अमूमन बच्चे लोरी सुनकर बड़े होते हैं. लेकिन श्रेया घोषाल के कानों में तो उनकी मां शर्मिष्ठा के रवींद्र संगीत और हारमोनियम पर बजने वाले क्लासिकल म्यूजिक का रस घुलता था. श्रेया के परमाणु वैज्ञानिक पिता विश्वजीत ने भी उनकी प्रतिभा निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
उन्होंने श्रेया के लिए उस समय एक इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा बनाया जब वह बाजार में उपलब्ध नहीं होता था. 13 साल की श्रेया को अपनी प्रतिभा को पूरी तरह निखारने का मौका मिले, इसलिए उनका परिवार राजस्थान के रावतभाटा से मुंबई आ गया था.
16 साल की उम्र में उन्होंने रियलिटी टीवी शो सारेगामापा का पहला सीजन जीत लिया था. उनकी प्रतिभा देखकर फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली ने उन्हें देवदास (2002) में गाने का पहला मौका दिया और उन्होंने 'बैरी पिया’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. 21 साल की यात्रा में श्रेया ने कई पुरस्कार जीते हैं.
हिंदी फिल्म संगीत उद्योग हमेशा से ही पुरुष प्रधान रहा है. वे बताती हैं कि अभी भी रिकॉर्डिग स्टूडियो में साउंड इंजीनियर्स या अरेंजर्स के तौर पर महिलाएं शायद ही कभी नजर आती हैं. किसी गाने के क्रेडिट में और इयर एंडिंग चार्ट में महिलाओं की बेहद कम भागीदारी लैंगिक असमानता को ही जाहिर करती है.
श्रेया कहती हैं, "महिलाओं को कितने सोलो गीत मिलते हैं? कभी-कभी तो फिल्म की कहानी पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित होती है लेकिन गानों में आवाज पुरुष की ही होती है. आज भी अपनी लाइनों के लिए मुझे लड़ना पड़ता है."
श्रेया घोषाल इसे अच्छी भावना के साथ की गई लड़ाई बताती हैं. वे कहती हैं, "यह शायद महिला गायकों की अगली पीढ़ी की राह को थोड़ा आसान कर दे. मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में स्थिति बेहतर होगी."