scorecardresearch

विशेषांकः चिरकाल के ध्रुवतारे

भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने देश की शैक्षणिक बुनियाद रखी

मौलाना अबुल कलाम आजाद  (1888–1958)
मौलाना अबुल कलाम आजाद (1888–1958)
अपडेटेड 25 अगस्त , 2021

सलमान खुर्शीद

नव-स्वतंत्र भारत की समावेशी और पंथनिरपेक्ष समाज की प्रतिबद्धता के महत्वपूर्ण सार्वजनिक प्रतीक थे मौलाना आजाद. इस तरह वे जिन्ना के दो-राष्ट्र के सिद्धांत को मुस्लिम भारत की ओर से नकार दिए जाने का साक्षात रूप थे.

मगर वह ऐतिहासिक भूमिका उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के अपने तमाम साथियों के दोटूक और ईमानदार समर्थन से निभाई, खासकर जब आम मुसलमानों में झलकने वाले अटूट संदेह और असुरक्षा बोध विरासत में मिले थे.

जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर उनके झकझोर देने वाले शब्द याद आते हैं, जिनमें नेहरू के 'नियति से महामिलन' वाले भाषण की गूंज थी. नेहरू और कांग्रेस ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री के तौर पर भावी पीढ़ियों के दिलो-दिमाग को गढ़ने के लिए युवा राष्ट्र का भरोसा उन्हें सौंपा, यह उस दूरदृष्टि की तस्दीक थी जिसके साथ नया भारत जन्मा था. उनमें से कई सपने काफी हद तक पूरे हुए, हालांकि अभी बहुत कुछ करना बाकी है.

देश के हालिया राजनैतिक रुझानों ने हो सकता है कि नेहरू-आजाद प्रगति की दिशा मिटाने और उसकी जगह बहुसंख्यकवादी विचारों को लाने की कोशिश की हो, जो इस प्रक्रिया में अल्पसंख्यकों को उलझन में डाल रहा है.

इसीलिए मौलाना आजाद हमारे वक्त और नागरिकता के ध्रुवतारे बन जाते हैं. हमारे लिए आज तूफानी समुद्र में सुरक्षित ठिकानों की तलाश करते हुए उनकी जिंदगी अहम सबक है.

सलमान खुर्शीद पूर्व विदेश मंत्री हैं

Advertisement
Advertisement