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विशेषांकः जिसे चुन लिया कविता ने

मां से मिले उसी हौसले और अपने संकल्प के बूते वे अपनी रचनात्मक पूंजी को लेकर आधी दुनिया घूम चुकी हैं. पिछले साल वे हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका और फ्रांस होकर आईं.

जसिंता केरकेट्टा
जसिंता केरकेट्टा
अपडेटेड 2 जनवरी , 2022

नई नस्ल 100 नुमाइंदे/ साहित्य

जसिंता केरकेट्टा, 38 वर्ष

कवि-एक्टिविस्ट, गुमला, झारखंड

झारखंड में ओडिशा से लगे एक सीमांत गांव में उरांव जनजाति में जन्मी जसिंता केरकेट्टा ने कविता-कहानी के बारे में बहुत सोचा नहीं था. कविता को उन्होंने नहीं बल्कि कविताओं ने उन्हें चुना. स्कूल के दिनों में उनकी लिखी कविताओं-कहानियों पर जब चिट्ठियां आने लगीं तो पुलिसिया तेवर वाले पिता ने मां को फरमान सुना दिया, ''इसका लिखना बंद करवाओ.

यही लिखना इसे किसी काम के लायक नहीं छोड़ेगा.’’ पर मां ही तो थीं जिन्होंने जंगल में घूमते, पेड़ों पर चढ़ते, नदी में तैरते, खेतों में काम करते और यह सब जसिंता को सिखाते हुए उनकी कल्पनाओं को पंख दिए. मां ने ही कहा था, ''तुम्हारा लिखा बहुत छूता है, देखो, मेरी आंखें भीग गईं. तुम लिखना कभी मत छोड़ना’’

मां से मिले उसी हौसले और अपने संकल्प के बूते वे अपनी रचनात्मक पूंजी को लेकर आधी दुनिया घूम चुकी हैं. पिछले साल वे हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका और फ्रांस होकर आईं. यूक्रेन और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में उनकी कविताओं पर कुछ छात्र काम कर रहे हैं.

रूस के एक विश्वविद्यालय ने उनकी कविताओं पर चर्चा आयोजित की. इससे स्पष्ट है कि उनकी कविताओं में समाई संवेदना एक बड़े विश्व को छू रही है. अंगोर और जड़ों की जमीन के बाद इसी जनवरी में उनका तीसरा कविता संग्रह ईश्वर और बाजार आने वाला है. कविताओं से अपने केंद्र में स्थिर रहने में मदद पाने वालीं जसिंता उम्मीद करती हैं कि वे ''दूसरों को भी पेड़ और पानी की तरह एक साथ सहज और मजबूत होने में मदद कर सकें.’’

कुछ यूं मां होना दो छोटी बहनों को कच्ची उम्र से उन्होंने मां की तरह पाला. गांव से वे एक और बच्ची (चैनपुर, गुमला) लाई हैं, वह तीनों बहनों को मां कहती है

''मेरी कविताओं ने खुद के लिए खुद से रास्ता तैयार किया है. दुनिया में वे अपनी ताकत से पहुंच रही हैं. मैं उन्हें देखकर कभी-कभी चमत्कृत होती हूं, खुश होती हूं...उनसे बहुत कुछ सीखती हूं.’’

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