गुजरात के गांधीनगर जिले के खोरज गांव में रमेश भाई भीकाभाई मोरे के पांच हेक्टेयर के फार्म में अमरूद के पेड़ों की कतारों के बीच खरबूज की बेल और उन्हें चारों ओर से घेरे छोटे-छोटे प्लास्टिक पाइपों के गुच्छे देखे जा सकते हैं.
भीकाभाई मोरे अपने गांव के उन पहले किसानों में शामिल हैं जिन्होंने कपास और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों के बजाय बागवानी फसलों को उगाने के लिए लघु सिंचाई प्रणालियों को आजमाया. इस नए प्रयास में, भीकाभाई मोरे को गुजरात ग्रीन रिवॉल्यूशन कंपनी (जीजीआरसी) की मदद मिली, जो कृषि क्षेत्र में सक्रिय गुजरात सरकार की तीन इकाइयों और केंद्र सरकार का एक अनूठा संयुक्त उद्यम है.
2005 में गठित, जीजीआरसी उन किसानों के लिए वन-स्टॉप शॉप (एक जगह जहां जरूरत का सब कुछ उपलब्ध) है, जो उन्नत लघु सिंचाई तकनीकों को अपनाना चाहते हैं. ड्रिप सिंचाई प्रणाली की लागत आम तौर पर 50,000 रुपए से 1.5 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर आती है. यही वजह है कि ज्यादातर किसान इसमें निवेश से कतराते हैं. लेकिन जीजीआरसी न केवल किसानों को 70-90 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करता है, बल्कि इसके अधिकारी किसानों को तय मूल्य पर सर्वोत्तम लघु प्रणालियों का चयन करने में मदद भी करते हैं.
वे किसान के पहली फसल लेने तक करीबी नजर रखते हैं और किसानों को विशेषज्ञों का परामर्श मिलता है. लघु सिंचाई के लिए पाइप जीजीआरसी के अधिकारी लगाते हैं, जिसमें स्प्रिंकलर, ड्रिपर्स और रेन गन शामिल हैं और उनकी निगरानी तथा फौरन मदद के लिए जियो-फेसिंग और टैगिंग का उपयोग किया जाता है. जीजीआरसी के सुपरिडेंटिंग इंजीनियर हार्दिक पंचोली कहते हैं, ‘‘हम किसानों को अपना ग्राहक और सब्सिडी की रकम को निवेश मानते हैं. हम वास्तव में किसानों की कामयाबी में हर संभव मदद करना चाहते हैं.’’
एक एनजीओ के साथ मिलकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) अहमदाबाद के एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि लघु सिंचाई से किसानों के लिए पानी और श्रम लागत दोनों में ही 35-50 प्रतिशत की बचत होती है. इसके अलावा, उर्वरक और बिजली की लागत में भी काफी बचत होती है, और फसल की पैदावार में पारंपरिक खेती की तुलना में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी होती है. अध्ययन में पाया गया कि लघु सिंचाई तकनीकों को अपनाकर किसान अपनी आमदनी को प्रति हेक्टेयर कम से कम 15,500 रुपए तक बढ़ाने में सक्षम हुए हैं.
राज्य के 12 लाख से अधिक किसान खेती के इस उन्नत तरीके को अपना चुके हैं. जीजीआरसी के अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने ऐसे लगभग 60 प्रतिशत खेतों को कवर कर लिया है, जो लघु सिंचाई प्रणालियों को अपना सकते हैं, और उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में बाकी किसान भी इस तकनीक को अपना लेंगे.
जीजीआरसी के अधिकारियों ने हाल ही में भीखाभाई मोरे के भतीजे, रंजीत सिंह हरिकृष्ण जाधव को भी इसे अपनाने के लिए राजी कर लिया है, जो जमीन के एक हिस्सेदार हैं. जाधव कहते हैं, ‘‘हमें भरोसा है कि हमने सही निवेश किया है और हमारी योजना अगले साल तक इसे पांच एकड़ और खेतों तक बढ़ाने की है.’’
बड़ी तस्वीर
समस्या गुजरात में जल संकट से खेती करना मुश्किल हो रहा था
समाधान गुजरात ग्रीन रिवोल्यूशन कंपनी की पहल ने किसानों को माइक्रो सिंचाई पद्धति अपनाने में मदद की. इससे पानी की भी और मजदूरी लागत में भी 30-50 फीसद की बचत हुई; गुजरात में करीब 12 लाख किसान खेती में इस पद्धति को अपना चुके हैं
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