75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / विज्ञान
डॉ. होमी जहांगीर भाभा (1909-1966)
डॉ. आर. चिदंबरम
आर्थर कोस्लर दो किस्म के रहनुमाओं का जिक्र करते हैं: 'योगी’ और 'कमिसार’. योगी यानी 'गहन चिंतनशील विचारक’ और कमिसार यानी 'कर्मठ व्यक्ति’. डॉ. होमी जहांगीर भाभा दोनों का अनोखा मेल थे. खुशकिस्मती से भाभा और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच प्रगाढ़ रिश्ता था—भाभा नेहरू को 'भाई’ कहते थे.
भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) में पढ़ाने से पहले भाभा कैंब्रिज में उच्च ऊर्जा के जाने-माने सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री थे. उन्होंने इलेक्ट्रॉन-पॉजिट्रॉन प्रकीर्णन, जिसे ‘भाभा प्रकीर्णन’ के नाम से जाना जाता है, और कॉस्मिक रे शॉवर्स या ब्रह्मांड किरण बौछार पर पथप्रदर्शक कार्य किया था.
भाभा ने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की मदद से 1945 में मुंबई में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान की स्थापना की और उसे परमाणु प्रतिष्ठान का शीर्षस्रोत बनाने का मंसूबा बांध रहे थे. इसका नाम बाद में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ही हो गया.
मैं जब आइआइएससी से पीएचडी कर रहा था, उस वक्त यह बात मुझे बहुत प्रेरित करती थी कि जिस समय हम साइकिल तक नहीं बना रहे, भाभा में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने की दूरदृष्टि और आत्मविश्वास (खुद अपने में और अपने देशवासियों में) है.
परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना के अलावा भाभा ने परमाणु ऊर्जा विभाग में अंतरिक्ष गतिविधि का एक अहम केंद्र बनाया. संयुक्त राष्ट्र ने 1955 में भाभा को एटमी ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर पहली जेनेवा कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष मनोनीत किया. वे वियना स्थित इंटरनेशनल एटॉमिक ऊर्जा एजेंसी के संस्थापक सदस्य भी थे.
दरअसल, ओपेरा संगीत के प्रति अपने प्रेम के चलते उन्होंने जेनेवा की बजाए वियना को आइएईए का मुख्यालय बनाने की वकालत की. भाभा ने अपने इर्द-गिर्द अगुआओं का एक समूह जोड़ा. यही वजह है कि 1966 में हवाई हादसे में 56 बरस की उम्र में इस महान वैज्ञानिक अगुआ की मृत्यु के बाद भी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम लगातार फलता-फूलता रहा. ठ्ठ
डॉ. आर. चिदंबरम परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और फिलहाल बीएआरसी में डीएई होमी भाभा चेयर प्रोफेसर हैं.