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इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2019 - मौत से छीनी जिंदगी

 सोनाली बेंद्रे बताती हैं, ''कैंसर के इलाज की प्रक्रिया से गुजरने के क्रम में मुझे एहसास हुआ कि ऐसे बहुत सारे दूसरे लोग भी हैं जिनको इससे गुजरना पड़ा है.'' वे कहती हैं कि इस दर्दनाक यात्रा ने उन्हें निडर भी बनाया.

सोनाली बेंद्रे
सोनाली बेंद्रे

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे ने कैंसर जैसी दर्दनाक बीमारी से जूझकर दोबारा सेहतमंद होने के सफर के बारे में बताया.

सोनाली बेंद्रे को पिछले साल जब पता चला कि उन्हें मेटास्टेटिक कैंसर है तो शुरुआत में इस बीमारी के लिए उन्होंने खुद को ही दोषी ठहराया. जब एक मनोचिकित्सक ने उन्हें समझाया कि इस बीमारी के लिए वे हर्गिज जिम्मेदार नहीं हैं, तो सोनाली ने राहत की सांस ली. सोनाली कहती हैं, ''ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंधों से कोई बड़ा बोझ उतार लिया हो. मुझे खुद को अपराधी मानने की जरूरत नहीं है.''

सोनाली कहती हैं कि वे समझ रही थीं, यहां से उन्हें खुद को संभालना है, ताकि कोई अफवाह न फैले. वे बताती हैं, ''इस प्रक्रिया से गुजरने के क्रम में मुझे एहसास हुआ कि ऐसे बहुत सारे दूसरे लोग भी हैं जिनको इससे गुजरना पड़ा है.'' उन्होंने कैंसर से लड़कर बाहर आने की अपनी यात्रा को दर्दनाक बताया लेकिन उनका मानना है कि इसने उन्हें निडर भी बनाया है. उन्हें शरीर की अपूर्णता में से भी सुंदरता को खोज निकालने में सक्षम बनाया. और सबसे महत्वपूर्ण बात, उनका यह विश्वास बढ़ा है कि दुनिया अच्छे लोगों से भरी हुई है. ठ्ठ

खास बातें

कैंसर ने सोनाली बेंद्रे को डर से पार पाना सिखा दिया. ''अब मैं निडर होना सीख गई  हूं, जो पहले बिल्कुल

ही भूल गई थी.''

-उन्होंने जिंदगी का आभार मानना भी सीख लिया. ''सबसे अच्छी बात यह है कि मैं जिंदा हूं. इसके लिए इस ब्रह्मांड का जितना भी शुक्रिया करूं, कम होगा. मैं पूरे ब्रह्मांड से वादा करती हूं कि मैं अपने जिंदा होने का भरपूर फायदा उठाने जा रही हूं.''

''मुझे समझ नहीं आता कि इसे लोग छिपाते क्यों है? इसके बारे में बात क्यों नहीं करते? मैं नहीं चाहती थी कि इसे लेकर कोई अफवाह फैले, इसका बतंगड़ बने, मेरा परिवार और बेटा अंदेशे से देखें और यूं यह दैत्य बड़ा होता जाए.''

शरीर में हो रहे बदलावों को स्वीकारना सीखने पर. वे कहती हैं, ''मुझे मस्कारा लगाए अरसा हो गया, तो अभी लगाने का मौका मिलने से मुझे काफी खुशी मिल रही है. पर इसके लिए हाय-तौबा क्या मचाना, क्यों रोना-पीटना! ...यह एक दहलीज की तरह है. जब भी मैं बाहर निकलने के लिए उस दहलीज के ऊपर से कदम बढ़ाती हूं तो कहीं भीतर बैठा वह डर फिर एक बार धक्का मारता है.

यह मुझे ढीला कर देता है, मैं बगलें झांकने लगती हूं...और तभी फिर मैं कहती हूं कि बचाव की मुद्रा में आने की कोई जरूरत नहीं. मैं बाहर निकलने, लोगों का सामना करने जा रही हूं. बाल नहीं हैं, कोई बात नहीं, शरीर बदल गया है, वह भी ठीक. मैं अपने शरीर के साथ ठीक हूं.''

सोनाली ने चिंतामुक्त रहना भी सीखा. ''मेरा बेटा बेहतर दुनिया में है. मदद करना हमारी प्रवृत्ति है... पूरी मानवता मौजूद है.''

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