75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथ प्रवर्तक / कला, संगीत और नृत्य
केलूचरण महापात्र (1926-2004)
माधवी मुद्गल
अगर केलूचरण महापात्र नहीं होते तो ओडिशी नृत्य कला वह नहीं होती जो आज है. मेरे लिए वे इसके मुख्य वास्तुकार हैं. ओडिशा में रघुराजपुर के चित्रकारों के परिवार से आए महापात्र ने पारंपरिक नृत्य प्रथाओं 'गोटीपुआ’ और 'महरी’ के तत्वों का सार लेकर और मंदिर के मूर्तिशिल्पों, चित्रकारी का अध्ययन करके ओडिसी को बहुआयामी रूप दिया.
अगर कोई उनसे कहता कि उन्होंने जो किया वह शुद्ध और सच्चा है, तो वे कहते, ''ये तो ऐसा ही था.’’ यह ऐसा नहीं था. उन्होंने गति की शब्दावली को तराशा.
उनकी रचनात्मक मेधा ने उन्हें महापुरुष बना दिया. उन्होंने जयदेव के गीत गोविंद की उत्कृष्ट अष्टपदियां इतनी वैचारिक निरंतरता के साथ कोरियोग्राफ कीं कि उनमें दर्शक के भीतर भावनाएं जगाने की क्षमता उत्पन्न हो गई.
1979 में जब वे एक कार्यशाला के दौरान उनमें से एक हमें पढ़ा रहे थे, मैंने उन्हें इसे मंच पर दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया. नायिका को चरितार्थ करते वक्त वे जरा भी स्त्रैण नहीं दिखते थे. आज ओडिशी के सैकड़ों पुरुष नर्तक हैं, पर यह रुझान शुरू तो उन्होंने ही किया.
संयुक्ता पाणिग्रही हों, सोनल मानसिंह या कुमकुम मोहंती, उन्होंने ऐसे नर्तक-नर्तकी बनाए जो उनका विजन साकार कर सकें.
वे अपने पीछे ऐसे कई नृत्यकार छोड़ गए, जो दुनिया भर की अकादमियों में उनकी शैली को फैला रहे हैं. उन्होंने वह नींव रखी, जिस पर दूसरे अपने भंडार बना रहे हैं. ठ्ठ
माधवी मुद्गल प्रतिष्ठित ओडिसी नृत्यांगना हैं.