पथप्रवर्तक / ऐश्वर्य दमदार खानसामा-राजीव सामंत, 54 वर्ष
ए.डी. सिंह
राजीव के अमेरिका से लौटने के तुरंत बाद मेरी उनसे दोस्ती हुई थी. जब उन्होंने मुझसे कहा था कि वे वाइन कारोबार में उतरना चाहते हैं, तब मेरे मन में कई संदेह उपजे थे: क्या लोग भारत में बनी वाइन पिएंगे? क्या यहां कोई अच्छी वाइन भी बना सकता है?
उस समय लोग बमुश्किल वाइन पीते थे और जो वाइन वे पीते थे, वह अक्सर खराब गुणवत्ता की होती थी.
मुझे याद है कि राजीव उत्पादन को लेकर कितने प्रोफेशनल थे. उन्होंने एक अच्छे वाइनमेकर को साथ लाकर उत्पादन की शुरुआत की—लेकिन जो बात मुझे और भी अधिक प्रभावित करती थी, वह यह थी कि उन्होंने जिस तरह वाइन की मार्केटिंग की वह मजेदार और अंतरराष्ट्रीय स्तर की भी थी.
उनके एक्सपोजर और व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत जल्दी युवा लोगों से जुड़ने में मदद की. अचानक, वाइन प्रचलन में आई और पीना 'कूल’ माना जाने लगा. यह देखकर कि लोगों की दिलचस्पी कितनी बढ़ गई है, हमने ओलिव में वाइन क्लब भी शुरू किया. जीवनशैली की उस क्रांति को आगे बढ़ाने और चलाने का श्रेय मैं राजीव को देता हूं.
चूंकि वाइन अंतत: फलों का रस है, इसलिए इसे पीना दुनिया भर में सामाजिक रूप से स्वीकार्य है. दुनिया के कुछ हिस्सों में लोग इसे पानी की तरह पीते हैं. राजीव ने वास्तव में भारत में वाइन पीने को और अधिक हानिरहित बनाने में मदद की.
महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने लोगों के मन को बदलने के क्रम में कभी गुणवत्ता की को लेकर अपनी समझ और दृष्टि नहीं बदलने दी. कोई आश्चर्य नहीं कि सुला अब विदेशों में भी बेची जाती है.
ए.डी. सिंह ऑलिव ग्रुप ऑफ रेस्तरां के संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं.