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गीता शेषमणि: डीयू की ये इंग्लिश प्रोफेसर कैसे बन गईं जानवरों की मसीहा?

शेषमणि शुरू से इस एनजीओ के साथ जुड़ी हैं. इस दौरान उन्होंने दिल्ली के गार्गी कॉलेज में अंग्रेजी की प्रोफेसर के तौर पर नौकरी भी की.

गीता शेषमणि, सह-संस्थापक, फ्रेंडिकोज एसईसीए और वाइल्डलाइफ एसओएस
गीता शेषमणि, सह-संस्थापक, फ्रेंडिकोज एसईसीए और वाइल्डलाइफ एसओएस
अपडेटेड 12 जनवरी , 2024

दरअसल, 1970 के दशक के मध्य में छोटे बच्चों के एक समूह ने नई दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी प्लाइओवर के नीचे बचाए गए आवारा पशुओं के लिए एक 'काइंडनेस क्लब’ शुरू किया. उन बच्चों में से एक गीता शेषमणि बताती हैं, "हमें तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जगह दी थी. हमें बदहाल, घायल और छोड़ दिए गए बहुत सारे जानवर मिले."

समूह ने 1979 में सड़क पर रहने वाले जानवरों की मदद के लिए फ्रेंडिकोज एसईसीए की स्थापना की. आज भी यह संस्था जानवरों की भलाई और देखरेख में लगी है. शेषमणि शुरू से इस एनजीओ के साथ जुड़ी हैं. इस दौरान उन्होंने दिल्ली के गार्गी कॉलेज में अंग्रेजी की प्रोफेसर के तौर पर नौकरी भी की. पर उनका कहना है कि जानवरों की मदद करने में ही उन्हें जीवन के सही मायने मिले. 1995 में उन्होंने सह-संस्थापक के तौर पर एनजीओ वाइल्डलाइफ एसओएस की भी नींव रखी.

शेषमणि ने अपनी पीएचडी के बाद अमेरिका से अपने वतन लौटने का फैसला लिया. वे चाहती थीं कि उनके बच्चे को सामुदायिक वन्यजीवन का अनुभव मिले और वह उसकी महत्ता को समझे. उन्होंने कहा, "हम अपने बच्चों को दूसरों के साथ दुनिया साझा करने का तरीका सिखाए बिना उनका पालन-पोषण कर रहे हैं. मैं अपने बच्चे को समझाना चाहती थी कि पेड़ों पर पक्षियों को देखना, सड़क पर गाय या कुत्ते को खाना खिलाना कैसा होता है."

पिछले एक दशक में उनके एनजीओ को ऐसे कई जख्मी जानवर मिले जिन पर एसिड या कांच की बोतलों से हमला किया गया, या भूखा रखा गया या अधमरा कर दिया गया था. वे कहती हैं, "पशुओं के साथ लोगों का दुर्व्यवहार बढ़ता जा रहा है. एक कुत्ता किसी को काट ले, तो उस घटना को मीडिया में खूब उछाला जाता है. इससे सामुदायिक स्तर पर जानवरों के प्रति लोगों की धारणा बदल जाती है."

कोविड-19 के कारण बीते वर्षों में एनजीओ को छोड़े गए पशुओं और कम्युनिटी फीडर्स में कमी से जूझना पड़ रहा. वे कहती हैं, "कोविड में हमें छोड़ दिए गए जानवरों की बड़ी संख्या से निबटना पड़ा. अच्छी नस्ल के घोड़ों को लेकर भी संकट था क्योंकि कई घुड़सवारी क्लब बंद हो रहे थे और हमें नहीं पता था कि पुराने घोड़ों का क्या किया जाए, उन्हें बस खेतों में बांध दिया गया और छोड़ दिया गया था." फ्रेंडिकोज तब से एक मोबाइल इक्वाइन क्लिनिक चला रहा है. उनके अनुसार, "उन पशुओं को हमें गुरुग्राम में अपने बड़े पशु अभयारण्य में भेजना पड़ा, जहां अब गधे, टट्टून, खच्चर सहित करीब 200 बड़े जानवर हैं."

फ्रेंडिकोज ने आवारा कुत्तों-बिल्लियों की नसबंदी में भी बड़ी भूमिका निभाई—जो कि शेषमणि के अनुसार, उनकी बढ़ती संख्या पर काबू पाने का एकमात्र मानवीय तरीका है. पर उसके लिए दृढ़ संकल्प और काफी पैसे की जरूरत होती है. कुछ साल पहले फ्रेंडिकोज बंद होने के कगार पर था.

एनजीओ को कई लोगों का गुस्सा और धमकी-मुकदमे भी झेलने पड़े. वे कहती हैं, "सीएसआर के सामुदायिक कार्यक्रम पशुओं पर लागू नहीं होते. जंगली पशुओं, पर्यावरण के संरक्षण लिए तो बहुत कुछ किया जाता है लेकिन सड़क पर घूमने वाले पशुओं के लिए इतना कुछ नहीं. उम्मीद है, यह तस्वीर बदलेगी."

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