scorecardresearch

विशेषांकः आसमान छूती आकांक्षा

इसरो में छह साल काम करके उन्होंने रॉकेट विज्ञान के बारे में इतना सीख लिया कि निजी स्तर पर इसे बना सकें, जैसे विदेशों में स्पेस एक्स और रॉकेट लैब कंपनियां बनाती हैं.

पवन कुमार
पवन कुमार
अपडेटेड 6 जनवरी , 2022

नई नस्ल100 नुमाइंदे/ नवोन्मेषक

पवन कुमार चांदना, 31 वर्ष
सह-संस्थापक और सीईओ, स्काईरूट एयरोस्पेस, हैदराबाद

अपने जुनूनों में मेल बिठाना और उनका पीछा करना मुश्किल काम है. मगर आइआइटियन पवन कुमार चांदना के लिए नहीं. उनका एक जुनून आंत्रेप्रेन्योर के तौर पर अपनी आजादी की रक्षा करना और दूसरा रॉकेट बनाने की महत्वाकांक्षा पूरी करना है. दोनों को जोडऩे में उन्हें आइआइटी खड़गपुर से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री से मदद से मिली. 

चांदना ने आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने या ऊंची तनख्वाह वाले वित्त या सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में जाने के बजाय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का विकल्प चुना. वे कहते हैं, ''ज्यादा सोच-विचार किए बगैर मैं इंटरव्यू में गया और किस्मत से चुन लिया गया.

मैं खुशकिस्मत था कि दूसरों के मुकाबले कमतर अकादमिक प्रदर्शन के बावजूद मुझे यह मिल गया—अन्य तीन चुने गए उम्मीदवार बैच के टॉपर थे.’’ विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र तिरुवनंतपुरम में प्लेसमेंट मिलना बोनस था. इसरो में छह साल काम करके उन्होंने रॉकेट विज्ञान के बारे में इतना सीख लिया कि निजी स्तर पर इसे बना सकें, जैसे विदेशों में स्पेस एक्स और रॉकेट लैब कंपनियां बनाती हैं.

जून 2018 में इसरो छोड़ने के बाद चांदना ने आइआइटी के ही एक अन्य ग्रेजुएट 32 साल के नागा भारत ढाका के साथ स्काईरूट लॉन्च की. दोनों ने मिलकर दुनिया के सबसे सस्ते अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों में से एक को बनाना शुरू किया. कुमार कहते हैं, ''कदम दर कदम हम एक के बाद एक मील का पत्थर पार करते गए.’’

स्कायरूट ने 90 करोड़ रुपए से ज्यादा की पूंजी उगाही और इसरो की टेस्ट और लॉन्च सुविधाओं के इस्तेमाल के लिए करार किए. उनके स्टार्टअप ने देश में पहली तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) और तरल ऑक्सीजन (एलओएक्स) सरीखे नए प्रोपेलैंट के साथ क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित की. अपनी शानदार कामयाबी के लिए स्काईरूट बीते साढ़े तीन साल में जोड़ी गई 100 सदस्यों की टीम पर निर्भर है.

''भविष्य छोटे-छोटे रॉकेटों से छोड़े गए छोटे अवलोकन और संचार उपग्रहों का है—370 अरब डॉलर के इस कारोबार में भारत का हिस्सा महज दो फीसद है’’

निजी प्रक्षेपण स्काईरूट 2022 खत्म होने से पहले अपने 20 मीटर ऊंचे प्रक्षेपण वाहन विक्रम-1 के जरिए उपग्रह लॉन्च करेगा.

 

Advertisement
Advertisement