सुनील गावस्कर
कपिल देव निखंज भारतीय क्रिकेट में ताजा हवा के ऐसे झोंके की तरह आए जिसकी खुशबू आज भी कायम है. क्रिकेट को वे जिस आनंद के साथ खेलते थे कि हर कोई मुरीद हो जाता था. सैकड़ों हजारों युवा, नवोदित क्रिकेटर उनकी तरह खेलना चाहते थे.
भारत के पास पहले भी तेज गेंदबाज थे लेकिन नई गेंद को जिस तरह कपिल घुमाते थे, वैसा करने वाला कोई दूसरा नहीं था. उन्होंने भारत में बल्लेबाजी के अनुकूल पिचों सहित पूरी दुनिया के मैदानों पर विकेट हासिल किए; लगभग तीन साल और आठ शृंखलाओं में, कोई भी सलामी जोड़ी हमारे खिलाफ शतकीय साझेदारी नहीं कर पाई. न सिर्फ एक ओपनिंग गेंदबाज के रूप में उन्होंने अपना सिक्का जमाया बल्कि बल्ले से भी उन्होंने कई मैचों का रुख बदला और भारत के सिर पर जीत का सेहरा बांधा. 1983 वर्ल्ड कप में जिम्बाब्वे के खिलाफ 175 रन की उस नाबाद पारी को कौन भूल सकता है?
हालांकि वानखेड़े की पिच पर पाकिस्तान के खिलाफ अर्धशतक वाली उनकी पारी मेरी सबसे पसंदीदा पारी रही, जहां उन्होंने गेंद को जोरदार घुमाव दिया और खेल हमारे हाथ में आ गया. कपिल कहीं भी क्षेत्ररक्षण कर सकते थे. 1983 के उस अविस्मरणीय फाइनल में विव रिचडर्स को आउट करने के लिए उनके द्वारा लपके गए कैच ने मैच बदल दिया था. भारतीय क्रिकेट इतिहास में 'कैप्स' जैसा कोई दूसरा खिलाड़ी नहीं हुआ, जिसने उनकी तरह बल्ले, गेंद और क्षेत्ररक्षण तीनों से, खेल का रुख बदल दिया हो.
आज अगर भारत के पास नई गेंद के साथ जोरदार आक्रमण की टीम है जिससे पूरा क्रिकेट जगत घबराता है, तो यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि कपिल ने उन्हें राह दिखाई. सरल शब्दों में कहूं तो, वे न केवल सदी के लिए बल्कि आने वाले युगों के लिए भारत के क्रिकेटर हैं.
सुनील गावस्कर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान हैं. उन्होंने और कपिल देव ने साथ-साथ अनेक टेस्ट और एकदिवसीय मैच खेले हैं
जीती-जागती किंवदंती
सचिन तेंडुलकर, 48 वर्ष
विश्व क्रिकेट दो बहुत साफ-साफ युगों में बंटा है: सचिन से पहले का युग और सचिन के बाद का युग
सौरव गांगुली
मैं सचिन को 35 सालों से जानता हूं और मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि वे हमारे इस खेल के सर्वकालीन महानतम खिलाड़ियों में से एक हैं. जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो जो बात मुझे कौंधी वह यह कि वे बस निरंतर बल्लेबाजी करते रहना चाहते थे. जज्बा ऐसा कि आपको अपनी जद में ले ले. बिल्कुल पहली मुलाकात से हमारा जो रिश्ता शुरू हुआ, वह आज भी कायम है. कप्तान के नाते हर बात पर मैं उन्हीं के पास जाता था.
1996 में मेरे पदार्पण टेस्ट में जब मेरे बल्ले को थोड़ा ठोकने-पीटने की जरूरत थी, सचिन ने ही चाय पर उसकी मरम्मत की. अविश्सनीय प्रतिभा के वरदान के साथ-साथ खेल के प्रति सचिन की निष्ठा और समर्पण ने ही उन्हें वह क्रिकेटर बनाया जो वे अंतत: बने. उनके साथ खेलना और उनकी कप्तानी करना सुखद था.
सचिन के साथ रिश्ता बेहद निजी है. हमारे परिवार बहुत करीब हैं. 1990 के दशक के आखिरी सालों में न्यूजीलैंड में मेरी पत्नी डोना ने नन्हीं सारा की थोड़ी देखभाल की ताकि अंजली कुछ नींद ले सकें. बात जब बल्लेबाजी की हो और सचिन टीम में हों तो यह बीमे की तरह था. सौ अंतरराष्ट्रीय शतक—और कुछ कहने की जरूरत ही नहीं. या है? ठ्ठ
सौरव गांगुली पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान हैं