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जल विशेषांकः कतरा-कतरा बचाने की जरूरत

डब्ल्यूडबल्यूएफ के अनुसार, 2050 तक कम से कम 30 भारतीय शहर भीषण जल संकट का सामना कर रहे होंगे. जल स्रोतों का कुप्रबंधन, दूषित आपूर्ति, जल वितरण नेटवर्क में लीकेज और भारी मात्रा में अनुपचारित अपशिष्ट जल को नदियों में बहा दिए जाने जैसी कई समस्याएं भारत के जल संकट के लिए जिम्मेदार होंगी

अपर्याप्त नगर निगम के टैंकर से जरूरत का पानी भरते दिल्ली के निवासी
अपर्याप्त नगर निगम के टैंकर से जरूरत का पानी भरते दिल्ली के निवासी
अपडेटेड 25 मार्च , 2021

साल 2019 की गर्मियों में चेन्नै के जलाशय सूख गए थे और अन्य जगहों से रोजाना 1 करोड़ लीटर पानी लाने के अलावा, सरकार के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था. एक शहर जहां साल में औसतन 1,400 मिमी बारिश होती है—लंदन में होने वाली बारिश से दोगुने से भी अधिक—के लिए यह एक अभूतपूर्व स्थिति थी. केवल चेन्नै ही नहीं, पूरे भारत के शहरों को बड़े पैमाने पर जनसंख्या वृद्धि और अनियोजित तीव्र शहरीकरण के कारण पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है.

नेचर में प्रकाशित 2018 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि 2050 तक जयपुर दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा पानी संकट का सामना करने वाला शहर होगा जबकि चेन्नै का स्थान 20वां होगा. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडबल्यूएफ) की 2020 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि जनसंख्या में तेज वृद्धि के कारण 2050 तक 30 भारतीय शहर 'गंभीर जल संकट' का सामना कर रहे होंगे.

स्थिति पहले से ही चिंताजनक है. केंद्रीय जल आयोग की निगरानी वाले 91 सबसे महत्वपूर्ण जलाशयों में जल भंडारण का स्तर, हाल के वर्षों में उनकी कुल क्षमता के आधे से अधिक को कभी पार नहीं कर सका. चिंता बढ़ाने वाली बात यह है कि, लंबे समय तक भूजल के अंधाधुंध दोहन से अधिकांश भारतीय शहरों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है. सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट के अध्ययन के अनुसार, भारत की शहरी जल आपूर्ति का 48 प्रतिशत भूजल से आता है—और 10 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से सात में, भूजल स्तर दो दशकों में काफी गिर गया है.

महानगरों की मुश्किल
महानगरों की मुश्किल

सीमित आपूर्ति नेटवर्क के कारण शहरी निवासियों को भी संकट से जूझना पड़ता है. भारत की 34 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रहती है; हालांकि 31 प्रतिशत शहरी घरों में, ज्यादातर अनधिकृत कॉलोनियों-मलिन बस्तियों में पाइप से मिलने वाले पानी या फिर सार्वजनिक नलों से पेयजल की व्यवस्था नहीं थी. मौजूदा पाइपों के सूख जाने का खतरा भी मंडरा रहा है. अधिकांश शहर केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन की ओर से निर्धारित प्रति व्यक्ति रोजाना 135 लीटर जल आपूर्ति स्तर को नहीं छू सकते.

आपूर्ति वाले पानी की गुणवत्ता भी संदिग्ध रही है. पिछले साल 21 शहरों से एकत्र नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे. नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है, जो हर चार में से तीन व्यक्ति को प्रभावित कर रहा है. इस वजह से  केंद्रीय जल मंत्रालय ने जल जीवन मिशन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य 2024 तक सभी घरों में पाइप से पानी पहुंचाने के नेटवर्क का विस्तार करना है. इसकी सफलता राज्यों पर निर्भर है क्योंकि पानी राज्य का विषय है.

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ संकट से निपटने के लिए नदी घाटियों की सेहत सुधारने, जलोत्सारण क्षेत्रों और जलप्लावित भूमि के संरक्षण जैसे प्रकृति आधारित समाधानों का प्रस्ताव करता है, लेकिन ये तरीके पानी की उपलब्धता की समस्या का समाधान करेंगे, वितरण की दिक्कतों का नहीं. वर्षा जल संचय भी एक अन्य प्रभावशाली समाधान माना जाता है और इसकी चर्चा खूब हुई लेकिन काम बहुत कम हुआ है. इसलिए, विशेषज्ञ एकीकृत दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखते हैं, जिसमें वितरण नेटवर्क की दक्षता बढ़ाना और अपशिष्ट जल का उपयोग करना शामिल है. जल स्रोत सीमित हैं, इसलिए शहरों और लोगों को कुशल और विवेकपूर्ण उपयोग पर ध्यान देना चाहिए. स्थायी नीति की दिशा में यह पहला कदम होगा.

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