र ने इस नीति को कुछ रफ्तार देने का बीड़ा उठा लिया. उसने फरमान जारी कर दिया कि भारत में कहीं भी 15 साल पुराने सभी सरकारी मिल्कियत वाले वाहन स्क्रैप कर दिए जाएं. इस साल के केंद्रीय बजट में बसों और कारों सरीखे अपने पुराने वाहन कबाड़ में बदलने वाले राज्यों के लिए 3,000 करोड़ रुपए रखे. मसलन, उत्तर प्रदेश ने अपने सरकारी वाहन स्क्रैप करवाने के लिए इनाम जीता और केंद्र से 300 करोड़ रुपए ले लिए.
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने स्क्रैपिंग नीति के वाहन परीक्षण मानदंडों में हाल में कुछ ढील दी. अब पुराने वाहन के फिटनेस परीक्षण में नाकाम हो जाने पर मालिक को गड़बड़ियों में सुधार के लिए छह महीने का वक्त मिलेगा और इस अवधि में वे चाहे जितनी बार पुनर्परीक्षण के लिए आ सकते हैं. मूल नीति में नाकामी के बाद मालिक एक पुनर्परीक्षण करवा सकता था और वाहन की तकदीर तय हो जाती थी. मंत्रालय ने कैफेटेरिया, डिपार्टमेंटल स्टोर, इंश्योरेंस किओस्क, ड्राइवर ट्रेनिंग सेंटर सरीखी गैर विवादित सुविधाओं के इस्तेमाल करने का रास्ता भी साफ कर दिया है. यह सब इसलिए क्योंकि सरकार ने इस नीति की कामयाबी पर बड़ा दांव लगा रखा है. उसका मानना है कि यह नीति नए वाहनों की मांग में उछाल लाकर दूरगामी आर्थिक फायदों का सबब बनेगी, जैसा 2008 की मंदी के बाद के सालों में ऐसी ही नीतियों की बदौलत यूरोप, अमेरिका, जापान, चीन और दूसरे देशों में हुआ था.
उपभोक्ता के लिए सौदे को आकर्षक और स्वीकार्य बनाने के लिए कुछ राज्यों ने निजी वाहनों को रोड टैक्स में 25 फीसद और व्यावसायिक वाहनों को 15 फीसद की रियायत अधिसूचित की है. सरकार का अनुमान है कि बड़े पैमाने पर गाड़ियों के कबाड़ में जाने और उसके बाद खरीद गतिविधियों की बदौलत करीब 40,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) हाथ लगेगा; ऑटो सेक्टर में 10,000 करोड़ रुपए का निवेश आएगा और रोजगार के हजारों मौके पैदा होंगे, सो अलग. एक बड़े सरकारी अफसर कहते हैं, "अकेले जीएसटी में भारी बढ़ोतरी की संभावना ही राज्यों के लिए पर्याप्त प्रेरणा होनी चाहिए कि वे आगे बढ़कर टेस्टिंग स्टेशन लगाएं और बुनियादी ढांचा तैयार करें."
आने वाले सालों में कारों को स्क्रैप करवाने की तादाद में बढ़ोतरी की उम्मीद से मारुति सुजुकी, टोयोटा, महिंद्रा और टाटा सरीखी कार कंपनियों ने अपनी स्क्रैपिंग सुविधाएं भी कायम की हैं. बहुत सारी उम्मीदें उस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर टिकी हैं जिसे 'सर्कुलर इकोनॉमी' या चक्रीय अर्थव्यवस्था के तौर पर जाना जाता है. इसमें स्क्रैप से मिली सामग्री को फिर से इस्तेमाल में लाया जाता है. सामान्य पैसेंजर कार तांबा, प्लास्टिक आदि के अलावा 69 फीसद स्टील और 5 फीसद एल्यूमिनियम से बनी होती है.
> स्क्रैपिंग सेंटर पुराने वाहन की कीमत नए वाहन की एक्स शोरूम कीमत की 4-6 प्रतिशत ऑफर करता है
> पुराने वाहन के सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट के एवज में वाहन की रजिस्ट्रेशन फीस से छूट दी जाएगी
> मोटर व्हीकल टैक्स में छूट जो कि कॉमर्शियल व्हीकल में 15 प्रतिशत और निजी वाहन पर 25 प्रतिशत है
> वाहन निर्माताओं को सलाह दी गई है कि पुराने वाहन का सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट देने वालों को नए वाहन की खरीद पर 5 प्रतिशत की छूट दी जाए
दंड
> 15 साल से पुराने निजी और वाणिज्यिक वाहनों केफिटनेस टेस्ट, फिटनेस सर्टिफिकेट और दोबारा रजिस्ट्रेशन की ऊंची फीस
कैसे काम होता है टेस्टिंग केंद्र में
ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशनों में वाहनों की हालत जानने के लिए अत्याधुनिक सेंसरों, मेकैनिकल उपकरणों और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है
> वाहन को एक खास प्लेटफॉर्म पर लाया जाता है जहां इसके प्रकार, रजिस्ट्रेशन नंबर जैसी सूचनाएं कंप्यूटर पर डाली जाती हैं
> फिर इसे टेस्टिंग मॉड्यूलों से लैस एक लेन में लाया जाता है
> टेस्टिंग मॉड्यूल और ऑटोमेटेड रोलर वाहन की ब्रेकिंग फोर्स का परीक्षण करते हैं
> वाहन के नीचे के हिस्से की खामियों, जंग आदि को कैमरे और सेंसर की मदद से चेक किया जाता है जिससे आयु पता चलती है
> सेंसर निकलने वाली गैसों को उत्सर्जन मानकों के आधार पर परखते हैं
> विशेष मशीनें जांचती हैं कि हेडलाइट कितने प्रभावी तरीके से काम कर रही हैं
> लेन में ही रोड कंडिशन की नकल बनी होती है जिस पर वाइब्रेशन के जरिये सस्पेंशन चेक किया जाता है
> एक केंद्रीय कंप्यूटर में पहले से तय मानकों और नियमों की कसौटी पर लगातार ये सब जांच का डेटा प्रोसेस होता रहता है
> इसके बाद सिस्टम यह रिपोर्ट देता है कि वाहन फिट है या अनफिट. अगर अनफिट है तो यह भी बताता है कि ऐसा क्यों है
> पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता की खातिर सरकार के केंद्रीय डेटाबेस से जुड़ी होती है
समाधानों की पेशकश
ऑटो उद्योग का मानना है कि समाधान इस नीति के सबसे अहम हितधारक वाहन निर्माताओं को साथ लेने में है. इसके लिए "हितों के टकराव" वाले प्रावधान में ढील देनी होगी. सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (एसआईएएम) या सियाम के प्रशांत के. बनर्जी कहते हैं, "हम उत्सुक हैं कि क्या हम अनुपालन, निरीक्षण और फिटनेस प्रमाणन की व्यवस्था में योगदान दे सकते हैं, क्योंकि हमारे पास विस्तृत नेटवर्क है. वहां भी यह आसान नहीं है, मसलन आपको भारी व्यावसायिक वाहनों की ब्रेकिंग चेक करनी है, तो बड़ा सेटअप चाहिए. पर इरादा और कानून तो स्पष्ट हो."
मारुति के भारती का कहना है कि सरकार को यह करना चाहिए. वे कहते हैं, "निगरानी और नियंत्रण रखें, केंद्रों का ऑडिट करवाएं और ग्राहक अगर एक केंद्र की जांच के नतीजों से संतुष्ट न हो तो उसे दूसरे डीलर के पास जाने का विकल्प भी दें. इसकी इजाजत दी जानी चाहिए. सैद्धांतिक और सुदूर संभावना के लिए हम टेस्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को हरकत में नहीं आने दे रहे हैं."
नीति निर्माताओं के हिसाब से यह उपभोक्ता और कारोबारी दोनों के हित में सौदे को फायदेमंद बनाने की बात है. गुजरात ने इसे समझ लिया है. हैरानी नहीं कि वहां 23 एटीएस हैं. गुजरात के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (परिवहन) मनोज कुमार दास कहते हैं, "हमने सबको—कारोबारी, उद्योग की संस्थाओं और यहां तक कि बैंकों को भी—साथ लिया. हमने उन्हें बाजार का संभावित आकार दिखाया. यह कारगर रहा." राज्य ने कुछ ही दिनों के भीतर एटीएस और स्क्रैपिंग सेंटर की मंजूरी देने के लिए एकल-खिड़की व्यवस्था कायम की. उसने बैंकों को भी स्क्रैपिंग के उभरते पारिस्थितिकी तंत्र में नए कारोबार की संभावनाओं के बारे में शिक्षित किया. दास कहते हैं, "हमने बैंकों को वित्तीय मॉडल, इन कारोबारों की सहायता करने के फायदे दिखाए... कितने लाख वाहन कबाड़ में बदले जाने हैं, टेस्टिंग स्टेशन कितना पैसा बना सकते हैं, वगैरह."
उत्तर प्रदेश के मंत्री दया शंकर सिंह इससे इत्तफाक रखते हैं. वे कहते हैं, "बिजनेसमैन एटीएस लगाने पर कोई 10 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है. उसे बिजनेस चाहिए, वरना वह इसमें क्यों आएगा? इसलिए हम एकाधिकार को इससे अलग रख रहे हैं ताकि एक व्यक्ति दो से ज्यादा एटीएस न ले सके. पुराना वाहन अगर स्क्रैप किया जाता है तो उसके पिछले सारे बकाये माफ कर दिए जाते हैं ताकि ग्राहक प्रोत्साहित हों और स्क्रैपिंग सुविधाओं को कारोबार मिले."
आगे बढ़ने का एक और रास्ता भी है. एसऐंडपी ग्लोबल के ऑटो विशेषज्ञ गौरव वांगल का कहना है कि दिल्ली की तरह लोगों के लिए पुराना वाहन रखना असुविधाजनक बना दें. वे कहते हैं, "एनजीटी (राष्ट्रीय हरित पंचाट) के आदेशों की बदौलत दिल्ली में पुराने वाहन कॉलोनियों की पार्किंग से जब्त किए जा रहे हैं. ये सारे लोग अंतत: नया वाहन खरीद रहे है."
स्क्रैपिंग नीति के वजूद में आने से पहले एनजीटी ने प्रदूषण में कमी के लिए आदेश दिया कि दिल्ली में 10 साल से पुराने डीजल वाहन और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन सड़कों से हटाने की जरूरत है, जो स्क्रैपिंग नीति से भी ज्यादा सख्त था. वांगल का कहना है कि इस तरह के कदमों से स्क्रैपिंग का पारिस्थितिकी तंत्र एक झटके में चल पड़ेगा. वे कहते हैं, "यह देश के दूसरे हिस्सों में होने की जरूरत है. इससे नई कारों की मांग में बढ़ोतरी होगी, एक झटके में स्क्रैपिंग शुरू हो जाएगी, और एटीएस लगाने सरीखी तमाम चीजें तेजी से होने लगेंगी." मगर वाहन को कबाड़ में बदलने का रास्ता अभी तो बंद है.
- अभिषेक जी. दस्तीदार