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अनजाने नायकः खाकी और ब्लैकबोर्ड

एक साल में बच्चों की संख्या 150 हो गई और कामचलाऊ अनौपचारिक स्कूल को फार्मेसी विभाग की एक खाली जगह पर शुरू कर दिया गया. लेकिन स्कूल के साथ ही छात्रों की जरूरतें भी बढऩे लगीं. अधिकारियों को इसके प्रबंधन के ‌लिए क्राउडफंडिंग की व्यवस्था करनी पड़ी.

भोजन का समय  आपनी पाठशाला के बच्चों के साथ जाखड़
भोजन का समय आपनी पाठशाला के बच्चों के साथ जाखड़
अपडेटेड 25 दिसंबर , 2019

रोहित परिहार

धर्मवीर जाखड़, 36 वर्ष

संस्थापक, आपनी पाठशाला, चूरु, राजस्थान

धर्मवीर जाखड़ ने बीएड कर लिया था और वे शिक्षक बनने वाले थे तभी 2011 में उनका चयन राजस्थान पुलिस में कॉन्स्टेबल के तौर पर हो गया. चूरू पुलिस लाइंस में नियुक्ति के दौरान वे एक महीने की उस मुहिम का हिस्सा थे जिसके तहत आवारा बच्चों को सड़क से हटाना था. पकड़े गए बच्चों को रिहा करने से पहले उनकी काउंसलिंग के लिए उन्हें सामाजिक न्याय विभाग के हवाले करना था, लेकिन जाखड़ ने पाया कि लगभग सारे अपनी पुरानी हरकत पर उतर आते थे.

लिहाजा, उन्होंने उन बच्चों के लिए क्लास लगाने का फैसला लिया. चूरू के तत्कालीन एसपी राहुल बरहट कहते हैं, ''इन बच्चों की मदद करने का एक ही तरीका था कि उन्हें अनौपचारिक शिक्षा दी जाए और साफ-सफाई की बुनियादी शिक्षा की भी दी जाए.''

जाखड़ को इतनी कामयाबी मिली कि उन्होंने 2016 में महिला पुलिस स्टेशन के पास अपनी चौकी के पीछे झुग्गी बस्ती में नियमित क्लास लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने छह बच्चों से शुरुआत की, पर तादाद जल्दी बढ़ गई. अपने वरिष्ठ अधिकारियों की मदद से वे और उनकी टीम (जिसमें कुछ भलेमानुस कॉलेज छात्र शामिल थे) ने उन माता-पिताओं को बतौर प्रोत्साहन राशन जैसी चीजें मुहैया करना शुरू कर दिया जो अपने बच्चों को नियमित रूप से साफ-सुथरे कपड़ों में भेजते थे.

यह इतना कारगर रहा कि पुलिस वालों ने धन जुटाना शुरू कर दिया. यह टीम बड़ी हो गई है और अब इसमें बीएड डिग्रीधारी दो महिला कॉन्स्टेबल भी शामिल हो गई हैं. जाखड़ कहते हैं, ''जब बच्चों को यकीन हो गया कि उन्हें खाना और दूसरे फायदे मिलेंगे तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया.''

एक साल में बच्चों की संख्या 150 हो गई और कामचलाऊ अनौपचारिक स्कूल को फार्मेसी विभाग की एक खाली जगह पर शुरू कर दिया गया. लेकिन स्कूल के साथ ही छात्रों की जरूरतें भी बढऩे लगीं. अधिकारियों को इसके प्रबंधन के ‌लिए क्राउडफंडिंग की व्यवस्था करनी पड़ी. मुस्कान नामक फाउंडेशन बनाया गया और एक सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल एच.आर. इस्रान ने सेवाओं को व्यवस्थित करने के लिए अपनी सेवाएं दी.

स्थानीय डॉ. जाकिर हुसैन स्कूल ने प्राथमिक शिक्षा हासिल कर चुके 60 बच्चों को हर साल छठी क्लास में दाखिला देने का प्रस्ताव रखा. जाखड़ के एक दर्जन पूर्व छात्रों ने 2019 में आठवीं की परीक्षा पास की. इस फाउंडेशन ने बच्चों को लाने-ले जाने के लिए दो वैन खरीदी हैं और हर महीने एक लाख रुपए का खर्च भी उठाता है. चूरू की मौजूदा एसपी तेजस्विनी गौतम का कहना है कि वे इसे औपचारिक प्राथमिक पाठशाला में बदलने के लिए काम कर रही हैं.

परिवर्तन का पैमाना

आपनी पाठशाला ने बहुत कम समय में सैकड़ों झुग्गीवासी बच्चों की जिंदगी में बदलाव ला दिया है.

''जब बच्चों को यकीन हो गया कि उन्हें खाना और दूसरे फायदे मिलेंगे तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया.’’

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