रविशंकर प्रसाद
जयप्रकाश नारायण जेपी के नाम से मशहूर हैं और उन्हें जेपी आंदोलन से उपजे हमारे जैसे लोग लोकनायक कहते हैं. जेपी सत्ता के लिए नहीं बल्कि शक्तिहीनों के लिए राजनीति करते थे. वे सत्ता से दूरी के प्रतीक बने. आजाद भारत में एक उज्ज्वल सियासी भविष्य उनका इंतजार कर रहा था. पर वे एक पक्के समाजवादी थे और यह पक्का करना चाहते थे कि भारत उसी मॉडल पर विकसित हो.
यह भाव उन्हें जवाहरलाल नेहरू के करीब ले आया. ऐसा माना जाता है कि नेहरू चाहते थे कि जेपी उनकी सरकार में अहम भूमिका निभाएं, संभवत: सरदार पटेल के निधन के बाद उप-प्रधानमंत्री के रूप में भी. पर जेपी ने गांवों में जाकर गरीबों के बीच काम करने का फैसला लिया.
1969 के राष्ट्रपति चुनाव में, जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के खिलाफ वी.वी. गिरि को उतारा, तब दोनों पक्षों में सर्वसम्मति के उम्मीदवार के रूप में जेपी के नाम पर सहमति बनी. लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया.
उसके बाद जेपी आंदोलन हुआ जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार-कुशासन के खिलाफ छात्रों का नेतृत्व किया. लोकतंत्र में उनका शानदार योगदान यह रहा कि कोई नेता आपातकाल जैसा दुस्साहस अब कभी नहीं करेगा.
जेपी ने लोगों को एहसास दिलाया कि वे मताधिकार के बल पर किसी भी नेता को हरा सकते हैं. 1977 में जब जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हरा दिया तो जेपी आसानी से प्रधानमंत्री बन सकते थे. पर उन्होंने इसमें कोई रूचि नहीं ली क्योंकि वे अपने सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध थे. प्रतिबद्धता उनके लिए सब कुछ थी.
पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने युवा दिनों में जेपी के साथ काम किया है