साल 2012 में जब 28 वर्षीया अलका छेत्री ने शादी की और दक्षिण सिक्किम के मुनग्राम गांव में रहने आ गईं, तब उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी दूर-दराज से पानी भरकर लाना. छेत्री कहती हैं, ''मैं दार्जीलिंग से आई थी और नल के पानी की आदी थी. चार किलोमीटर दूर झरने से पानी भरकर लाना मुझे बुरी तरह थका देता था. जिस पानी से कपड़े और सब्जियां धोती थीं फिर उसी पानी से मुझे बर्तन और शौचालय साफ करने पड़ते थे. अचानक मेरी जिंदगी पानी के इंतजाम के इर्दगिर्द घूमने लगी.'' उनकी जिंदगी में बेहतरी तब आई जब धारा विकास योजना के फायदे दक्षिण सिक्किम के कोने-कोने में पहुंचने लगे. यह योजना ग्रामीण प्रबंधन और विकास विभाग (आरएमडीडी) ने हिमालय के पहाड़ी जलस्रोतों या धाराओं को फिर से जिंदा करने और ग्रामीण घरों में जल सुरक्षा पक्की करने के लिए 2008 मं् शुरू की थी.
एक अनुमान के मुताबिक दक्षिण सिक्किम के 80 फीसद ग्रामीण घर अपनी पानी की जरूरतों के लिए 1,500 धाराओं पर निर्भर हैं. दक्षिण और पश्चिम सिक्किम के जिलों में पानी की कमी है क्योंकि ये रेन शेडो इलाकों यानी पर्वतमालाओं से घिरे होने के कारण सूखे रह जाने वाले जमीन के टुकड़ों में आते हैं.
दशकों के दौरान जलग्रहण क्षेत्रों में गिरावट आने की वजह से पानी के कई सोते सूख गए. कई दूसरे सोते वैसे भी मौसमी हैं और सर्दियों के महीनों में सूख जाते हैं. आरएमडीडी के अध्ययन इस नतीजे पर पहुंचे कि पानी के सोतों को फिर से भरने के लिए उनके रास्ते में पड़ने वाली और भूजल इकट्ठा करके रखने वाली चट्टानी परतों यानी जलभरों का इस्तेमाल करना चाहिए. इसी के साथ धारा विकास ने आकार ग्रहण किया.
महसूस किया गया कि बहकर चले जाने वाले बारिश के पानी को रोकने के लिए पहाड़ी ढलानों पर गड्ढे खोदकर और जलभरों को फिर से भरकर धाराओं को जिंदा करने में मदद मिल सकती है. धाराओं के मुहानों के नजदीक 'स्रोत टैंकों' का निर्माण किया गया ताकि वे ग्रामीणों के लिए जलाशयों का काम कर सकें. लंगचोक कामारे पंचायत के धारा विकास अधिकार रूपिंदर राय कहते हैं, ''इन गड्ढों में इकट्ठा पानी रिसकर भूमिगत जल में चला जाएगा जिससे पानी के सोतों को भरने में मदद मिलेगी. हमने मुनग्राम में 40 हेक्टेयर में 4,000 गड्ढे खोदे. इनमें से हरेक बारिश के दौरान करीब 1,300 लीटर पानी रोक सकता है.''
दक्षिण सिक्किम में 729 हेक्टेयर में कोई 73,000 गड्ढे खोदे गए, जो 6-10 पीठ चौड़े और 2.5 फुट गहरे हैं. इस काम के लिए लाए गए ग्रामीणों को मनरेगा का मेहनताना दिया गया. इससे पानी के करीब 80 सोते फिर से जिंदा करने में मदद मिली. मुनग्राम के देवी थाने सोते में, जो नवंबर के बाद सूख जाया करता था, फरवरी के आखिर में भी पानी था. गाद या तलछट निकालकर करीब 240 तालाबों को फिर से जिंदा किया गया.
धारा विकास का फायदा दक्षिण सिक्किम के करीब 2,00,000 लोगों को मिला है. 56 वर्षीया रनमयी गुरुंग कहती हैं, ''पानी की जबरदस्त कमी के चलते मैं काफी वक्त से अपने करीबी और प्रिय लोगों को भी घर बुलाने से कतराती थी. अब और नहीं. मैं अक्सर अपनी बेटी, दामाद और नाती-नातिनों से मिलती हूं.''