पतंजलि झा को आप ऐसा व्यक्ति कह सकते हैं जो खास मिशन पर चल पड़ा है. 1986 बैच के ये आइआरएस अधिकारी (वर्तमान में डी-जी इन्वेस्टिगेशंस, कर्नाटक और गोवा), जब कर चोरों का पीछा नहीं कर रहे होते तब रासायनिक खादों से हो रही पारंपरिक खेती के नुक्सानों के बारे में जागरूकता पैदा करने में व्यस्त होते हैं. मध्य प्रदेश के धार जिले के खलघाट में नर्मदा के किनारे पतंजलि का खाद्य वानिकी फार्म इसका प्रमाण है कि 'प्राकृतिक' तरीके से खेती भी फायदे का सौदा हो सकती है.
प्राकृतिक खेती पर मसानोबु फुकुओका के बीज संबंधी काम द वन स्ट्रॉ रिवॉल्यूशन से प्रेरित होकर 17 साल पहले पतंजलि और निवेश बैंकर संदीप कोठारी सहित पांच अन्य लोगों ने अकबरपुर गांव में 60 एकड़ का प्लॉट खरीदा. खेत को वन्य ऑर्गेनिक्स नाम दिया गया. हल्दी, पान, दाल और मिर्च के अलावा मोरिंगा (सहजन), केला, पपीता, नींबू, अमरूद, नीम जैसे विभिन्न किस्मों के पौधे लगाए गए. कोई जुताई नहीं की गई और न ही कभी रसायन का इस्तेमाल किया गया है. रोपण भी बहु-स्तरीय तरीके से किया गया था ताकि धूप का उपयोग अधिकतम हो सके.
पतंजलि बताते हैं, ''मिट्टी में प्रचुर मात्रा में लाभकारी पोषक तत्व और सूक्ष्मजीवों की एक बड़ी संख्या होती है. जुताई से इन्हें नुक्सान पहुंचता है. खेती, पेड़ों और मधुमक्खियों के जरिए हो तो इसकी कीमत बढ़ जाती है. आप उन्हें प्राकृतिक तरीके से रहने दें तो वे आपको एक शानदार जैविक फसल देंगे.''
पतंजलि का कहना है कि उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से भोजन और पानी में विषैले तत्व प्रवेश कर गए हैं. वे बताते हैं, ''भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद का कहना है कि आने वाले दिनों में हर आठवां भारतीय कैंसर से प्रभावित होगा. बचाव का एकमात्र तरीका हमारे शरीर को क्षारीय रखना है. खाद्य वानिकी ही इसका उपाय है.''
पतंजलि, प्रादेशिक सेना के इको टास्क फोर्स के साथ भी काम करते हैं और उन्होंने 1.25 करोड़ से अधिक वेटीवर्स (एक प्रकार की घास जो मिट्टी का कटाव रोकने में मदद करती है) दान किए. उन्होंने रामकृष्ण मिशन और सेवा धाम, उज्जैन के साथ भी करार किया है, जिन्हें वे रोपण के लिए बीज भेजते हैं. पतंजलि फार्म में आने वाले लोगों को प्रत्यक्ष प्रशिक्षण देने के अलावा एक खाद्य वानिकी किसान के रूप में पूरे देश में जाकर अपने अनुभव साझा करते हैं. लेकिन क्या यह खेती आर्थिक रूप से लाभदायक है? पतंजलि का मानना है कि ''पैसा कमाना खेती का उद्देश्य नहीं होना चाहिए. फायदा तो समय के साथ अपने आप होने लगेगा... क्या यह हमारे स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण है?'' वे कहते हैं कि जैविक उत्पाद का बड़ा बाजार और अच्छी कीमत है. वे जोड़ते हैं, ''मैं मंदिरों में नहीं जाता. मेरे लिए जंगल ही एक आध्यात्मिक अनुभव हैं.''
''पेड़ और मधुमक्खियां खेती करते हैं. आप उन्हें प्राकृतिक तरीके से रहने दें, वे आपको शानदार जैविक फसल देंगे''
परिवर्तन का पैमाना
उन्होंने रासायनिक उर्वरक वाली खेती के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा की है.
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