
मुंबई के केएमई अस्पताल में मेडिकल छात्रा के तौर पर स्वाति पीरामल गर्दन से पांव तक लकवे की शिकार पोलियोग्रस्त लड़की को देखकर हिल गईं. पोलियो का टीका जरूरतमंदों तक पहुंचाने का संकल्प ही उन्हें जनस्वास्थ्य की तरफ ले गया. उन्होंने और उनके दोस्तों ने शहर के लोवर परेल इलाके में टेक्सटाइल मिल के कामगारों के बीच काम करते हुए बच्चों को पोलियो के टीके लगाए और इस बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा की.
शुरुआत में उन्हें कामगारों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन पति अजय पीरामल के पिता और मोरारजी टेक्सटाइल्स के मालिक गोपीकिशन पीरामल ने टीके की तीनों खुराक लेने वाले कामगारों को ड्रेस मटीरियल की शक्ल में प्रोत्साहन लाभ देने का वादा किया. यह काम आया और बहुत जल्द ही यह इलाका नो-पोलिया जोन बन गया. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में, 37 साल की उम्र में (तब तक वे दो बच्चों की मां बन चुकी थीं), काम करने के दौरान उन्हें जनस्वास्थ्य देखभाल की ताजातरीन खोजों का अनुभव मिला.
तब तक अजय ने निकोलस लैबोरैटरीज का अधिग्रहण कर लिया था (1988). यह कदम डॉ. पीरामल को फार्मा रिसर्च के करीब ले आया, और आगे चलकर पीरामल परिवार ने होचेस्ट रिसर्च सेंटर खरीदा. मगर भारत को नए रासायनिक तत्वों और अणुओं के बारे में पता नहीं था, और नीतियां जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देती थीं. पीरामल कहती हैं, ''मुझे लगता है कि रिसर्च के मोर्चे पर मैं अपने समय से बहुत आगे थी.’’
वे पीरामल फाउंडेशन की अगुआ हैं जो स्वास्थ्य, शिक्षा और पानी पर जोर देता है. शैक्षिक पहल, प्रथम, नेतृत्व—मसलन, हेडमास्टरों को प्रशिक्षण देने पर ध्यान देती है ताकि शिक्षा के नतीजे बेहतर हों. केईएम में उन्होंने मेडिकल छात्रों के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें वे सबसे निराशाजनक स्वास्थ्य संकेतकों वाले गांवों में बीमारियों पर जमीनी अनुसंधान करते हैं.
एक और पहल 20 राज्यों के गांवों और अस्पतालों में इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड तैयार करना है. सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करवाने का मिशन 'सर्वजल’ उनके बेटे आनंद ने शुरू किया. वे मानती हैं कि नेतृत्व, टेक्नोलॉजी और सेवा भाव जनस्वास्थ्य के मामले में चमत्कार कर सकते हैं. वे कहती हैं, ''एक बार इन्हें सही कर लें, तो देश में संक्रमणों के स्तर काफी नीचे होंगे और हमारे शिशु और मातृ मृत्यु दर के आंकड़े भी बहुत कम होंगे.’’
सुनीता रेड्डी, 65 वर्ष
मैनेजिंग डायरेक्टर, अपोलो हॉस्पिटल्स

अपोलो हॉस्पिटल्स की प्रबंध निदेशक के तौर पर सुनीता रेड्डी हमेशा अपने लक्ष्य पर टिकी रही हैं—अपने संस्थानों को स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे आगे रखना और देश-विदेश में अपनी उपस्थिति बढ़ाना. अपोलो हॉस्पिटल के संस्थापक डॉ. प्रताप सी. रेड्डी की बेटी होने के नाते उनका इस क्षेत्र से निजी जुड़ाव होना स्वाभाविक था.
वे कहती हैं, ''शायद वह सबसे भावुक कर देने वाला पल था, जब पापा ने मुझे एक युवा लेकिन महत्वाकांक्षी उद्यमी होने के बावजूद आर्थिक हितों की जिम्मेदारी सौंपी. उनके भरोसे ने मेरे अंदर यह विश्वास पैदा किया कि मैं कुछ बड़ा कर सकती हूं.’’ सुनीता ने 1995 में पहली बार भारतीय स्वास्थ्य सेवा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाकर उस भरोसे को बरकरार रखा. 2005 में अपोलो को अंतरराष्ट्रीय इक्विटी बाजारों में उतारने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है.
अपोलो ने भारतीय स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में कई पहल शुरू की हैं. भारत के पहले मास्टर हेल्थ चेकअप को डिजाइन करने और पहले प्रोटॉन थेरेपी सॉल्यूशन से लेकर सबसे बड़ी फार्मेसी चेन बनाने तक. यह सब मरीजों की सेवा की अपोलो की प्रतिबद्धता को जाहिर करता है. सुनीता रेड्डी कहती हैं, ''मद्रास में 150 बेड वाले अस्पताल से लेकर आज सबसे बड़ा एकीकृत स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बनने तक, हमने चार दशकों में जो अपार सफलता हासिल की है, उसे देखकर बहुत खुशी होती है.’’
अपोलो के बढ़ते कदम हैरान कर देने वाले हैं. इसके 72 अस्पताल, लगभग 6,000 फार्मेसी, 200 से अधिक क्लिनिक और 150 टेलीमेडिसिन केंद्र हैं. अपोलो के 24&7 ऑनलाइन स्टोर के 2.5 करोड़ से अधिक यूजर्स हैं.
सुनीता कहती हैं कि लोगों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की उनके पिता की अटूट प्रतिबद्धता उनके और उनकी तीनों बहनों के लिए सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत रही है. वे कहती हैं, ''उन्होंने सुनिश्चित किया कि हम सभी अपनी सामूहिक ताकत समझें और परिवार के तौर पर हमारे बीच इस तालमेल ने ही हमारे विस्तार और सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’’ वे आगे के रास्ते को लेकर भी उतनी ही आशावादी हैं. वे कहती हैं, ''मेरा पेशेवर करियर मोतियों की माला की तरह रहा, इस यात्रा में अभी कई अध्याय जुड़ने बाकी हैं.’’