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किरण नाडर और अरुणा साईराम: भारतीय कला की दुनिया में स्थापित की अपनी एक अलग विरासत

खुद कला की पारखी और संग्रहकर्ता, नाडर का भारतीय कला को वैश्विक मंच पर ले जाने का लक्ष्य 2010 में किरण नाडर कला संग्रहालय (केएनएमए) की स्थापना के रूप में सामने आया

किरण नादर म्यूजियम ऑफ आर्ट की प्रेसिडेंट किरण नादर
किरण नादर म्यूजियम ऑफ आर्ट की प्रेसिडेंट किरण नादर

कम लोग जानते हैं कि आज भारतीय कला हलके के सबसे प्रसिद्ध नामों में एक किरण नाडर अंतरराष्ट्रीय ब्रिज खिलाड़ी भी हैं. उन्होंने 1986 की विश्व चैंपियनशिप में भी हिस्सा लिया था. वे 10 साल की उम्र से ही अपने परिजनों के साथ खेल रही हैं. नाडर कहती हैं, "मैंने ब्रिज स्पर्धा में खेलना शुरू किया, तो मुझे नहीं मालूम था कि विश्व चैंपियनशिप जैसा कुछ होता है. लोगों ने मेरे ब्रिज हुनर को सराहा. मैं खेलने लगी, तो मुझे खेल कठिन नहीं लगा, बल्कि बड़ा मनोरंजक लगा."

नाडर को हमेशा से चुनौतियां पसंद रही हैं. वे बच्चों जैसी मुस्कान लिए कहती हैं, "ज्यादातर लोग एक खास उम्र में रिटायर हो जाते हैं, लेकिन मुझे इसकी जरूरत महसूस नहीं होती." उनकी कभी न हार मानने वाली भावना कला के लिए जुनून में भी दिखती है. इसकी शुरुआत तो घर में कलाकृतियां इकट्ठा करने से हुई. "मुझे लगा कि कलाकृतियां देखने की जगहें कम हैं, और होनी चाहिए ताकि कला का प्रोत्साहन हो सके. मुझे लगा कि कला का लोकतंत्रीकरण करना जरूरी है."

खुद कला की पारखी और संग्रहकर्ता, नाडर का भारतीय कला को वैश्विक मंच पर ले जाने का लक्ष्य 2010 में किरण नाडर कला संग्रहालय (KNM) की स्थापना के रूप में सामने आया. केएनएमए 12,000 से अधिक कलाकृतियों के संग्रह के साथ देश में बेजोड़ है. यह म्यूजियो नैशनल सेंट्रो डी आर्टे रीना सोफिया (मैड्रिड), द मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट (न्यूयॉर्क), टेट मॉडर्न (लंदन), म्यूसी डेस आर्ट्स एशियाटिक्स (नीस), मुसी गुइमेट (पेरिस) जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय केंद्रों की श्रेणी में आ गया.

नाडर कहती हैं, "मैं अपने बाद बरसों के लिए कला की विरासत छोड़ना चाहूंगी." वे अपने इस मकसद में अपने पति के समर्थन को बड़ी शक्ति मानती हैं, "मैं उनके समर्थन के बिना संग्रहालय नहीं बना पाती."

नाडर 72 साल की उम्र में भी अपने काम को अधूरा मानती हैं. उनकी अगली परियोजना नई दिल्ली हवाई अड्डे के पास एक अत्याधुनिक केएनएमए केंद्र बनाने की है. उस जगह को दृश्य कला केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां प्रदर्शनियां और शो होंगे. ''हो सकता है कि समय के साथ मैं कामकाज में थोड़ी धीमी पड़ रही होऊं, लेकिन मेरी कोशिश होगी कि यह काम बेहतर ढंग से पूरा हो सके.’’

— शैली आनंद


अरुणा साईराम

अरुणा साईराम, कर्नाटक संगीत गायिका

कल्पना कीजिए, अरुणा साईराम संगीत संरचना कलिंग नर्तन के स्वर की ऊंचाइयां छू रही हैं, जो बाल कृष्ण के यमुना नदी में कालिया नाग के सिर पर नृत्य करने की कथा है. साईराम सुरों और लय में पूरी तरह रमी हुई हैं और विलक्षण स्वर-लहरियों को शिखर पर पहुंचा रही हैं, तभी उनकी आंखें सामने खड़े दर्शकों की तालियों से खुलती हैं.

साईराम अपनी पसंदीदा कांजीवरम सिल्क साड़ी में गले में पन्ने जड़ा हार और कानों में हीरे जड़ी बालियों में कर्नाटक संगीत की देवी जैसी लग रही हैं. यकीनन वे ऐसी विलक्षण आवाज की धनी हैं, जिसकी तीव्रता लोगों की आंखों में आंसू ला देती है. वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं, जो मराठी अभंग से लेकर गॉस्पेल संगीत तक सहजता से गाती हैं. बेशक, वे निर्विवाद रूप से हमारे समय की कद्दावर संगीतज्ञों में एक है.

मुंबई में संगीतकारों के परिवार में जन्मीं साईराम को संगीत की शिक्षा मां राजलक्ष्मी से मिली, जो उनकी आजीवन प्रेरणा और आदर्श रहीं. उनका घर 1960 के दशक के अंत में मुंबई पहुंचने वाले दक्षिण भारत के कई संगीतकारों का ठिकाना हुआ करता था. उनसे साईराम को अज्ञात, अनसुनी अमूल्य संगीत रचनाएं उपहार में मिलीं. हिंदुस्तानी संगीत सहित विभिन्न शैलियों से परिचित साईराम ने सर्वश्रेष्ठ सुरों को आत्मसात किया. यह साईराम के लिए नए अन्वेषण और अपनी खुद की शैली विकसित करने में मददगार हुई, जिसे 'अरुणा साईराम घराना' कहा जा सकता है.

फिर भी साईराम के लिए चेन्नई कॉन्सर्ट सर्किट में सफलता हासिल करना बिल्कुल आसान नहीं था. वे कहती हैं, "मेरा कोई गॉडफादर नहीं था. मुझे खुद को खुले दिमाग से आगे बढ़ाना था. इससे भी बुरा यह होता कि मैं मुंबई लौट जाती, लेकिन वह नहीं होना था. बेशक, मुझे खुद को स्थापित करने में काफी समय लगा. पर एक बार मैं जम गई तो जीवन तेज गति से आगे बढ़ा."

साईराम अन्य शैलियों से भी जुड़ीं. फ्रांसीसी संगीतकार डोमिनिक वेलार्ड और मोरक्को के सूफी गायक नूरेद्दीन ताहिरी के साथ उनके संगीत को शांति प्रार्थना जैसा माना जाता है. साईराम पूछती हैं, "संगीत सार्वभौमिक अभिव्यक्ति है. भक्ति के बिना संगीत का अस्तित्व क्या है?" वे याद करती हैं कि उनकी मां कैसे घर के मंदिर में दीया-बाती जलाते समय गाया करती थीं. 
 

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