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सुनीता नारायण: वो पर्यावरण विशेषज्ञ, जिनका इंटरव्यू लियोनार्डो डिकैप्रियो ने लिया

नारायण को जिस बात से सबसे ज्यादा चोट पहुंचती है, वह है दिल्ली का वायु प्रदूषण. वो शहर जहां उनका जन्म हुआ और जहां उन्होंने ताउम्र काम किया. वे कहती हैं, "साफ-सुथरी हवा के लिए हम कठोर फैसले लेने को तैयार नहीं"

सुनीता नारायण, डीजी, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनवेंट, एडिटर, डाउन टू अर्थ
सुनीता नारायण, डीजी, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनवेंट, एडिटर, डाउन टू अर्थ
अपडेटेड 15 जनवरी , 2024

सुनीता नारायण उन 31 विशेषज्ञों में शामिल थीं जिन्हें संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने 12 दिसंबर को संपन्न संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन या सीओपी28 के सलाहकार मंडल में नियुक्त किया था. हमेशा की तरह वे वहां महज खोखली अच्छी-अच्छी बातों की दुहाई देने के लिए नहीं थीं. 

जलवायु शिखर सम्मेलन के एक महीने पहले उन्होंने और पाक्षिक पत्रिका डाउन टु अर्थ तथा सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट के उनके सहयोगियों ने खोजी रपट प्रकाशित की. इसमें चर्चा थी कि कैसे स्वैच्छिक कार्बन बाजार में निजी क्षेत्र की तरफ से लगाए जा रहे धन से न तो पृथ्वी को और न ही लोगों को कोई फायदा हो रहा है.

रिपोर्ट से पता चला कि मौजूदा कार्बन बाजारों का हश्र वैश्विक उत्सर्जनों की बढ़ोतरी में हो सकता है. नारायण कहती हैं, "सीओपी28 में हमारी रिपोर्ट ने स्वैच्छिक कार्बन बाजार में ईमानदारी, पारदर्शिता और लाभ साझा करने की अहमियत को सामने लाने में अहम भूमिका अदा की."

समरूपता और ईमानदारी नारायण के उस पर्यावरण एक्टिविज्म के दो आधारस्तंभ रहे हैं जो कुलीन संरक्षणवाद की विरोधी है. वे मानती हैं कि गरीब प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं और अमीरों को उनसे सीखने की जरूरत है कि साझा भविष्य का निर्माण कैसे किया जाता है. 1985 में उन्होंने पहली 'भारत के पर्यावरण की स्थिति रिपोर्ट' का सह-संपादन किया था और तभी से नारायण पर्यावरण की रक्षा करने और टिकाऊ विकास का रास्ता तैयार करने के लिए स्थानीय स्वशासन की वकालत करती रही हैं.

अपने पेशे में महिला होने के फायदे भी हैं और नुक्सान भी. महिला होने के नाते वे लीक से हटकर सोच सकती हैं, पर उनके संगी-साथी, जो ज्यादातर पुरुष हैं, उन्हें अक्सर लीक में कैद कर देते हैं. 17 की उम्र में पेड़ों की कटाई का विरोध करने वाले छात्र एक्टिविस्ट ग्रुप कल्पवृक्ष से जुड़ी नारायण कहती हैं, "वे यथास्थिति को बदलना नहीं चाहते और इसलिए अनजान रास्तों पर चलती मैं अकेली छूट जाती हूं." अपने जुनून के पीछे चलने का साहस और दृढ़विश्वास उन्हें अपनी मां उषा नारायण से मिला, जिन्होंने अकेले अपने दम पर चार बेटियों का लालन-पालन किया.

नारायण मानती हैं कि किशोरवय में शुरू हुआ उनका यह सफर लंबा और धीमा रहा है, पर धीरे-धीरे उन्होंने नीति निर्माताओं और दूसरे हितधारकों की चेतना तथा नजरिए में कुछ सकारात्मक बदलाव आते देखे. वे और उनके सहयोगी जिन ढेरों चीजों के बारे में बात करते रहे हैं, उन्होंने अंतत: सरकारी नीतियों का मार्गदर्शन किया.

हालांकि जिस बात से उन्हें सबसे ज्यादा चोट पहुंचती है, वह है दिल्ली का वायु प्रदूषण, उस शहर का जहां उनका जन्म हुआ और जहां उन्होंने ताउम्र काम किया. वे कहती हैं, "साफ-सुथरी हवा के लिए हम कठोर फैसले लेने को तैयार नहीं. कठोर फैसलों का मतलब लोगों के लिए परेशानियां पैदा करना नहीं है, बल्कि ऐसे फैसलों से पैदा तकलीफ को कम करने के तरीके खोजना है. इसे परिवर्तनकारी होना होगा और तेजी से होना होगा."

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