
पार्ले एग्रो के संस्थापक प्रकाश चौहान की सबसे बड़ी बेटी शौना चौहान ने साल 2006 में सीईओ का पद संभाला और उन्होंने घरेलू फूड प्रोसेसिंग कंपनी को 8,000 करोड़ रुपए की विशाल कंपनी में बदल दिया, जिसमें फ्रूटी, एप्पी और बेली जैसे फूड ब्रांड पेप्सिको जैसी कंपनियों के ब्रांडों से होड़ कर रहे हैं.
कंपनी अब 96 फीसद सामग्री घरेलू स्तर पर हासिल करती है, जिसे चौहान पार्ले एग्रो की सबसे बड़ी उपलब्धि बताती हैं. इससे अपने लक्षित कोशिशों से स्थानीय कारोबार और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में मदद करने की हमारी प्रतिबद्धता जाहिर होती है.
फिलहाल उनका ज्यादातर वक्त सस्टेनेबिलिटी और ग्रोथ में संतुलन बैठाने में लगता है, जिसे वे 'सबसे कठिन चुनौती' कहती हैं. इसकी शुरुआत प्लास्टिक स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगने से हुई और तब से यह हर विकास रणनीति में हरित पहल को शामिल करने के मिशन के रूप में विकसित हुआ है.
सस्टेनेबल सामग्री प्राप्त करने के लिए सप्लाई चेन फिर से तैयार की गई है, पर्यावरण अनुकूल प्रक्रियाओं में बदलाव के अलावा, बर्बादी कम करने, कार्बन उत्सर्जन को घटाने और पानी के फिर से उपयोग के लिए उत्पादन प्रक्रियाओं को दुरुस्त किया गया है. पार्ले के पास अब रिसाइक्लिंग के वास्ते प्लास्टिक (पीईटी अपशिष्ट सहित) एकत्र करने के लिए एग्रीगेटर्स का एक नेटवर्क भी है.
तीन बहनों में सबसे छोटी नादिया चौहान कहती हैं, अगला बड़ा लक्ष्य 2030 तक पार्ले एग्रो को 20,000 करोड़ रु. की कंपनी बनाना है. वे बिक्री और मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन, ऑटोमेशन और आरऐंडडी की प्रभारी हैं. वे कहती हैं, "मेरा ध्यान हर मामले में पैमाना ऊपर उठाने पर है, चाहे डिस्ट्रीब्यूशन हो, मार्केटिंग हो या हुनर हो. हर नजरिए से, हम संगठन के भीतर क्षमता में भारी वृद्धि देख रहे हैं."
नादिया 2003 में जब कंपनी में शामिल हुईं, तब वे सिर्फ 17 साल की थीं. तब से, अळग अलग प्रोडक्ट के प्रति जुनून के चलते उन्होंने न केवल नए प्रोडक्ट बल्कि नई कटेगरी भी लॉन्च की हैं. शानदार फलों के स्वाद वाला पेय एप्पी फिज और डेयरी ब्रांड स्मूध ऐसे दो उदाहरण हैं. 2010 में बिक्री और डिस्ट्रीब्यूशन में बदलाव प्रमुख उपलब्धि थी. नादिया कहती हैं, "इसने हमें अपने आउटलेट बेस को 3,00,000 से बढ़ाकर 20,00,000 तक पहुंचाने में सक्षम बनाया."
दोनों बहनें पिता को अपना गुरु मानती हैं और उनकी कारोबारी सोच का अनुकरण करने की कोशिश करती हैं. भविष्य की योजनाओं के संबंध में, शौना आइओटी उपकरणों और डेटा एनालिटिक्स की शक्ति का उपयोग करने के लिए अपनी प्रोडक्शन यूनिट को 'स्मार्ट फैक्ट्रियों' में बदलने पर विचार कर रही हैं. नादिया इस बात से उत्साहित हैं कि जल्द ही नई उत्पाद श्रेणियों में विस्तार होगा.
- सोनल क्षेत्रपाल
अरुंधति भट्टाचार्य

अरुंधति भट्टाचार्य ने जब कोलकाता के लेडी ब्रेबॉर्न कॉलेज से ग्रेजुएशन किया, तब उन्होंने इस बारे में कुछ सोचा भी नहीं था कि उन्हें किस क्षेत्र में करियर बनाना है. बायोकेमिस्ट्री एक विकल्प था, पर उन्हें केमिस्ट्री से नफरत थी. मेडिसिन उनकी दूसरी पसंद थी. उन्होंने ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम पास किया और कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज में सीट सुरक्षित कर ली.
दिक्कत यह थी कि कॉलेज में हॉस्टल नहीं था और कोर्स पूरा करने में आठ साल लगने थे, और उनके पिता चार-पांच साल में रिटायर हो जाते. ऐसे में, अरुंधति ने अंग्रेजी साहित्य में एमए करने और पत्रकार बनने का फैसला लिया. पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. जादवपुर यूनिवर्सिटी से एमए करते हुए ही उन्होंने बैंक प्रोबेशनरी की परीक्षा दी और उसमें पास हो गईं. यहीं से भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के साथ उनके 40 साल लंबे करियर की शुरुआत हुई. यहां काम करते हुए वे अक्तूबर 2017 में इसकी पहली महिला अध्यक्ष के रूप में रिटायर हुईं.
शुरुआती दिन कठिन थे, लगातार कई घंटे काम करना और बार-बार ट्रांसफर थका देने वाला अनुभव था. कोलकाता में समय पर एसबीआई दफ्तर पहुंचने के लिए वे अपने खड़गपुर स्थित घर (उनके पति प्रीतिमॉय वहां आईआईटी में काम करते थे) से सुबह 3 बजे निकलती थीं. खचाखच भरी ट्रेनों में सफर के साथ उनके दिन की शुरुआत होती. वे बताती हैं, "यह उन चीजों में से एक थी जिसने मुझे महीने में कम से कम दो बार पांच दिन कार्य वाले हफ्ते (बैंकिंग में) की कड़ी पैरवी करने के लिए प्रेरित किया."
अरुंधति के अनुसार, वैसे तो यह पुरुष-प्रधान क्षेत्र है, पर शायद ही कभी एसबीआई में किसी ने महिला को रिपोर्ट करने का विरोध किया हो. बैंक में बैड लोन्स का बोझ घटाने की कोशिश करने के अलावा मॉडर्न तकनीक के जरिये एसबीआई को और अधिक चुस्त बनाने के अभियान की बागडोर उन्हीं के हाथों में थी.
तकनीक की बदौलत ही बैंक अपने 50 करोड़ ग्राहक आधार को संभाल पाया. पांच सहायक कंपनियों के विलय के बाद एसबीआई के ग्राहकों की संख्या यहां तक पहुंची थी. उनके अनुसार, "बैंक नेटवर्क 128 केबीपीएस बैंडविड्थ पर चलता था, इसलिए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि स्क्रीन खुलने में कितना वक्त लगता होगा."
टेक्नोलॉजी को लेकर खासी उत्साही होने के बावजूद अरुंधति ने कभी कल्पना नहीं की थी कि एसबीआई से रिटायर होने के बाद अमेरिकी कंपनी सेल्सफोर्स इंक के इंडिया ऑपरेशन में वे पूर्णकालिक तकनीकी नौकरी करेंगी. वे कहती हैं, ठमेरे यहां आने से पहले सीईओ जैसा कोई पद नहीं था. मुझे अपने लिए भूमिका बनानी थी.ठ
2020 में यह जिम्मेदारी संभालने के बाद से अरुंधति ने पहले के मुकाबले भारतीय टीम को पांच गुना बढ़ाकर 10,000 तक पहुंचा दिया है. पिछले वित्त वर्ष में इंडिया ऑपरेशन का राजस्व करीब 6,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया. नई भूमिका का मतलब है कि देर रात तक जागकर काम करना. बहरहाल, अरुंधति के लिए यह करीब पांच दशक पहले एसबीआई में पहली बार नौकरी करने जितना ही रोमांचक है.