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विशेषांकः दुनिया के प्रकाशस्तंभ

प्रकाश के प्रकीर्णन की उनकी नई खोज 'रमण प्रभाव’ ने देश में वैज्ञानिकों की एक पूरी बिरादरी को प्रेरित किया.

सी.वी. रमण 
सी.वी. रमण 
अपडेटेड 29 अगस्त , 2021

75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / विज्ञान

दुनिया के प्रकाशस्तंभ

सी.वी. रमण 
(1888–1970)

संदीप त्रिवेदी

भारत के महानतम वैज्ञानिकों में से एक चंद्रशेखर वेंकट रमण, विद्यार्थी के.एस. कृष्णन के साथ, अपनी पथप्रवर्तक खोज 'रमण प्रभाव’ के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं. इसके लिए 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला.

रेले प्रकीर्णन नामक प्रक्रिया से जब प्रकाश आम तौर पर फैलता या प्रकीर्ण होता है, तब वह दिशा बदलता है पर ऊर्जा में बदलाव नहीं होता.

मसलन, यह तब होता है जब प्रकाश धूल से वायुमंडल में फैलता है और उसके नतीजतन आसमान नीला हो जाता है. रमण और कृष्णन ने प्रकीर्णन का एक नया तरीका ढूंढा, जिसमें प्रकाश दिशा और ऊर्जा दोनों बदलता है.

ऊर्जा बदलने का मतलब यह हुआ कि प्रकाश अपनी वेवलेंग्थ या तंरगदैर्ध्य भी बदलता है. रमण प्रभाव विज्ञान में बेहद अहम साबित हुआ. यह अनेक किस्म के अणुओं को पहचानने और उनकी खासियतें बताने के लिए अहम तरीकों में से एक है.

रमण की महान खोजों और हमारे देश और इसकी संस्कृति में उन्होंने जो आत्मविश्वास पैदा किया, वह स्वतंत्र भारत के वैज्ञानिकों के लिए जबरदस्त प्रेरणा बना. जब भारत के योगदान को जानबूझकर कम किया जा रहा था, रमण ने दिखाया कि भारतीय संगीत के वाद्ययंत्र दुनिया में वैज्ञानिक रूप से सबसे उन्नत वाद्ययंत्रों में हैं. मसलन, तबला सरीखे भारतीय तालवाद्यों का निश्चित स्वर है, जो उनकी कंपायमान सतह के घटते-बढ़ते घनत्व के कारण है.

उन्होंने अपनी उपस्थिति और योगदान से संस्थानों को अहम तरीकों से गढ़ा. इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस में काम करने के बाद वे 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में पालित प्रोफेसर नियुक्त किए गए.

1933 में वे भारतीय विज्ञान संस्थान में आए, जहां आगे चलकर इसके पहले भारतीय डायरेक्टर बने और 1948 में रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो देश की अग्रणी वैज्ञानिक अनुसंधान प्रयोगशाला बनी हुई है.

संदीप त्रिवेदी सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री और मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के पूर्व डायरेक्टर हैं.

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