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विश्व फलक पर भारत

निर्यात अपनी रिकॉर्ड बुलंदी पर हैं. नए व्यापार करारों से इन्हें और उछाल मिल सकता है. लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की फिजा बड़ी चिंता का सबब.

पीयूष गोयल  वाणिज्य और उद्योग मंत्री
पीयूष गोयल वाणिज्य और उद्योग मंत्री
अपडेटेड 9 जून , 2023

4 साल मोदी सरकार 2.0

वाणिज्य

पीयूष गोयल

वाणिज्य और उद्योग मंत्री

बीते चार वर्षों में देश के व्यापार और वाणिज्य के लिए माहौल जिस कदर प्रतिकूल रहा, वैसा पहले शायद ही कभी देखा गया था. व्यापार को महामारी से बड़ा झटका लगा. उसके बाद फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले से एक बार फिर भू-राजनीतिक हालात अस्थिर हो गए जबकि व्यापार की मजबूती के लिए स्थिरता पूर्व शर्त की तरह है. हालांकि निर्यात की प्रक्रिया को सरल बनाने समेत केंद्र की कई नीतियों से भारत को न सिर्फ मुश्किल हालात में टिके रहने में मदद मिली, बल्कि समग्र निर्यात में खासी बढ़ोतरी हुई.

देश का कुल निर्यात 14 प्रतिशत बढ़ा और 2022-23 में तकरीबन 64 लाख करोड़ रु. (770 अरब डॉलर) के रिकॉर्ड पर पहुंच गया. इसमें सेवा क्षेत्र के निर्यात में हुई बढ़ोतरी का बड़ा योगदान है. इस बीच, व्यापारिक निर्यात 6 फीसद बढ़कर 37 लाख करोड़ रु. (447 अरब डॉलर) हो गया जो नई बुलंदी है. लेकिन पिछले वित्त वर्ष की शुरुआत में जैसी उम्मीद थी, उससे यह कम है. 2022-23 में इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्यात में भी 50 फीसद की बढ़ोतरी हुई. देश दवाओं, कारों, मशीन के पुर्जों, कपड़ों और खाद्य उत्पादों के मामले में रूस का प्रमुख निर्यातक बन रहा है.

रूस भी भारत को कच्चे तेल के निर्यात में पश्चिम एशियाई देशों से आगे हो गया है. रूस से देश में कच्चे तेल का आयात फरवरी 2023 में 27 फीसद हो गया, जो अप्रैल 2022 में सिर्फ 6 फीसद के आसपास था. अनुमान है कि भारत-रूस व्यापार 2022-23 में रिकॉर्ड 3.3 लाख करोड़ रु. (39.8 अरब डॉलर) को छू सकता है.

निर्यात में बढ़ोतरी ही कोविड महामारी के बाद देश की अर्थव्यवस्था की बहाली में बड़ी मददगार साबित हुई है. वाणिज्यिक निर्यात 2020-21 में 24 लाख करोड़ रु. (291.8 अरब डॉलर) तक गिर गया था, जो 2021-22 में बढ़कर 34.8 लाख करोड़ रु. (422 अरब डॉलर) का हो गया.

निर्यात के मोर्चे पर अच्छे प्रदर्शन से केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल भी खासे उत्साहित थे. उन्होंने 31 मार्च को देश की नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी), 2023 में 2030 तक निर्यात में 165 लाख करोड़ रु. (20 खरब डॉलर) की महत्वाकांक्षी योजना की रूपरेखा का ऐलान किया. नई एफटीपी के तहत इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रोत्साहन-आधारित व्यवस्था के बदले छूट और पात्रता-आधारित व्यवस्था अपनाने का प्रस्ताव है.

इसके चार पैमाने हैं. एक, छूट के लिए प्रोत्साहन-यानी निर्यात वाले उत्पादों पर करों और शुल्कों में छूट दी जाए या निर्यातकों को इसे वापस लौटाया जाए. दूसरा, सहयोग के जरिए निर्यात को बढ़ावा; व्यापार करने की सहूलियत यानी कारोबारी लागत में कमी और ई-पहल और निर्यात हब के रूप में जिलों का विकास; और आखिरी एससीओएमईटी (विशेष रसायन, ऑर्गेनिज्म, सामान, उपकरण और प्रौद्योगिकी) से संबंधित नीतियों में सुधार.

गोयल का कहना था कि सरकार आने वाले महीनों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सेक्टर्स और देशों में बड़े पैमाने पर व्यापार में बढ़ोतरी की दिशा में काम करेगी. देश पहले ही अनेक मुक्त व्यापार समझौते करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. ऑस्ट्रेलिया के साथ आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते और संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के बाद यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा और इज्राइल के साथ भारत की बातचीत चल रही है.

लेकिन निर्यात में रफ्तार की इस तेजी को बनाए रखना मुश्किल होगा. मसलन, 2022 में वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई थी, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिला था. अब उसमें गिरावट का अंदेशा है. माल-असबाब का निर्यात अप्रैल 2022 में 3.3 लाख करोड़ रु. (39.7 अरब डॉलर) के मुकाबले इस साल अप्रैल में साल-दर-साल के आधार पर 12.7 फीसद घटकर 2.9 लाख करोड़ रु. (34.7 अरब डॉलर) रह गया. इस साल जनवरी में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा कि वैश्विक विकास दर 2022 में 3.4 फीसद से घटकर 2023 में 2.9 फीसद हो जाएगी और 2024 में 3.1 फीसद पर आ जाएगी. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में जारी मौद्रिक नीति में सख्ती के असर भी आगे दिखाई देंगे. अंदेशा है कि इससे निर्यात पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा. 

क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, देश को कुछ हद तक मुश्किल पेश आ सकती है क्योंकि कपड़ा, फुटवियर और चमड़ा जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों के निर्यात में देश अमेरिका और यूरोप पर निर्भर है. इसके अलावा, रुपए के कमजोर होने से भारत को मिलने वाला प्रतिस्पर्धात्मक लाभ बरकरार नहीं रह सकता क्योंकि अधिकांश मुद्राएं वैसे भी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरे कदमों के अलावा सरकार को मशीनरी, प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्यात बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, जो वैश्विक व्यापार का 35 फीसद है पर उसमें देश की हिस्सेदारी बमुश्किल एक फीसद है. 

हाल के दौर में जरूरी यह है कि ढुलाई का खर्च कम किया जाए और निर्यात में नकदी का प्रवाह बढ़ाया जाए क्योंकि खरीदार भुगतान में देरी करते हैं जिससे इन्वेंट्री में लगातार बढ़ोतरी होती जाती है. कुछ जानकारों के मुताबिक, देश पहले ही कृषि निर्यात में अच्छा कर रहा है और सरकार को इस क्षेत्र में अपना ध्यान बनाए रखना चाहिए. अगर 2030 तक 165 लाख करोड़ रु. (20 खरब डॉलर) के घोषित निर्यात लक्ष्य तक पहुंचना है तो देश को अपनी निर्यात शक्ति का विस्तार करने पर काम करना जारी रखना होगा.

‘‘हम 2 खरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमें यह पक्का करना होगा कि वस्तुओं का निर्यात सेवा के निर्यात से कम न होने पाए.’’
पीयूष गोयल, वाणिज्य मंत्री 31 मार्च 2023 को एफटीपी लांचिंग के दौरान.

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