scorecardresearch

विशेषांकः सड़क के जरिए सरहदों के पार विराट रोमांचक सफर

मर्सिडीज-बेंज जीएलए ड्राइव करते हुए ठेठ जर्मनी के स्टटगार्ट में कंपनी के मुख्यालय से उसकी पुणे स्थित मैन्युफैक्चरिंग इकाई तक हमारे सफर की दास्तान.

बस, चलते जाना है माउंट एवरेस्ट का साफ नजारा पाना आसान नहीं है, लेकिन जिस रोज हम वहां से गुजरे उसकी भव्यता साफ नजर आ रही थी
बस, चलते जाना है माउंट एवरेस्ट का साफ नजारा पाना आसान नहीं है, लेकिन जिस रोज हम वहां से गुजरे उसकी भव्यता साफ नजर आ रही थी
अपडेटेड 29 जुलाई , 2021

ऑटो स्पेशल अतीत के झरोखे से

करीब छह साल पहले हमने स्टटगार्ट से पुणे, मर्सिडीज-बेंज के जर्मन मुख्यालय से उनके भारतीय मुख्यालय तक, ड्राइव करने का फैसला किया और निकल पड़े. वह सबसे लंबी, सबसे बड़ी और सबसे चुनौती-भरी ड्राइव थी. यह पहली बार था जब किसी भारतीय ऑटो मैगजीन ने कार ड्राइव करते हुए अंतर-महाद्वीपीय सफर किया था.

हमें जो मिला और अपने पाठकों के लिए हम जो लाए, वह जिंदगी भर का रोमांच था. कार को न हवाई जहाज से उठाकर एक से दूसरी जगह ले गए और न समंदर पार किए. हमारे आगे 18,000 किलोमीटर की बस सड़कें ही सड़कें थीं. इनमें दुनिया के कुछ सबसे मुश्किल इलाके भी थे.

कई-कई दिन हम लगातार ड्राइव करते, देर रात किसी कस्बे में पहुंचते, सुबह जल्दी जाग जाते ताकि उस कस्बे के आसपास की कुछ तस्वीरें खींच सकें और फिर अगली रात के तय पड़ाव की ओर निकल पड़ते. सरहदें पार करना चुनौतियों से भरा था और हमने छह सरहदें पार कीं.

हिमालय ने हमारा रास्ता रोका, तो रूस में साइबेरिया के जमा देने वाले तापमान ने भी. ड्राइव बगैर किसी गड़बड़ी के पूरी हुई और हम तय वक्त पर अपने दफ्तर लौट आए. हमें इस सफर के पूरा होने का यकीन नहीं हो पा रहा था.

तब से बहुत कुछ बदल गया है. मेरी टीम के कुछ लोग दूसरी भूमिकाओं में चले गए. मेरी टीम और इस ड्राइव से जुड़े दूसरे संगठनों के कुछ अन्य लोग अब अलग-अलग ओहदों पर हैं. मैं वही का वही हूं, ड्राइविंग का रोमांच जिसकी रगों में दौड़ता है.

कोरोना महामारी के दौरान मैं अपनी कुर्सी से बंधा रह गया. तब भी मैं उस ड्राइव की कहानी सुनाना चाहता था, जो अब भी मेरे दिल को खुशी से भर देती है. हम वह मुश्किल कामयाबी वाकई हासिल कर पाए! मैं उम्मीद करता हूं कि हम जल्द ही फिर सड़क पर लौट पाएंगे.

—योगेंद्र प्रताप.

Advertisement
Advertisement