बचपन में ही उन्होंने मां को खो दिया था. नवंबर-2017 में उनके पिता भी नहीं रहे.
पर अगले ही दिन वे मंच पर नमूदार थीं. इस रंगकर्मी और एक्टिविस्ट के लिए नाटक ऐसा वादा है, जिसे कभी तोडऩा नहीं है. वे अब तक बीसियों नुक्कड़ नाटकों की 9,000 से ज्यादा प्रस्तुतियां कर चुकी हैं. कभी आप उन्हें जंतर मंतर पर यौन हिंसा के खिलाफ प्रदर्शनों में पाएंगे, कभी करगिल के गांव में "सरफरोशी की तमन्ना'' गाते हुए, तो कभी झारखंड के किसी गांव में नुक्कड़ नाटक में, कभी एम्स में जटिल बीमारी से लडऩे का जज्बा जगाते हुए.
वे बॉलीवुड की फिल्म रांझना में दिखेंगी तो स्त्रियों पर बनाई गई ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त निर्देशक रॉस कॉफमैन की डॉक्युमेंट्री में भी. लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, स्वास्थ्य, पर्यावरण चाहे जिन मुद्दों की बात करें, आप पाएंगे कि उनके सुखमंच थिएटर के करीब 100 ऐक्टरों की टोली देश के किसी न किसी हिस्से में कभी भी मौजूद मिलेगी.
अच्छी बात
उनका नाटक करवाने के लिए उनकी टीम की फीस है चाय और बिस्कुट, बस.
चमक
दिल्ली में प्रतिरोध के नाटकों का अहम चेहरा होने के कारण उन्हें प्यार से "काले कुर्तेवाली लड़की'' कहा जाता है
बड़ी बात
दिल्ली में कई मध्यवर्गीय लड़कियों की वे दीदी हैं, बस एक फोन कॉल या व्हाट्सऐप मैसेज की दरकार है कि हर आड़े वक्त पर वे बगल में खड़ी मिलेंगी
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