लगभग 20 साल में वे पहली सांसद हैं जिन्हें संसद से निष्कासित किया गया है, पर महुआ मोइत्रा का चुपचाप रुखसत हो जाने का कतई कोई इरादा नहीं. दिसंबर की 8 तारीख को जब लोकसभा में 'सवाल के बदले नकदी' मामले में आचार समिति का फैसला सुनाया गया, उन्होंने सदन के बाहर खड़े होकर पांच मिनट का आतिशी भाषण दिया.
इसमें उन्होंने बांग्ला के क्रांतिकारी कवि सुकांत भट्टाचार्य को उद्धृत करते हुए 'अगले 30 साल तक' सत्तारूढ़ भाजपा से लड़ने की कसमें खाईं. विपक्षी इंडिया गठबंधन के सदस्य उनकी बगल में खड़े थे और वे अपना रोष जाहिर करती रहीं, जिसमें भगवा खेमे पर उन्होंने "78 महिला सांसदों में से एक को सबसे कठोर ढंग से निशाना बनाने" का आरोप लगाया.
निष्कासन से पहले एक इंटरव्यू में महुआ ने कहा कि जब वे किसी चीज में यकीन करती हैं, तो यह तय करती हैं कि "भले ही कतार में खड़ी होने वाली आखिरी शख्स होऊं, तब भी पीछे नहीं हटूंगी." इस पूर्व इनवेस्टमेंट बैंकर ने कहा कि "17वीं लोकसभा के (बाकी बचे) दो हफ्तों के सत्र के लिए वे इसे वहां (निष्कासन) से आगे ले जाने को तैयार हैं." शुरुआती कुछ वक्त की चुप्पी के बाद उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी उनका खुलकर और पूरा समर्थन किया.
13 नवंबर को कृष्णानगर की सांसद को नादिया-कृष्णानगर सांगठनिक जिले का जिला सचिव बना दिया गया. पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी भी अब दृढ़ता से उनका समर्थन कर रही हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने निष्कासन की खबर आने के बाद पत्रकारों से कहा, "यह लोकतंत्र की हत्या है. महुआ परिस्थितियों की शिकार हुई हैं, पार्टी पूरी तरह उनके पीछे है. वे यह लड़ाई जीतेंगी और लोग भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देंगे."
महुआ को यह बात शायद कचोटती होगी कि 'परिस्थितियों' ने उन्हें इस मुकाम पर ला पटका है. मुद्दे तो 'सवाल के बदले नकदी' का विवाद उठने से पहले से थे. यह मुद्दा तो लंबे वक्त से उनके लिए अभिशाप बने भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे सामने लेकर आए.
पर फैशन और ब्रांडेड एक्सेसरीज के प्रति इस तेज-तर्रार सांसद का ठाठदार लगाव सोशल मीडिया पर सरगर्म चर्चा का विषय बना हुआ था. और इसमें से सभी से उनकी कोई बहुत अच्छी छवि तो नहीं बनती थी. उन्हें तभी से निशाना बनाया जा रहा था जब 2019 में उन्होंने संसद में अपना पहला भाषण देते हुए 'भारत में शुरुआती फासीवाद के सात संकेतों' का जिक्र किया था.
तभी से नरक की सजा की धमकियां दी जाने लगीं, जब महुआ ने 'कोयला घोटाले' को लेकर मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा. कई बार तो उन्हें विपक्ष की ओर से अकेले ही इस पर आक्रामक ढंग से बोलते पाया गया.
दुश्मन के इलाके में इतनी दूर तक घुसकर खेलने के बाद कुछ गोला-बारूद तो उनकी ओर भी आने की उम्मीद थी ही. मगर यह गोलीबारी एकदम अप्रत्याशित कोनों से आई—'ठुकराया हुआ पूर्व प्रेमी' और फिर 'करीबी निजी दोस्त.' पहले सुप्रीम कोर्ट के 35 वर्षीय वकील जय अनंत देहाद्राइ ने महुआ के खिलाफ आरोपों की फेहरिस्त से भरी 39 पेज की चिट्ठी सीबीआई और दुबे को भेजी.
आरोपों की तस्दीक दुबई में रहने वाले कारोबारी दर्शन हीरानंदानी ने हलफनामे के जरिए की. चिट्ठी में आरोप था कि उन्होंने ही गौतम अदाणी के भीमकाय समूह के खिलाफ लोकसभा में सवाल पूछने के एवज में महुआ को आलीशान तोहफे/नकदी दी थी. इन आरोपों से लैस 495 पन्नों की लोकसभा की आचार समिति की रिपोर्ट में महुआ को दोषी पाया गया. नतीजतन, उन्हें सदन से निष्कासित कर दिया गया.
वे बाहर जरूर हों पर हारी कतई नहीं हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या वे फिर चुनावी मैदान में उतरेंगी, महुआ ने इंडिया टुडे से कहा, "बेशक मैं (अगला आम चुनाव) लड़ रही हूं. और बिल्कुल जीत रही हूं. मैं 30 साल से ज्यादा समय तक राजनैतिक जीवन में रहने वाली हूं. ममता दी के नेतृत्व में मैं हरेक लम्हा इस फासीवादी मोदी सरकार और अदाणी के साथ इसके भ्रष्ट गठजोड़ से लड़ते हुए बिताऊंगी. दुनिया की कोई भी ताकत मुझे रोक नहीं पाएगी." दावे तो एक बड़े हिम्मतवर के लगते हैं.
—अर्कमय दत्ता मजूमदार
क्रिया की प्रतिक्रिया:
● 8 दिसंबर को महुआ को 'अनैतिक आचरण' की वजह से ध्वनि मत से लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया
●यह फैसला उनके खिलाफ 'कैश-फॉर-क्वेरी' आरोपों पर हाउस एथिक्स पैनल की रिपोर्ट
के बाद आया
● महुआ सदन में अदाणी समूह के कारोबार से जुड़े सवाल अक्सर उठाती रही हैं
● इसे एक प्रतिद्वंद्वी कारोबारी शख्सियत से उनकी निकटता से जोड़ने की कोशिश की गई; उन्होंने इसे 'फिक्स्ड मैच' बताया.