हरतेज सिंह रारेवाला, 33 वर्ष, मोहाली
अगर हिमालय में पर्वतारोहण और ट्रैकिंग टोली का नेतृत्व करते न मिलें तो रारेवाला मोहाली के पास कैलों गांव में अपनी तीन एकड़ के खेत में ऑर्गेनिक फसलों के बीच पाए जा सकते हैं. यहां वे मौसमी सब्जियां और केला, आम, किनू जैसे फल उगाते हैं. रारेवाला गांव और खेती-किसान के बीच ही पले-बढ़े हैं, पर वे सक्रिय रूप से पिछले सात साल से ही खेती-किसानी से जुड़े हैं. वे कहते हैं, "यह ऐसा जुनून है जो आपमें उम्मीद जगाए रखता है. अपने हाथों को मिट्टी में सना हुआ और खुशी-खुशी ग्राहकों को खरीदते देखना कम आमदनी के बावजूद मुझे काफी संतोष देता है.''
अपने खेत की फसलों से आटा-तेल जैसी चीजें तैयार करने से लेकर ऑर्गेनिक दूध के लिए बकरी पालन जैसे क्षेत्र में विस्तार करने की सोच रहे इस युवा किसान को उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा शहरी लोग खेतों में उतरेंगे.
सीमा जॉली, 41 वर्ष, करोरां गांव, मोहाली
उनके बूट और हैट को देखकर मोहाली के पास करोरां गांव में उनके पांच एकड़ के खेतों को स्थानीय लोग श्मेम दा फार्म्य कहते हैं. वे चंडीगढ़ ऑर्गेनिक मार्केट की संयोजक हैं और मौसमी सब्जियां, अनाज, तिलहन और दलहन की खेती करती हैं. उन्होंने फलों का एक बाग भी लगाया है और बच्चों तथा बड़ों को खेत से खाने की मेज तक का अनुभव दिलाने के लिए फार्म टूर भी आयोजित करती हैं. फिटनेस और योग को लेकर उत्साही होने के नाते उनकी योजना अपने फार्म को योग, ध्यान, बागबानी, संगीत और खेत में भोजन पकाने का प्राकृतिक आश्रय में तब्दील करने की है. वे कहती हैं, "जीवन-शैली से जुड़ी बीमारियों में इजाफे'' की वजह से रसायन-मुक्त खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ गई है. "जब ग्राहकों को किसी किसान पर यकीन हो जाता है तो किसान के पास खरीद के ऑर्डर आने लगते हैं.''
शिवराज भुल्लर, 35 वर्ष, चंडीगढ़
चार साल पहले कनाडा में अपना अच्छा-खासा बैंकिंग करियर छोड़कर उन्होंने दो साल तक ऑरोविले में ऑर्गेनिक खेती और पर्माकल्चर के बारे में जाना. फिर उन्होंने चार एकड़ का मैत्री फार्म स्थापित किया और ऑर्गेनिक फल, सब्जियां और दलहन की खेती शुरू की. यह आसान तो नहीं था क्योंकि भुल्लर ने उपज बढ़ाने के लिए कीटनाशक या रासायनिक खाद का प्रयोग न करने की ठान रखी थी. वे कहते हैं कि सिर्फ खेती से गुजर-बसर कर पाना आसान नहीं है. वे अपनी उपज चंडीगढ़ ऑर्गेनिक मार्केट में बेचते हैं और उन्होंने वफादार ग्राहकों का एक आधार भी तैयार कर लिया है. वे कहते हैं, "आज मैं किसान इसलिए हूं क्योंकि जैसे ही मैंने हल उठाया, मुझे बहुत संतोष हुआ.''
दीक्षा सूरी, 42 वर्ष, चंडीगढ़
करीब तेरह साल पहले सीएसआर कंसल्टेंट ऑरोविले गईं तो वापस आकर उन्होंने चंडीगढ़ में अपने लॉन और टेरेस को भी पूरी तरह बदल डाला. चंडीगढ़ नेचर क्लब की संस्थापक सदस्य कहती हैं, "सजावटी पौधों की जगह सब्जियां, दालों की फसल और फल के पेड़ आ गए.'' सूरी बच्चों और बड़ों को अपने घर के पिछवाड़े और टेरेस पर ऑर्गेनिक फसलें उगाने का प्रशिक्षण देती हैं. ऐसे कई लोगों की रसोई तो घर की उपज से ही आबाद हो गई और कुछ तो अपने उत्पाद बेचने भी लगे हैं.
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