scorecardresearch

जल विशेषांकः पानी को मिला रास्ता

ओडिशा में पानी पंचायतों ने इस कीमती संसाधन के बराबर बंटवारे का पुख्ता इंतजाम किया और उपज बढ़ाई, सबसे अहम यह कि पानी के बंटवारे को लेकर होने वाले झगड़े कम हो गए.

हरियाली के वकील उसुमा में चल रही पानी पंचायत के सदस्यों की एक बैठक
हरियाली के वकील उसुमा में चल रही पानी पंचायत के सदस्यों की एक बैठक
अपडेटेड 27 मार्च , 2021

कटक जिले के उसुमा गांव में 15 किलोमीटर दूर महानदी से आने वाली नहर के पानी को लेकर अक्सर झगड़े होते थे. कई बार तो कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति पैदा हो जाती थी. अब वह दौर गुजर चुका है. उसुमा और नौ अन्य गावों ने मिलकर 2000 में एक सफल ‘पानी पंचायत’ बनाई और पक्का किया कि उसुमा के 250 परिवारों को और उनकी 420 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि को पानी का उचित हिस्सा मिले. ओडिशा की पानी पंचायतें किसानों के नेतृत्व में गठित निकाय हैं जो स्थानीय स्तर पर जल प्रबंधन और इसके न्यायोचित वितरण का दायित्व संभालती हैं.

आज 35,511 पानी पंचायतें हैं जिनकी देखरेख में खेतों में सिंचाई का पानी पहुंचाने का काम हो रहा है. उनका मुख्य काम यह पक्कर करना है कि एक हेक्टेयर सिंचाई योग्य जमीन भी ‘पानी से वंचित न रहे.’ उसुमा पानी पंचायत के सचिव समीउल्ला खान कहते हैं, ‘‘जिस किसान को अपनी जमीन से प्यार है, वह स्वाभाविक रूप से दूसरों के खेतों में भी खुशहाली देखना चाहेगा. पानी के झगड़े में खून भी बहता रहा है पर पंचायत का गठन खेतों के लिए फायदेमंद रहा.’’

दो दशक पहले शुरू हुई पानी पंचायत का विचार किसानों के अनुभव और जरूरतों से आया. शुरुआत में उन्हें 40-100 हेक्टेयर के न्यूनतम क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई, जिसे बाद में बढ़ाकर 500 हेक्टेयर तक किया गया. हर 10-40 हेक्टेयर के लिए एक जल स्रोत बनाया गया जिसका संचालन एक समिति (चाक) करती है. समिति पानी के वितरण, संचालन, रखरखाव और अपने क्षेत्र में चैनलों के भीतर गाद की सफाई पक्की कराती है.

जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर डी.के. सामल कहते हैं, ‘‘किसानों को सशक्त बनाकर हम झगड़े कम करने और यह पक्का करने में सफल रहे कि एक भी ब्लॉक पानी से वंचित न रहे. पानी के दुरुपयोग के लिए दंड और जुर्माने के प्रावधान हैं.’’ अब किसान अपने लिए सही फसलों का चुनाव कर सकें इसके लिए चाक के अधिकार क्षेत्र को कम करने की आवश्यकता महसूस हुई है.

धान में बहुत अधिक पानी लगता है, जबकि मूंगफली, तिलहन और दालों की खेती न्यूनतम जल के साथ की जा सकती है. सामल कहते हैं, ‘‘हम सभी किसानों को धान की ही खेती में झोंकने की बजाए अगर अनेक तरह की फसलें उगाने को प्रोत्साहित कर पाएं तो बड़ी मात्रा में पानी बचाने में सक्षम होंगे.’’

खैर, अब तो कमान एरिया डेवलपमेंट के चीफ इंजीनियर राजेंद्र बेसरा कहते हैं, ‘‘सूखाग्रस्त कालाहांडी में दो फसलों की खेती होती है. पैदावार में औसतन 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. यह उस क्षेत्र की 267 पानी पंचायतों की वजह से संभव हुआ है.’’

बड़ी तस्वीर
समस्या नहरों के पानी का समान वितरण न हो पाने से आए दिन कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो रही थी

समाधान पानी के बराबर बंटवारे के अलावा स्थानीय स्तर पर नहरों के संचालन और उनकी देखरेख के लिए किसानों और दूसरे नागरिकों के साथ पानी पंचायतों का गठन किया गया.

Advertisement
Advertisement