75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / विज्ञान
विक्रम साराभाई (1919-1971)
के. कस्तूरीरंगन
मैं 1963 में भौतिकी में परास्तानक करने के बाद जब खगोल भौतिकी और खगोल विज्ञान में शोध के अवसर खोज रहा था, तब मुझे अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) में डॉ. विक्रम साराभाई से मिलने के लिए आमंत्रित किया गया. साराभाई स्थापित पीआरएल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का उद्गम स्थल बन गया.
मैं उनके साहस, दृढ़ विश्वास, दूरदृष्टि और प्रेरक शक्तियों से प्रभावित था. इन सबका मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा और मैं पीआरएल में पीएचडी करने लगा. इसके बाद मैं अंतरिक्ष कार्यक्रम में शामिल हुआ जिसकी साराभाई ने शानदार कल्पना की थी. उनकी पहल से भारत को अपना पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान मिला और उपग्रह संचार (सैटेलाइट कम्युनिकेशन) के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित हुआ.
एक बार एक उपकरण खराब हो गया जिसे हम विद्युत चुंबकीय विकिरण मापने के लिए उड़ाने वाले थे. साराभाई ने हमें इसे ठीक करने को कहा. ठीक कर देने पर उन्होंने हमें बधाई देते हुए कहा, ''मुझे खुशी है कि आपने समस्या का समाधान किया, पर अधिक महत्वपूर्ण वह अंतर्दृष्टि है जो आपने ऐसा करने के दौरान प्राप्त की.
जीवन में विफलता और सफलता के बीच बहुत बारीक फर्क होता है, और आप हमेशा विफलताओं से ज्यादा सीखेंगे.’’ फिर उन्होंने मजाक में कहा, ‘‘पार्टी कब है?’’ हम सब ठठाकर हंस पड़े.
एक प्रतिष्ठित और धनी परिवार में जन्मे और कैम्ब्रिज से कॉस्मिक रेज में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त, साराभाई बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान की स्थापना की.
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कुछ मौलिक योगदान दिया. वे उत्कृष्ट दूरदर्शी थे जिन्होंने समकालीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नवीन संस्थानों का निर्माण किया.
डॉ. के. कस्तूरीरंगन इसरो के पूर्व अध्यक्ष हैं.