1950 के दशक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की शुरुआत के समय ही डॉक्टरों की बिरादरी इसके संभावित फायदों को लेकर आश्वस्त थी. 1959 में इस तथ्य को स्वीकारा गया कि मशीनें लक्षणों के आधार पर बीमारी का पता लगा सकती हैं. 1960 के आसपास चिकित्सकों ने अनुमान लगाया कि वर्ष 2000 तक रोग पहचान की क्षमता विकसित होने से कंप्यूटर बेहद अहम भूमिका निभाने लगेंगे.
कनेक्टेड डिवाइसों के जरिए डेटा उपलब्धता, भंडारण क्षमता वृद्धि और बेहतर कंप्यूटिंग कुछ ऐसी चीजें हैं जिनकी वजह से स्वास्थ्य सेवा समेत तमाम उद्योग एआई को अपनाना चाहते हैं. रोजमर्रा में काम आने वाली हेल्थ ऐप्स से लेकर जटिल मेडिकल स्कैन का सटीक विश्लेषण कर बीमारी का पता लगाने और हर मामले में जरूरत के हिसाब से उपचार सुझाने तक एआई काफी उपयोगी है.
यह बड़ी तादाद में क्लिनिकल डेटा के आधार पर बेहतर प्रबंधन, बीमारी की पहचान और उसके हिसाब से निदान सुझाने में सक्षम है. हेल्थकेयर क्षेत्र में मशीन लर्निग यानी मॉडल के साथ डेटा के इस्तेमाल और प्रशिक्षण के जरिए सीखने का उपयोग काफी ज्यादा होता है, खासकर ऐसी बीमारियों के मामले में जिनमें बहुत बारीकी से ध्यान देने की जरूरत होती है.
एआई सामान्य लोगों और क्लिनिशियंस के तौर पर हमारी सोचने और तर्कसंगत कदम उठाने की क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है. इसने भारतीय स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य को पूरी तरह बदलकर रख देने में बड़े रोल का भरोसा जगाया है. हालांकि हेल्थकेयर उन क्षेत्रों में शामिल है, जिनमें हमने काफी सफलता हासिल की है.
बदलते जनसांख्यिकी परिदृश्य की चुनौतियां, मसलन बढ़ती आबादी, बदली जीवनशैली और नई तरह की बीमारियां और जलवायु परिवर्तन वगैरह कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे केवल सार्वजनिक-निजी खर्च, हेल्थकेयर नेटवर्क में संरचनात्मक बदलाव या चिकित्सकों और संबंधित पेशेवरों की संख्या बढ़ाकर नहीं निबटा जा सकता.
सेहत का ख्याल आपके हाथ
एआई और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) के जिस फायदे पर अब तक सबसे कम गौर किया गया है, वह यह कि इसके जरिये लोगों को खुद अपने स्वास्थ्य का यथासंभव ख्याल रखने में समक्ष बनाया जा सकता है. ऐप्स और चलते-फिरते इस्तेमाल की जा सकने वाली तकनीकों से जागरूकता बढ़ रही है और लोग स्वस्थ जीवनशैली के लिए प्रेरित हो रहे हैं. डेटा हेल्थकेयर पेशेवरों को अपने मरीजों के व्यवहार पैटर्न का पता लगाने और सेहत के बारे में बेहतर समझने में मदद करता है.
एआई मॉडल उन लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगाने और जल्द से जल्द निदान सुझाने में भी मदद कर रहे हैं, जिनमें जटिल असाध्य रोगों का खतरा काफी है. इससे डॉक्टरों को सही समय पर इलाज शुरू करने, बेजा सर्जरी से बचने और जरूरत के हिसाब से उचित चिकित्सकीय हस्तक्षेप करने में मदद मिलती है.
मरीजों से जुड़ी मौजूं जानकारी मुहैया कराके एआई संभावित इलाज को लेकर डॉक्टरों की माथापच्ची को घटाता है. मसलन, कार्डियोवैस्कुलर हेल्थकेयर के तहत एक मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किया जा रहा है, जो दिल का दौरा पड़ने के खतरों को लेकर पहले ही आगाह करने में सक्षम होगा.
ऐसे समाधानों के जरिए व्यापक जांच के बिना भी हृदय रोग से जुड़े खतरों के बारे में पता लगाया जा सकेगा और इससे मरीजों में रोग की जल्द पहचान करना संभव होगा. एआई आधारित पोर्टेबल स्क्रीनिंग डिवाइस से दूरदराज तक के इलाकों में आंखों की जांच की सुविधा बढ़ने की उम्मीद है, जिससे अंधेपन की समस्या पर काबू पाने में मदद मिलेगी.
एआई की मदद से मरीजों के हृदय रोग से पीड़ित होने का पता लगाने के लिए उनकी आंखों की स्कैनिंग का विश्लेषण ही काफी है. यह तरीका सीटी स्कैन, एमआरआई और एक्स-रे जैसे पारंपरिक तरीकों की जगह लेता जा रहा है.
एआई की मदद से हृदय रोग संबंधी परीक्षणों के एकदम नए और कम कष्टदायक तरीके विकसित होने की उम्मीदें हैं. इससे न केवल काफी पहले ही बीमारी का पता लग सकता है बल्कि यह कम या ज्यादा खतरे के लिहाज से मरीजों के उचित इलाज में भी मददगार है. एआई का एल्गोरिद्म डॉक्टरों को डेटा के विस्तृत विश्लेषण में मदद करेगा और वे संबंधित मरीजों की जरूरत के हिसाब से ड्रग कॉम्बिनेशन बनाने में सक्षम होंगे.
क्लाउड सुविधा की वजह से डॉक्टर हाई-रिजोल्यूशन वाली थ्रीडी तस्वीरें साझा करके रियल टाइम पर स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ परामर्श भी कर सकते हैं, जिससे पूर्व-तैयारी में मदद के साथ इलाज की पूरी प्रक्रिया की सफलता की संभावना और बढ़ जाती है. एआई डॉक्टरों को कई समान मरीजों के मामलों से जुड़ा डेटा मुहैया कराता है और उनकी बारीकियों की मदद से डॉक्टरों में संभावित इलाज को लेकर व्यापक समझ बनती है.
इसके अलावा, यह टेक्नोलॉजी युवा चिकित्सकों के लिए भी काफी कारगर है, जो सीमित अनुभव होने पर भी सटीक निष्कर्ष से वाकिफ हो सकेंगे. चिकित्सकों के बीच एआई साक्षरता बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि यह इलाज के दूसरे साधनों की तरह इस्तेमाल हो सके.
डॉक्टरों की कमी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, 1991 में भारत में प्रति 1,000 मरीजों पर डॉक्टरों की संख्या 1.2 थी. लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण यह संख्या और गिरकर 2020 में करीब 0.7 पर पहुंच गई. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञों का अभाव गंभीर समस्या है. मार्च 2022 के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सर्जन, चिकित्सकों, स्त्री और बाल रोग विशेषज्ञों की करीब 80 फीसद कमी थी.
सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि 21,920 विशेषज्ञों की जरूरत की तुलना में 4,485 का आंकड़ा बेहद कम है. खर्च वहन करने की क्षमता भी एक चुनौती बनी हुई है. करीब 70 फीसद स्वास्थ्य देखभाल खर्च निजी तौर पर वित्त पोषित होता है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है. नतीजा: हर साल करीब 6.3 करोड़ लोग इलाज पर भारी खर्च के कारण गरीबी के गर्त में चले जाते हैं.
एआई दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को किफायती और सुलभ बनाने में कारगर हो सकता है. मसलन, देशभर में अभी करीब 20 लाख आईसीयू बेड उपलब्ध हैं लेकिन नियमित निगरानी इसमें केवल 1,00,000 तक ही सीमित है. एआई की मदद से आइसीयू बेड की निगरानी पर होने वाले खर्च के दसवें हिस्से जितनी लागत में हर किसी बेड के बारे में पता रखना संभव हो सकता है. एआई संचालित मॉडल को आईपी सेटिंग्स के साथ जोड़ दिया जाए तो पूर्व चेतावनी सिस्टम की तर्ज पर डॉक्टरों के लिए ज्यादा गंभीर मरीजों पर ध्यान देना आसान हो सकता है.
एआई को प्रशासनिक कार्यों में टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जाए तो नियमित क्लिनिकल कार्यों को खुद-ब-खुद मैनेज करके यह स्वास्थ्य पेशेवरों को अहम बातों पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त समय मुहैया करा सकता है. चैटबॉट की मदद से मरीजों को अपॉइंटमेंट संबंधी जानकारी, बिलिंग और दूसरी सुविधाएं मुहैया कराई जा सकती हैं.
वर्चुअल हेल्थ असिस्टेंट कॉल और ईमेल पर मरीजों के सवालों का जवाब देते हैं, डॉक्टरों के साथ अपॉइंटमेंट की व्यवस्था करते हैं, फॉलो-अप और क्लिनिकल अपॉइंटमेंट पर रिमाइंडर भी भेजते हैं. एआई से जुड़ी दूर-दराज के मरीजों की निगरानी प्रणाली काफी कारगर है, जो उचित समय पर इलाज और गंभीर मरीजों की व्यक्तिगत देखभाल की सुविधा प्रदान करती है.
कुल मिलाकर, एआई आधारित हेल्थकेयर सूचना मुहैया कराने वाले एक सहायक के तौर पर कारगर हैं, जो संग्रहीत डेटा से हासिल सार्थक पैटर्न के जरिए डॉक्टरों की समझ को बढ़ाता है. निष्पक्ष, सुसंगत, उच्च गुणवत्ता वाले डेटा की मदद से बीमारी को समझने और उसका उपचार सुझाने में मदद करके यह तकनीक काफी समय और मशक्कत बचा सकती है.
नियमित प्रक्रिया के दौरान डीप लर्निंग या मशीन लर्निंग जैसे एआई टूल का इस्तेमाल मरीजों की देखभाल आसान बनाने के साथ इलाज को भी किफायती बना सकता है. हालांकि, आगे चलकर पूरी आबादी को कवर कर लेने वाले इस डेटा के दुरुपयोग के अंदेशों पर भी ध्यान देने के साथ इनकी गुणवत्ता को मजबूत किया जाना चाहिए. अगर डेटा में किसी तरह की खामी रही तो यह मरीजों के लिए घातक साबित हो सकता है.
बहरहाल, पूरी सावधानी के साथ अपनाए जाने पर यह तकनीक मेडिसिन और हेल्थकेयर क्षेत्र के भविष्य को नया आकार देने में सक्षम है. साथ ही सदियों पुरानी चुनौतियों के लिए नए समाधान खोजकर एक स्वस्थ समाज के निर्माण का वादा भी करती है.
- डॉ. नरेश त्रेहन (सीएमडी, मेदांता-द मेडिसिटी)