यहां तक कि हर तरफ की खबर रखने वाली नौकरशाही भी एक घोषणा से आश्चर्यचकित थी. पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर की विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति उन दुर्लभ मौकों में से एक है जब किसी पूर्व नौकरशाह को सुरक्षा से संबंधित हाइ-प्रोफाइल कैबिनेट समिति में शामिल किया गया हो. कथित तौर पर यह नियुक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में फीडबैक का परिणाम थी कि प्रधानमंत्री को विदेश संबंधित मामलों में बहुत ज्यादा सोचना पड़ रहा था.
लिहाजा प्रधानमंत्री के कार्यभार को हल्का करने के लिए नरेंद्र मोदी के एक विश्वसनीय सहयोगी जयशंकर को लाया गया. इस नियुक्ति ने बताया कि मोदी सरकार अपनी योजनाओं के कार्यान्वयन में नौकरशाहों को कितना अधिक महत्व देती है. ये वे अधिकारी हैं जो सुरक्षा नीति से लेकर आर्थिक नीति तक, पीएमओ को चलाने से लेकर नौकरशाहों के लिए उचित भूमिका चुनने तक, सभी अहम फैसले लेते हैं.
भारत में आज का जो पीएमओ है, उसे इंदिरा गांधी के दौर के बाद के सबसे मजबूत पीएमओ में से एक माना जाता है. नृपेंद्र मिश्र, पी.के. मिश्र और अजीत डोभाल, ऐसे तीन अधिकारी हैं जो असाधारण प्रभाव रखते हैं और हाल ही में इन्हें मंत्रियों के बराबर कैबिनेट रैंक दी गई. ये अधिकारी पीएम के बैकरूम को चलाते हैं, और ये उन लोगों में से हैं जिनके भरोसे मोदी 2024 की लड़ाई जीतने की आस रखते हैं.
नृपेंद्र मिश्र
74 वर्ष, प्रधान सचिव, पीएमओ
सुपर बाबू, नौकराशहों की फेहरिस्त में पहले नंबर पर.
क्योंकि वे नीति निर्माण से लेकर स्वच्छ भारत अभियान और आयुष्मान भारत जन स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी प्रमुख केंद्रीय योजनाओं की निगरानी तक, शासन व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर प्रधानमंत्री और प्रशासन के बीच की प्रमुख कड़ी हैं
क्योंकि वे देश के 115 सबसे पिछड़े जिलों के लिए पीएमओ के मॉनिटर भी हैं, जिन्हें राज्य के अधिकारियों के साथ तालमेल बिठाकर इन जिलों के विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है
क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा को छोड़कर अन्य सभी मुद्दों पर पीएम के आपदा प्रबंधक हैं. मिश्र मीडिया दिग्गजों और संपादकों तथा प्रधानमंत्री के बीच की कड़ी भी हैं
जान-पहचान की बात
अमित शाह ने प्रधानमंत्री से नृपेंद्र मिश्र के नाम की सिफारिश की थी. भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई (मिश्र इसी राज्य से आते हैं) के अपने कार्यकाल के दौरान शाह की मिश्र से जान-पहचान हुई थी.
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