नवंबर में 17 दिनों तक पूरे देश की निगाहें टीवी स्क्रीन पर एक तनावपूर्ण बचाव अभियान पर लगी रहीं. उत्तराखंड के सिलक्यारा में 4.5 किलोमीटर लंबी निर्माणाधीन सुरंग के अंदर दीवाली के बाद से फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए सरकार अत्याधुनिक मशीनरी और टेक्नोलॉजी की मदद ले रही थी.
आखिर में 12 ऐसे खनिक मजदूरों की टोली काम आई, जिन्हें अंग्रेजी में 'रैटहोल या रैट माइनर' कहा जाता है. उन्होंने हाथ में लेकर काम करने वाले छोटे-छोटे औजारों से खुदाई की, टनों मलबा निकाला और बचाव सुरंग के आखिरी हिस्से तक पहुंचे. इसके लिए अमेरिकी ड्रिलिंग मशीन को भी कई दिनों तक जूझना पड़ा था. अपने इस करतब के चलते ये 'रैटहोल माइनर' फौरन सुर्खियों में छा गए. रैट माइनिंग यानी कोयला निकालने के लिए संकरी खुदाई करने के परंपरागत काम को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है.
उनको लेकर जश्न में यह बात दब गई कि वे 'रैटहोल माइनर' तो कतई नहीं. उस टोली के अगुआ वकील हसन रंगरेज हंसते हुए कहते हैं, "मुझे नहीं पता हमें सबसे पहले 'रैटहोल माइनर' किसने कह दिया. हमने इससे पहले 'रैटहोल माइनिंग' जैसा कुछ नहीं सुना था. हमारी कंपनी ने सफाई दी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया."
रंगरेज की दिल्ली स्थित कंपनी रॉकवेल एंटरप्राइजेज मैनुअल पाइप-जैकिंग का काम करती है, जिसे 'ट्रेंचलेस' काम भी कहा जाता है. सिलक्यारा में जब मशीन से बोर करना असंभव हो गया तो 12 लोगों की इस टोली को बुलाया गया. इसमें छह उत्तर प्रदेश और छह दिल्ली से हैं. पर गलत नाम उनके गले पड़ गया क्योंकि उनका हुनर पानी या सीवर पाइप की मरम्मत के लिए संकरे गड्ढे में उतरना है.
ऑगर मशीन 800 मिमी व्यास वाली सुरंग की ड्रिलिंग करते वक्त बार-बार चट्टान से टकरा कर फंस रही थी और फिर उसका रोटर टूट गया. इसलिए सरकार ने हाथ के औजारों से खुदाई कराने का फैसला किया. रॉकवेल के एक मालिक रंगरेज बताते हैं, "हमें 22 तारीख (बचाव अभियान के 12वें दिन) को एक कॉल आई. तब तक हमने उस जगह के बारे में कभी सुना नहीं था. हां, बाकियों की तरह हमने केवल टीवी और यूट्यूब पर समाचार देखा था."
इस टोली को पास के एक होटल में रुकने को कहा गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. रॉकवेल के दूसरे मालिक, 29 वर्षीय मुन्ना कुरैशी कहते हैं, "हमने साइट पर कैम्प में रहने का फैसला किया क्योंकि हम जितना संभव हो उतना योगदान देना चाहते थे." सुरंग का जायजा लेने के बाद रंगरेज ने अधिकारियों से कहा कि ऑगर मशीन फंस जाएगी और उनकी टीम को जल्द से जल्द काम दिया जाना चाहिए. वे कहते हैं, "मशीन जल्द ही बंद हो गई. तब हमने काम शुरू किया."
मलबे में दबने के जोखिम के बावजूद दो मजदूर मिट्टी निकालने के लिए रेंगकर घुसे और मिट्टी-मलबा खड़े हुए दो मजदूरों को पकड़ाते रहे. चौबीसों घंटे शिफ्ट में काम चलता रहा. ऑगर मशीन का रोटर टूट जाने और अंदर फंस जाने के कारण उनके पास अंदर जाने की बेहद संकरी जगह थी. फिर भी उन्होंने लगातार काम किया और 27 घंटे में उसे पूरा कर लिया.
मुन्ना बचाव का चेहरा बन गए क्योंकि उन्हें 28 नवंबर की शाम को टीवी पर सुरंग के दूसरी ओर जाते और फंसे मजदूरों की अगवानी करते पहले व्यक्ति के रूप में देखा गया. वे कहते हैं, "मैंने मिट्टी का आखिरी ढेर हटाया तो अंदर फंसे लोग खुशी से झूम उठे. उन्होंने मुझे गले लगाया और मैंने उन्हें बताया कि पूरी दुनिया उन्हें बाहर देखने का इंतजार कर रही है."
बचाव के बाद, यह टोली इस सीजन की बड़ी उपलब्धि बन गई. वे रियलिटी टीवी शो इंडियन आइडल में भी दिखे. रंगरेज कहते हैं, "हम श्रेया घोषाल, विशाल डडलाणी और कुमार शानू से मिले. उन सब ने हमारी वाहवाही की. हम खुश हो गए." वहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उन्हें एक-एक लाख रुपए का नकद इनाम दिया. फिर भाजपा सांसद मनोज तिवारी से हरेक को 25,000 रुपए मिले, पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जो हरेक को 50,000 रुपए का चेक सौंपा, उसे यह टोली भुनाने को तैयार नहीं. मुन्ना कहते हैं, "सिर्फ 50,000 रुपए के बजाय वे हमारे जीवन को बेहतर बनाने का कोई स्थायी साधन दे सकते थे. उन्होंने हमें हीरो कहा. ये इनाम हीरो के लायक है?"
खनन करने वाले मसीहा
> रैटहोल माइनर बताए गए बचाव टोली के लोग दरअसल संकरी बिलों में रेंगते हुए चढ़ने-उतरने में कुशल पाइप-जैकर हैं
> उस टोली ने हाथ के औजारों से सुरंग में बचाव अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम दिया, जिसे अत्याधुनिक मशीनें कर पाने में नाकाम साबित हुई थीं
जब ऑगर मशीन नाकाम हो गई तो उत्तर प्रदेश और दिल्ली से खनन करने वाले 12 लोगों को बचाव कार्य के लिए बुलाया गया
- अभिषेक जी. दस्तीदार