दीपिका पादुकोण ने 21 की उम्र में ओम शांति ओम के साथ रुपहले परदे पर पदार्पण किया, जिसका निर्देशन महिला डायरेक्टर (फराह खान) ने किया था. यह बात उनकी नजर से नहीं चूकी कि दूसरी महिला डायरेक्टर (मेघना गुलजार की छपाक) के साथ काम करने में उन्हें करीब 13 साल लगे, जो उनकी प्रोड्यूस की गई पहली फिल्म भी थी. उनका कहना है कि शुरुआती सालों में उन्होंने लैंगिक गैरबराबरी पर गौर नहीं किया.
मगर धीरे-धीरे एहसास हुआ कि 100 साल पुरानी इंडस्ट्री में यह कितनी गहराई से समाई है. चाहे मेहनताने में फर्क हो या हीरो की वैनिटी वैन को लोकेशन के नजदीक पार्क करना या पैक-अप के समय उनके शॉट को अहमियत देना, यह सब आम बात थी. ऐसा नहीं कि दीपिका कार्यस्थल को लेकर टेसुए बहा रही हैं. वे तो बस हकीकत सामने रख रही हैं. उनके शब्दों में, "हमें ख्याल रखना होगा कि यह कोई मर्दों के खिलाफ औरतों की बातचीत नहीं है, बल्कि दोनों की बराबरी के बारे में है."
दीपिका 2013 से चीजों को बदलने में सबसे आगे रहीं. वे कहती हैं, "अपनी यात्रा और काम के जरिए, और आज मैं जो असर डाल पाती हूं उसके जरिए, मैं समझना चाहती हूं कि मैं नैरेटिव बदलना कैसे शुरू कर सकती हूं." आज भारतीय सिनेमा की सबसे ज्यादा मेहनताना लेने वाली अभिनेत्री विज्ञापनों के लिए भारी-भरकम फीस वसूल करती हैं और अकेले भारत में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार करने वाली पहली हिंदी फिल्मों (पठान, जवान) में आई हैं.
बेहतर भूमिकाओं और सौदों के लिए अब उन्हें मोलभाव नहीं करना पड़ता; वे अब खुद उनकी राह चले आते हैं. वे कहती हैं, "ज्यों ही वे देखते हैं कि आप कामयाब हैं, वे आपको संजीदगी से लेने लगते हैं." फिर भी वे मानती हैं कि जब उन्होंने यथास्थिति को चुनौती देना शुरू किया, तो उसका विरोध हुआ. "लोग आपको प्रोटेक्ट करने की कोशिश करते हैं. वे बदलाव से भयभीत हैं और टकराव से बचना चाहते हैं. यह 'उसे क्यों हाथ लगाना जो ठीकठाक चल रहा है’ वाला रवैया है. मगर क्या कोई ठहरकर सोचता है कि हम इसे बेहतर कैसे बना सकते हैं?"
इंडस्ट्री जरूर बेहतर बन सकती है. सबसे पहले तो उसके भीतर यह चाहत पैदा हो सकती है कि हमारा अपना वंडर वुमन या बार्बी मोमेंट हो, यानी ऐसी महिला-प्रधान फिल्म जो बॉक्स ऑफिस पर हंगामा मचा दे. वे कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि वह दिन दूर है. अब बात यह नहीं कि 'क्या ऐसा होगा?’ बात इतनी-सी है कि 'यह कब होगा’". भंसाली की पीरियड फिल्म पद्मावत से दीपिका यह पहले ही कर चुकी हैं, जिसके पोस्टर पर उनका चेहरा था.
हमारे सामने प्रतिभा और कामयाबी वाली दीपिका तो बखूबी स्थापित हैं ही, पर 'आइ ऐम सेक्सी ऐंड आइ नो इट’ वाली दीपिका भी हैं जो कॉकटेल में या पठान के 'बेशरम रंग’ गाने में सेक्सुअलिटी, आत्मविश्वास और ताकत नुमाया करती हैं. यह मारक मेल कभी-कभार हाशिए के उग्र धड़ों को उकसा देता है. वे कहती हैं, "यह तालीम, अनुभव, नजरिए के अभाव और पीढ़ियों से चले आ रहे मानसिक ढर्रे का नतीजा है." दीपिका इस शोर-शराबे को विराम लगा देती हैं. वे कहती हैं, "जितना और जो कुछ आप मुझे देखते हैं, वही मैं हूं. मैं अपनी यात्रा और अनुभवों को स्वीकार करने से नहीं हिचकती."
वह यात्रा भारत के सबसे यशस्वी एथलीटों में से एक प्रकाश पादुकोण की बेटी होने और सिनेमा से दोस्ती होने से पहले खुद एथलीट होने से शुरू हुई. वे अपनी लड़ाइयां खुद लड़ने के मायने जानती हैं. दीपिका कहती हैं, "यह सब मैं अपनी मर्जी से, अपने दम पर करना चाहती थी. जब आपको इज्जत मांगनी नहीं पड़ती बल्कि आप इसे हासिल करते हैं, तो यह बेहद ताकत देने और संतुष्ट करने वाला होता है."