अजित अनंतराव पवार ने 2 जुलाई, 2023 को तब इस उक्ति को फिर साबित किया कि राजनीति संभावना की कला है, जब उन्होंने पवार नाम के मूल स्रोत से अलग होकर अलग पहचान बनाई. उन्होंने न केवल शरद पवार की बनाई नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को दो-फाड़ किया बल्कि इस उथल-पुथल के बीच चाचा को साथ आने का प्रस्ताव देकर इस विघटन को टालने की जिम्मेदारी उन पर ही डालने की कोशिश भी की.
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होते ही एक झटके में उनका दर्जा नेता विपक्ष से बदलकर उपमुख्यमंत्री हो गया. इसके साथ, विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालय भी उनके हाथ आ गए. यही नहीं, बगावत में साथी बने सभी आठ विधायक भी कैबिनेट मंत्री का रुतबा पाने में सफल रहे.
यह सब ऐसे समय हुआ जबकि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 70,000 करोड़ रुपए के कथित घोटालों को लेकर एनसीपी को घेरा था. ऐसे में अटकलों का बाजार गर्म रहा कि क्या इस बगावत के पीछे केंद्रीय एजेंसियों का डर बड़ा कारण था या उनके तरफ से बताई गई महाराष्ट्र के विकास की चिंता.
अजित दादा की छवि इस तरह की बनाई जा रही है कि कानूनी अड़चनों ने ही असल नुकसान किया है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. इसके आगे की बात यह है कि सत्ता की धुरी की तरफ उनके झुकाव का साल 2024 में महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों के चुनाव पर क्या असर होगा. 2019 में तत्कालीन एकजुट शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर एनडीए ने 48 लोकसभा सीटों में से 41 पर जीत हासिल की थी.
फिर, महाविकास अघाड़ी (एमवीए) ने आकार लिया और सारे सियासी समीकरण बदल गए. ऐसे में सफलता भले ही दोहराई न जाए लेकिन एक मजबूत प्रदर्शन भाजपा के लिए जरूरी है. बतौर मुख्यमंत्री शिंदे के कामकाज को लेकर थोड़ी नाराजगी पनपी है, फिर अली बाबा और उनके 40 बागियों जैसी उपमाओं ने भी शिंदे की छवि को लेकर बेचैनी उत्पन्न कर दी है. ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि उन्होंने शिवसेना के काडर और मतदाताओं का समर्थन खो दिया है, जो मनोवैज्ञानिक तौर पर पुराने दिग्गजों से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं.
दूसरी ओर, सहकारी समितियों में मजबूत पैठ रखने वाले एनसीपी क्षत्रप के बारे में यह राय मजबूत हो रही है कि वे अपनी यात्राओं के दौरान कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का भरोसा जीतने में सफल रहते हैं. लेकिन, अब स्थिति उन दिनों से एकदम जुदा है, जब अजित एमवीए गठबंधन (2019-22) में तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के डिप्टी के तौर पर पूरी हनक के साथ सरकार चलाया करते थे. अब, उनका मुकाबला शिंदे से है जो एक जननेता हैं.
फिर दूसरे उपमुख्यमंत्री (और गृह मंत्री) देवेंद्र फडणवीस की तो बात ही छोड़ दीजिए, जिन्हें उनकी तरह ही नौकरशाही पर मजबूत पकड़ रखने वाले कुशल प्रशासक के तौर पर देखा जाता है. यही नहीं, अपने चाचा की छाया के बाहर निकलना अजित के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जो पार्टी दो-फाड़ होने के बावजूद खासे वर्चस्व वाले मराठा समुदाय के बीच मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं.
शिंदे ने भाजपा से हाथ मिलाने के बाद जहां अपनी निजी पहचान गंवा दी है, वहीं अजित स्वतंत्र पहचान बनाए रखने में अभी तक सफल रहे हैं. उन्होंने दूसरे दिन भाजपा की ओर से सभी सहयोगियों को नागपुर आने के लिए दिए गए 'अनिवार्य' निमंत्रण की अनदेखी कर दी, जहां आरएसएस नेताओ ने जाति जनगणना के खिलाफ नसीहत दी थी. अजित गुट के एक सदस्य का कहना था, "वहां न जाना हमारा अधिकार है", जो उनके धर्मनिरपेक्ष रुख बरकरार रखने का संकेत है.
अजित ने जाति जनगणना की वकालत की है. यह एनसीपी के पुराने मराठा जनाधार से इतर बड़ा 'बहुजन' मतदाता वर्ग बनाने के प्रयास दर्शाता है. लेकिन एक्टिविस्ट मनोज जारंगे पाटिल के मराठाओं के लिए ओबीसी दर्जे की मांग के लिए आंदोलन से मराठा-ओबीसी संबंध बिगड़ गए हैं. अगर अजित को बगावत का फल चाहिए तो कुछ रचनात्मक राजनीति करनी होगी. उनकी नजरें सीएम की कुर्सी पर हैं. इसके लिए उन्हें लोकसभा चुनाव और अक्तूबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में एनसीपी के वोट एनडीए में लाने होंगे. क्या वे ऐसा कर पाएंगे?
—धवल एस. कुलकर्णी
पवार की पहचान:
● शिंदे-फडणवीस सरकार में तीसरे पहिए के तौर पर अजित पवार के कामकाज की शैली एकदम अलग है, जबकि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में वे अहम फैसले लेने में बड़ी भूमिका निभा रहे थे
● रूखे और कठोर होने की छवि के बावजूद वे अपेक्षाकृत काफी उदार व्यक्ति हैं. किसी भी तरह के व्यसन से दूर रहते हैं और उनकी दिनचर्या सुबह जल्द शुरू होती है
● समर्थकों की नजर में अजित अपनी जबान के पक्के हैं. कभी खोखले वादे नहीं करते, खासकर व्यक्तिगत आचार-व्यवहार में
● उनका सबसे बड़ा दोष यह है कि कई बार बोलते समय आगा-पीछा नहीं सोचते. मसलन, 2013 में भीषण सूखे के बीच उनके एक बयान को अब तक भुलाया नहीं जा सका है, जब उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों से कहा था कि क्या उन्हें पानी मुहैया कराने के लिए वे सूखे पड़े बांध में पेशाब करें?