75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / विज्ञान
सालिम अली (1896-1987)
माधव गाडगिल
मैं उसी साल जन्मा था जिस साल सालिम अली की शानदार सचित्र पुस्तक द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स छपी थी. मेरे पिता चिड़ियों को ढूंढने-देखने के बड़े शौकीन थे और मैं लिखना-पढ़ना सीखने के पहले ही चित्रों से चिड़ियों को पहचानने लगा था.
मेरी उम्र 14 साल की थी जब मैं बिना कलगी की ग्रीन बी-ईटर देख कर उलझन में पड़ गया था. मैंने सालिम अली को चिट्ठी लिखी और उनका जवाब पाकर रोमांच से भर उठा था. मैं उनसे मिला और उनके ज्ञान तथा उत्साह से मंत्रमुग्ध रह गया. तभी मैंने तय किया कि मैं भी पक्षीवेत्ता बनूंगा. वे मुझसे 46 साल बड़े थे, फिर भी मेरे साथ मित्रवत् व्यवहार करते हुए मेरा समर्थन करते थे.
अगले 25 वर्षों में कितने ही दौरों पर उनके साथ गया. उनके साथ पक्षियों को देखना एक सुखद अनुभव था और मुझे उनके साथ पक्षियों के सामुदायिक बसेरों पर शोधपत्र लिखने का सौभाग्य भी मिला. वे तीक्ष्णबुद्धिमत्ता वाले शानदार प्रदर्शक थे और यह बात उनकी पक्षी पुस्तकों की शृंखला में सामने आती है.
इन पुस्तकों ने शहरी मध्यमवर्गीय लोगों को पक्षी देखने और प्रकृति संरक्षण की ओर आकर्षित किया. अफसोस की बात है कि सालिम अली को पूर्वाग्रह था कि भारत के आम लोग प्रकृति का विनाश करने में लगे हैं.
इसी कारण भरतपुर की जलीय भूमि में भैंसों के घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसके बाद से जल-पक्षी आवास के रूप में क्षेत्र की स्थिति बिगड़ती चली गई. उनके पूर्वाग्रह ने जन-विरोधी संरक्षण आंदोलन को भी बढ़ावा दिया. ऐसे मुद्दों पर हमारे मतभेद जो भी हों, मैं उन्हें हमेशा असाधारण प्रकृतिवादी मानूंगा.ठ्ठ
माधव गाडगिल प्रख्यात पारिस्थितिकी विज्ञानी तथा भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू में सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के संस्थापक हैं.