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विशेषांकः दमकता सितारा

लाहौर में जन्मे वैज्ञानिक ने ब्रह्मांड के सबसे विशाल तारों की मृत्यु का सिद्धांत दिया.

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर
अपडेटेड 29 अगस्त , 2021

75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / विज्ञान

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (1910-1995)

जयंत विष्णु नार्लीकर

बहुत लंबे वक्त से 'सफेद बौनों’ पर चल रहा काम 1930 के दशक के मध्य में भारत के एक छात्र ने पूरा कर दिखाया. सफेद बौने उन छोटे और कमजोर तारों को कहा जाता है जिनका घनत्व पानी के घनत्व से कम से कम दस लाख गुना होता है.

इन तारों के पीछे भौतिक विज्ञान क्या है? सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को इसी काम के लिए कैंब्रिज से पीएचडी मिली, जो वहां ट्रिनिटी कॉलेज में फेलो थे. इस काम को इतना अहम माना गया कि ब्रिटेन की रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने चंद्रा को प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित किया.

वे उम्मीद कर रहे थे कि वहां एकत्र ख्यातिलब्ध लोग उनकी पीठ थपथपाएंगे, पर हुआ उलटा. ट्रिनिटी के ही फेलो आर्थर स्टेनली एडिंगटन ने उनके सिद्धांत की तीखी आलोचना की. 

चंद्रा की खोज यह थी कि सफेद बौने तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 1.4 गुना से ज्यादा नहीं हो सकता, इसलिए अपना सारा परमाणु ईंधन चमकने में खर्च करने के बाद यह आंतरिक संतुलन बनाए रखना बंद कर देगा.

एडिंगटन ने पूछा कि इस सीमा से बहुत ज्यादा बड़े तारों का क्या होगा? चंद्रा का सिद्धांत यह था कि ऐसा तारा तब तक सिकुड़ता जाएगा जब तक कि उसका प्रकाश उसके गुरुत्वाकर्षण में नहीं अटक जाता. एडिंगटन ने कहा, ‘‘यह बेतुकी बात है और कुदरत ऐसा नहीं होने देगी.’’ 

एडिंगटन तपे-तपाए मशहूर भौतिकशास्त्री थे और उस वक्त उनकी ही बात मानी गई. चंद्रा मन मसोसकर रह गए. समय बलवान होता है और उसने चंद्रा को अंतत: सही साबित किया.

1.4 सौर द्रव्यमानों की द्रव्यमान सीमा को अब ‘चंद्रशेखर सीमा’ के नाम से जाना जाता है. चंद्रा को 1983 में नोबेल पुरस्कार मिला. भारी-भरकम तारों पर उन्होंने वाकई नई राह दिखाने वाला काम किया. उनके अनुयायी गणितीय पद्धतियों में उनकी बराबरी नहीं कर पाए. मगर 1970 के बाद सैद्धांतिक काम कंप्यूटरों पर होने लगा था.

ज्यादा बड़े और तेज कंप्यूटरों ने कहीं ज्यादा अच्छे नतीजे दिए. चंद्रा ने मेरे समक्ष एक बार माना था कि इस रुझान पर उन्हें अफसोस था. वे विदेश में अपना काम करते रहे, पर उनके काम ने खगोल भौतिकी में हाथ आजमा रहे भारतीयों की पीढिय़ों को प्रेरित किया.

लेखक खगोल भौतिक वैज्ञानिक और पुणे स्थित अंतर विश्वविद्यालय खगोलविज्ञान और खगोलभौतिकी केंद्र में एमेरिटस प्रोफेसर हैं

चंद्रशेखर की विश्लेषण की अपनी जो तकनीक थीं, उनके अनुयायी उस मामले में दूर-दूर तक कहीं उनका मुकाबला नहीं कर पाए.

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