तमिलनाडु के विल्लुपुरम में 1960 के दशक में रेलवे अस्पताल के बरामदे में डिप्थीरिया के जानलेवा प्रकोप से बचाई गई बच्ची, 1980 के दशक में वाइस-चांसलर के घेराव में शामिल जेएनयू की विद्रोही छात्रा, अध्येता जिसने लंदन की रीजेंट स्ट्रीट पर होम डेकोर स्टोर में क्रिसमस के सबसे ज्यादा नंबरों के साथ सेल्सगर्ल का भी काम किया, फोर्ब्स की 50 मोस्ट पावरफुल विमेन लिस्ट में नियमित नाम... अगर आप निर्मला सीतारमण की जिंदगी का ग्राफ बनाएं तो भारत के आर्थिक नक्शों पर उसकी प्रतिकृति देखकर वे खुश होंगी. यह देश अपने वित्त मंत्रियों के लिए कभी आसान नहीं रहा.
अगर इसकी पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री होना दोगुना बोझिल और कष्टसाध्य होने की संभावना से भरपूर था, तो भी यह तनाव विरले ही कभी दिखाई दिया—महामारी की उस विनाशकारी धमक के बावजूद जिसने पूरी दुनिया के लिए घड़ी के कांटों को काफी पीछे धकेल दिया. सीतारमण ने घड़ीसाज की लगन के साथ अपना पेचीदा काम शुरू किया और मौजूदा वक्त की जरूरतों और युग की पुकार दोनों के प्रति एक साथ जागरूक रहीं. एमएसएमई के लिए गिरवीमुक्त कर्ज, किसानों के लिए रियायती ऋण—20 लाख करोड़ रुपए का प्रोत्साहन पैकेज न केवल आत्मनिर्भरता में जान फूंकने बल्कि तूफान के बीच भविष्य के बीज बोने के लिए तैयार किया गया.
सुधारों पर उनके जोर के चलते 2020 में सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों का चार में विलय हुआ. इनमें आंध्रा बैंक भी था, जिसने पति परकला प्रभाकर के गृहराज्य को परेशान कर दिया—एलएसई से पढ़े अर्थशास्त्री के पूर्व बॉस चंद्रबाबू नायडू ने उलाहना भरे अंदाज में सीतारमण को चिट्ठी लिखी. संघवाद की शुरुआत प्रेमपूर्ण ढंग से घर से ही हुई: परकला भी आलोचनाएं लिखने लगे, जिसमें एक किताब भी है. पी.वी. नरसिंह राव के करीबी और कम्युनिस्ट से कांग्रेसी बने मंत्री के बेटे परकला परिवार में मूल राजनीतिज्ञ थे.
वे जेएनयू के फ्री थिंकर्स के रूप में मिले; भाजपा में पहले उन्हें शामिल होना था. पूरा परिवार किताबों से प्यार करता है: बेटी वांग्मयी अन्य चीजों के अलावा मिंट लाउंज में बुक एडिटर हैं. सीतारमण भी अक्सर किताबों पर ट्वीट करती हैं: मार्खेज से लेकर किंवदंतियों से भरी वेटरंस ऑफ द रिजर्व बैंक और भगवद्गीता की व्याख्या दस स्पेक कृष्णा तक. इस आखिरी किताब ने रक्षा मंत्री के तौर पर उनकी पारी के दौरान जरूर मदद की होगी. अगर आप श्रीमती गांधी को छोड़ दें, तो रक्षा मंत्री बनने वाली भी वे पहली महिला थीं. बालाकोट याद है आपको?
- सोनल खेत्रपाल